निप्र, उज्जैन। पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र के निर्माण में अविस्मरणीय भूमिका निभाई है। इस आशय का प्रतिपादन विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, मध्य प्रदेश के कुलानुशासक तथा कला संकाय अधिष्ठाता प्रोफेसर डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने किया। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में ‘सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र निर्माण के लिए डॉ. कलाम की संकल्पनाएं’ विषय पर आयोजित आभासी अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी में वे अपना मंतव्य दे रहे थे।
डॉ. ममता झा, मुंबई ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। डॉक्टर शर्मा ने आगे कहा कि डॉ. कलाम की दृष्टि में सब लोगों के मिलने से राष्ट्र बनता है। उन्होंने राष्ट्र की एकता व अखंडता के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया। भारत को महाशक्ति संपन्न राष्ट्र बनाने का सपना डॉ. कलाम ने देखा था, जो आज पूरा हो रहा है। उन्होंने साधारणता में असाधारणता की मिसाल कायम की। वे मानवतावादी वैज्ञानिक और चिंतक थे।
डॉ. कलाम में विज्ञान एवं तकनीकी के लाभ सामान्य जन तक पहुंचाने की अभिलाषा थी और आजीवन इसके लिए भी सक्रिय बने रहे। वे मानते थे कि शांति की स्थापना शक्ति संपन्न होने पर संभव है। भारतीयों में आत्म स्वाभिमान जगाने के लिए वे आजीवन जुटे रहे।
मुख्य वक्ता डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने कहा कि भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ऐसे दूरदृष्टा नेता और भारत के अंतरिक्ष और मिसाइल कार्यक्रम के प्रणेता थे, जिन्होंने हमेशा एक मजबूत और आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना चाहा। एपीजे अब्दुल कलाम यह केवल इस नाम नहीं है, बल्कि एक ही बार में समर्पण, लचीलापन, धैर्य और योग्यता के प्रतिमान का वर्णन है, जिसने आकाश को अपनी सीमा के रूप में स्थापित किया।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के राष्ट्रीय मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने अपने उद्बोधन में कहा कि डॉ. कलाम राष्ट्रपति के शिखर पद से विदाई के बाद अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे। उनका समग्र जीवन एक साधारण परिवार के व्यक्ति की शून्य से शिखर तक पहुंचने की अनूठी प्रेरक कहानी है। डॉ. कलाम युवा और विद्यार्थी वर्ग में सर्वाधिक लोकप्रिय रहे। बच्चों का विकास और शिक्षा हमेशा उनके एजेंडे में रहा। उन्होंने देश की सीमा पर तैनात सैनिकों से लेकर सामान्य लोगों का सुख-दुख निकट से देखा।
हिंदी परिवार, इंदौर के अध्यक्ष हरेराम बाजपेई ने कहा कि विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां मानवता के पुजारी और राष्ट्र भक्तों के निधन दिवस को भी पुण्यतिथि के रूप में मनाते हैं और श्रद्धा अर्पित करते हैं। डॉ. कलाम ज्ञानी, ध्यानी, विज्ञानी और स्वाभिमानी थे, जिन पर पूरे देश को गर्व था और रहेगा।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी, महिदपुर ने कहा कि डॉ कलाम के आदर्श एवं प्रेरक व्यक्तित्व से मै निरंतर प्रभावित हूं । उनका सक्रिय राजनीति से कभी कोई संबंध नहीं रहा। राष्ट्र ही उनके लिए सर्वस्व था। डॉ. कलाम ने भारत के विकास स्तर को 2020 तक विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए एक विशिष्ट सोच प्रदान की।
डॉ. मंजू रस्तोगी, चेन्नै, ने कहा कि डॉ कलाम ने भारत को सुरक्षा के नये आयाम दिए हैं। शिक्षा में अमूल-चूल परिवर्तन की बात उन्होंने कही थी। इस आभासी गोष्ठी में प्राध्यापिका सुनीता चौहान, मुंबई, प्रभा शर्मा, सुरेश चंद शुक्ल, ओस्लो, नार्वे आदि ने भी अपने अमूल्य विचार प्रस्तुत किये। गोष्ठी का प्रारंभ डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद की सरस्वती वंदना से हुआ। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष सुवर्णा अशोक जाधव, मुंबई ने स्वागत उद्बोधन दिया। बाला साहब तोरस्कर ने प्रस्तावना की। गोष्ठी का संचालन पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने किया।