डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया

दिया दिखाना छोड़ कर, दिया वृक्ष को घाव।
आज प्रकृति समझा रही, प्राण-वायु का भाव।।

प्राण-वायु का भाव, न हम तबतक जानेंगे।
श्वास-श्वास की आस घुटेगी तब मानेंगें।।

पुनः करो प्रारम्भ, आज से वृक्ष लगाना।
तुलसी पीपल और, शमी को दिया दिखाना।।

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