डीपी सिंह की कुण्डलिया

*कुण्डलिया*

राजनीति के ताल में, अगर ठोंकनी ताल।
मगरमच्छ की ताल से, शीघ्र मिलाओ ताल।।
शीघ्र मिलाओ ताल, दाँत-नख करो नुकीला।
लाखों-अरबों लील, करो स्ट्रेचर पर लीला।।
दल-दल सारे आज, बने दलदल अनीति के।
डूबे सब आकंठ, पंक में राजनीति के।।

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