डॉ. आर.बी. दास पटना। स्कंद पुराण के अनुसार समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि के जन्म का स्रोत बताया गया है। एक और कथा समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी के उद्भव से जुड़ी है। वह सोने से भरे बर्तन के साथ समुद्र से निकली थी। सोना धन, समृद्धि और खुशी का प्रतीक है। देवी लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए धनतेरस पर घरों के प्रवेश द्वार को दीए और रंगोली से सजाते हैं।
देवी लक्ष्मी से जुड़ी एक और लोकप्रिय कथा इस प्रकार है- भगवान विष्णु जी, देवी लक्ष्मी जी के साथ पृथ्वी पर भ्रमण करने निकले लेकिन एक शर्त लगा दी, कि देवी लक्ष्मी केवल दक्षिण दिशा में ही देखेगी, अपनी प्रतिज्ञा लेकर देवी निकली लेकिन कायम नहीं रह सकी और गन्ने के रस की लालसा करने लगी, उनके कार्यों से परेशान होकर भगवान विष्णु ने उन्हें 12 वर्षों तक एक गरीब किसान की सेवा करने का आदेश दिया।
देवी लक्ष्मी के अपने परिवार में आने के साथ किसान समृद्ध हुआ और धन का स्वागत किया। जब 12 साल पूरे हो गए और देवी लक्ष्मी के पृथ्वी छोड़ने का समय आ गया तो किसान ने उन्हें जाने देने से इनकार कर दिया। अंततः देवी उसे अपनी असली पहचान बताई और प्रत्येक धनतेरस पर उससे मिलने का वादा किया। किसान माता लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए इस अवसर पर अपने घर को साफ रखना शुरू कर दिया और धनतेरस के दिन रंगोली और दीप से घर को सजाया।
धनतेरस, धन और तेरस के संयोजन का दिन है। यह वह दिन है जब नई संपत्ति, सोने चांदी से बने आभूषण और बर्तन खरीदने से घर में समृद्धि आती है। ये दिन देवी लक्ष्मी को समर्पित है, जो धन और सौभाग्य की दाता है। हम देवी का स्वागत करने के लिए अपने घरों को तेल के दीए और मोमबत्तियों से रोशन करते हैं। यह हमारे जीवन में स्वास्थ्य, धन, सफलता, खुशी और कल्याण के द्वार खोलने का त्यौहार है।
समुद्र मंथन के दौरान धन्वंतरि के प्रकट होने की कहानी अच्छे स्वास्थ्य के महत्व को दर्शाती है। चूंकि मां लक्ष्मी केवल साफ सुथरे, सुव्यवस्थित घरों में ही जाती हैं, इसलिए हम सब अपने अपने घरों को साफ सफाई कर सजाते हैं, जो व्यक्ति के भौतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह के शुद्धिकरण का प्रतीक है।
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