धनंजय मल्लिक की कविता संग्रह ‘मुझे संविधान चाहिए’ का लोकार्पण

सिलीगुड़ी । रविवार को श्रीकृष्ण हार्डवेयर भवन, शिवमंदिर बाज़ार, आरामबाग़ के निकट युवा कवि एवं उत्तर बंग विश्वविद्यालय के शोधार्थी धनंजय मल्लिक की सद्य: प्रकाशित पहली काव्यकृति ‘मुझे संविधान चाहिए’ का लोकार्पण एवं परिचर्चा गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत शोधार्थी जेरेल्डिना मुचवार के स्वागत अभिभाषण से हुई। तत्पश्चात कवि धनंजय मल्लिक के द्वारा कविता संग्रह की चुनिंदा कविताओं का पाठ किया गया। उक्त कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित हिंदी विभाग, उत्तर बंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं आलोचक प्रो. सुनील कुमार द्विवेदी ने दलित साहित्य को प्रतिपादित करते हुए कहा, कि धनंजय मल्लिक के काव्य संग्रह में पहली कविता जहाँ, अपनी अस्मिता से वशीभूत होकर अधिकारों की माँग करती दिखती है, वहीं अंतिम कविता में परिधि से परे बेहतर भविष्य की कल्पना है। इस कविता संग्रह में अस्मिता की खोज दिखती है। दलित कविता आक्रोश की कविता है, जो ठोस वजहों से उत्पन्न होती है और यथार्थ की भूमि पर रची जाकर कविता के समाजशास्त्रीय नियमों को तोड़ती है।

आज ये कविता संग्रह उन तमाम बेतुकी चीजों का तर्पण करती है जो भेद-भाव की मानसिकता से ग्रसित है। पूरे लोकतंत्र का सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि भूगोल कोई भी हो इतिहास अपने चेहरे को बदलने के लिए तैयार नहीं। गणतंत्र में अपनी भागीदारी के लिए जब सुना नहीं जाता, तब चिल्लाना पड़ता है, बात दोहरानी पड़ती है, इन कविताओं में वे सारे शोर सुनाई देते हैं। धनंजय की कविता एक ऐसे समाज की उम्मीद करती हुई दिखती है, जहाँ कोरी कल्पना के स्थान वास्तविकता है।

उत्तर बंग विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. बिजय कुमार प्रसाद ने कहा कि यह कविता संग्रह की कविताएं दलित समाज में आये यथार्थ भाव को उजागर करतीं हैं, जो आज भी समाज के मुख्यधारा से बाहर है। इस संग्रह की प्रत्येक कविता में वह ताकत है जो पाठक को केवल बांधकर ही नहीं रखती, बल्कि बेचैनी भी पैदा करती है। इसमें तमाम वर्ग, व्यक्ति की अस्मिता के प्रति समाज के रवैया पर भी सवाल उठाए गए हैं, जिन्हें संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त होने के बाद भी स्वीकारा नहीं जा रहा।

उत्तर बंग विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. सचिदानंद कौशल ने कहा कि “काव्य संग्रह का शीर्षक ही पाठक वर्गों में अजीब छटपटाहट के साथ उत्सुकता उत्पन्न करता है। इसमें संग्रहित कुल 54 कविताएं विभिन्न स्वर के साथ क्रांति के लिए फूटती है। संविधान निर्माण के बाद भी उसके अनुकरण में खासी कमी के प्रति कवि की खिन्नता साफ दिख रही है। सूचना एवं जनसंचार विभाग, उत्तर बंग विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. वरुण रॉय ने कहा कि “यह एक बिडम्बना है है 21वीं सदी में जहां हम एक ओर मंगल पर जाने की बात करते है, वहां अभी भी ऐसी समस्या है, जिससे आघात होकर कवि वास्तविक धरातल पर संविधान को उतारने की बात करता है।

सिक्किम विश्वविद्यालय के शोधार्थी शिवम कुमार ने कहा कि “दलितों पर लिखने के लिए कल्पना की जरूरत नहीं होती, वहाँ यथार्थ का चित्रण ही महत्वपूर्ण भूमिका में होता है। धनंजय मल्लिक की कविताएं सामाजिक स्तर के तमाम किस्म के भेद-भाव, कर्मकांडों पर पूरी ईमानदारी के साथ चोट करतीं हैं।” कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी अंकुश कुमार मिश्र ने तथा पूरे कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी नीमा लामा ने किया। इस कार्यक्रम में प्रध्यापक डॉ. मनोज विश्वकर्मा, संदीप क्षेत्री सहित विश्वविद्यालय के शोधार्थियों एवं विधार्थियों की गरिमामय उपस्थित रही।IMG-20220926-WA0002

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