एशिया की अधिकांश भाषाओं की स्वाभाविक लिपि है देवनागरी : प्रो. शर्मा

  • देवनागरी लिपि : वैज्ञानिकता और नवीन संभावनाएं पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

डॉ. प्रभु चौधरी, उज्जैन : प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना एवं नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में देवनागरी लिपि : वैज्ञानिकता और नवीन संभावनाएं पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि वरिष्ठ लेखिका नीलू गुप्ता, केलिफोर्निया, यूएसए थीं। प्रमुख वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल ने की।

विशिष्ट अतिथि प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन, चेन्नई, डॉ. सोनम वांगमू, ईटानगर, अरुणाचल प्रदेश, वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ. सुनीता मंडल, कोलकाता एवं डॉ. प्रभु चौधरी थे। सूत्र समन्वय डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया।

मुख्य अतिथि नीलू गुप्ता, अमेरिका ने कहा कि अनेक आधारों पर सिद्ध होता है कि देवनागरी लिपि अत्यंत वैज्ञानिक लिपि है। विद्यार्थियों की नींव बाल्यावस्था से ही पक्की करवाना जरूरी है। इसके लिए लिपि महत्वपूर्ण आधार देती है। उन्होंने बताया कि अमेरिका में देवनागरी लिपि के शिक्षण के लिए रोमन के अक्षर टी के आकार को सिखाते हैं। उसके आकार के आधार पर ग, च, घ जैसे अनेक लिपि चिह्नों को सुगमता से सिखाया जाता है।

मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि दुनिया भर की लिपियों के बीच देवनागरी लिपि अत्यंत वैज्ञानिक लिपि के रूप में स्थापित है। इसका अनेक एशियाई भाषाओं की ध्वनियों के साथ नैसर्गिक संबंध है। यह एशिया की अधिकांश भाषाओं की स्वाभाविक लिपि है। लिपि चिह्न की पर्याप्तता, उच्चारण और लेखन की एकता के कारण इसके माध्यम से दुनिया की किसी भी भाषा को आसानी से सीखा जा सकता है।

सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से देवनागरी लिपि की सामर्थ्य सिद्ध हो गई है। आने वाले दौर में इस लिपि से जुड़ी नई संभावनाओं के द्वार खुलेंगे। ब्राह्मी एवं उससे विकसित देवनागरी लिपि विश्व सभ्यता को भारत की महत्वपूर्ण देन है। वर्तमान में एशिया की दस से अधिक प्रमुख भाषाओं के साथ सैकड़ों लोक एवं जनजातीय भाषाओं के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग किया जा रहा है। आवश्यकता के अनुरूप इस लिपि में नए चिह्न भी सम्मिलित किए गए हैं। देवनागरी लिपि वैश्विक सद्भावना के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर सकती है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए नागरी लिपि परिषद के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल, नई दिल्ली ने कहा कि देवनागरी लिपि के प्रचार प्रसार के लिए अनेक समर्पित लोग आगे आ रहे हैं। विदेशों में बड़ी संख्या में लोग नागरी लिपि की ओर आकृष्ट हुए हैं। विदेशों में यह लिपि भारतीय संस्कृति को जानने के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हो रही है। देवनागरी लिपि की तुलना में अन्य लिपियों में अनेक प्रकार की विसंगतियां हैं। संस्था द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में नागरी लिपि के प्रचार प्रसार के साथ निबंध आदि की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।

कार्यकारी अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने कहा कि किसी भी भाषा का लिपि के साथ गहरा संबंध होता है। हिंदी एवं भारतीय भाषाओं को समाप्त करने के लिए लिपि को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है। हमें लिपि को बचाना होगा। वर्तमान युग में देवनागरी लिपि की श्रेष्ठता सिद्ध हो गई है। सूचना प्रौद्योगिकी में इस लिपि के प्रयोग से सिद्ध हो गया है कि देवनागरी लिपि अन्य लिपियों की तुलना में बेहतर है।

विशिष्ट अतिथि डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन, चेन्नई ने कहा कि वैज्ञानिकता के लिए लिपि में विशेष गुण होने चाहिए। देवनागरी लिपि में प्रत्येक ध्वनि के लिए एक लिपि चिह्न है। तमिल लिपि में कई ध्वनियों के लिए एक ही लिपि चिह्न का प्रयोग किया जाता है जिससे समस्या आती है। देवनागरी लिपि में पाठ्यता है, जो इसकी महत्वपूर्ण विशेषता है। संपूर्ण विश्व में कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के विकास में देवनागरी लिपि का योगदान दिखाई दे रहा है। देवनागरी के माध्यम से एक विश्व, एक मानव की कल्पना को साकार किया जा सकता है।

विशिष्ट अतिथि ईटानगर की प्राध्यापक डॉ. सोनम वांगमू ने कहा कि भाषा और संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ले जाने में लिपि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ब्राह्मी लिपि से जन्मी देवनागरी लिपि हमारे देश की गौरव लिपि है। देवनागरी लिपि में प्रत्येक वर्ण के लिए सुनिश्चित लिपि चिह्न हैं। पूर्वोत्तर भारत में बोडो भाषा देवनागरी लिपि के माध्यम से लिखी जा रही है। अरुणाचल प्रदेश में हिंदी और देवनागरी लिपि को अपनाया गया है।

देवनागरी लिपि के माध्यम से संस्कृत एवं अन्य भाषाओं के सभी शब्दों को शुद्धतापूर्वक लिखा जा सकता है। पूर्वोत्तर की कई भाषाओं के लिए रोमन लिपि का प्रयोग किया जा रहा है, इसके बजाय देवनागरी लिपि को संपर्क लिपि बनाया जाना चाहिए। देवनागरी से सुसज्जित हिंदी दुनिया की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है।

संगोष्ठी की प्रस्तावना डॉ. प्रभु चौधरी ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम में हरेराम वाजपेयी, इंदौर, डॉ. सुनीता मंडल, कोलकाता, डॉ. मीरा सिंह, यूएसए, डॉ प्रसन्ना कुमारी, तिरुवनंतपुरम, डॉ. ज्ञान प्रकाश टेकचंदानी सरल, अयोध्या, डॉ. मल्लिकार्जुन, तिरुपुर, डॉ. वेंकटेश्वर राव, तेलंगाना, डॉ. सी गया बजाज, सिकंदराबाद आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में सरस्वती वंदना प्राध्यापक पूर्णिमा कौशिक, रायपुर ने की। स्वागत भाषण डॉ. रोहिणी डाबरे, अहमदनगर ने दिया।

आयोजन में डॉ. अन्नपूर्णा दासगुप्ता, शैलेश घोड़के, पूर्णिमा कौशिक, अंजलि जाधव, डॉ. रेखा भालेराव, शहनाज अहमद, वागीशदत्त गौतम, अमिता कश्यप आदि सहित अनेक साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं गणमान्यजन उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने किया। आभार प्रदर्शन सुवर्णा जाधव, मुंबई ने किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *