“काश किसी दिन ऐसा होता”
काश किसी दिन ऐसा होता
सब कुछ सपने जैसा होता
मैं होती तन्हाई होती
होंठों पर मुस्कान लिए
खामोशी से बातें होती
बादलों के साए में
चलती नर्म फ़िज़ाओं से
किसी रोज़ मेरी
मुलाकात तो होती
मिट्टी की सौन्दी खुशबू में
बारिश की हल्की बूंदें होती
पहाड़ो की सख्ती में
घांसों की हल्की नर्मी में
किसी रोज़ हवाओं से
मेरी मुलाकात तो होती
जहाँ पत्तों से टकराते
मदमस्त हवा के झोंके
चिड़ियों की मधुर
आवाज़ भी होती
जहां खुशबुयों की कश्ती में
तितलियों की गश्त होती
बड़ा प्यारा वो एहसास होता
जब मैं कुदरत के करीब होती
काश किसी दिन ऐसा होता
सब कुछ सपने जैसा होता।
– दीपा ओझा ✍