प्रतिष्ठित मूर्तिकार रमेश बिष्ट के कृतियों की अंतिम एकल प्रदर्शनी सराका आर्ट गैलरी लखनऊ में लगाई गयी थी
लखनऊ। “प्रकृति की गोद में बसे पाँच मूल तत्वों- जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश ने मेरी कल्पना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मेरा काम उस शक्ति, जीवन शक्ति और अनुग्रह से प्रेरित है जो प्रकृति हमारे अस्तित्व में फैलाती है। इस प्रकार ललित कलाओं की ओर मेरा झुकाव एक स्वाभाविक परिणति है। इसमें कोई संदेह नहीं था कि मैं ललित कलाएँ अपनाऊँगा। लेकिन मूर्तिकला के प्रति आकर्षण मेरे कला महाविद्यालय में प्रवेश के बाद पैदा हुआ; मुझे प्रख्यात मूर्तिकारों की कृतियों की प्रतिकृतियां मिलीं और तब से, मेरे आंतरिक विचारों के विविध तनावों ने मेरी छेनी के हर एक स्पर्श में अपना सामंजस्य पाया” यह कथन देश के प्रतिष्ठित मूर्तिकार रमेश बिष्ट का है, जो अब हमारे बीच नहीं रहे। कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ के पूर्व छात्र व देश के प्रतिष्ठित मूर्तिकार रमेश बिष्ट का निधन शुक्रवार 2 फरवरी 2024 को गुड़गांव में हो गया। वे कई दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। वे 79 वर्ष के थे। उनके निधन की खबर उनके पुत्र पुलक ने दी।
विस्तृत जानकारी देते हुए लखनऊ के चित्रकार, क्यूरेटर व कला लेखक भूपेंद्र अस्थाना ने बताया की देश के जाने माने वरिष्ठ मूर्तिकार रमेश बिष्ट का जन्म 21 जनवरी 1945 को लैन्सडाउन गढ़वाल उत्तराखंड में हुआ था। उनकी कला की शिक्षा 1961-66 स्कल्पचर और 1968 – सेरामिक से कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ से हुई थी। रमेश बिष्ट पद्मश्री रणवीर सिंह बिष्ट के छोटे भाई थे। 2015 मे रमेश बिष्ट की एक किताब प्रकाशित हुई थी जिस किताब का नाम “स्कल्पटिंग इन स्पेस” जिसको बकायदे एक कार्यक्रम के माध्यम से इंडिया इंटरनेशनल सेंटर नई दिल्ली में कृष्ण खन्ना द्वारा रिलीज की गई थी, जिसमे कला से जुड़े बड़े-बड़े दिग्गजों की उपस्थिति भी थी और इस किताब की सराहना भी खूब हुई। रमेश ने डिप्लोमा करके आजीविका के लिए दिल्ली आ गए। जहां राष्ट्रीय बाल संग्रहालय, शारदा स्कूल आफ आर्ट्स में सेवा करते हुए दिल्ली स्कूल आफ आर्ट्स के मूर्तिकला विभाग में प्रवक्ता हुए। यहीं से विभागाध्यक्ष पद से सन् 2005 में सेवानिवृत्त होकर गुरुग्राम में रह रहे थे। उनको मूर्तिकला के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। उनकी गणना समकालीन भारतीय मूर्तिकारों में होती है। वे आधुनिक भारतीय समकालीन वरिष्ठ मूर्तिकारों में बेहद ज़िंदादिल, जोशीले और संवेदनशील मूर्तिकार रहे।
बड़े गर्व की बात है कि उनके कृतियों का संग्रह ललित कला अकादमी, राष्ट्रीय आधुनिक कला गैलरी नई दिल्ली, साहित्य कला परिषद नई दिल्ली, चित्र कला परिषद बैंगलोर, राजघाट नई दिल्ली, पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र उदयपुर के संग्रह में जगह मिली है। बाल भवन नई दिल्ली, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ आदि कुछ नाम है साथ ही कई कृतियाँ भारत और विदेशों में कलाकारों के निजी संग्रह की शोभा बढ़ा रही हैं। उन्होने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शिविरों में भी बड़ी संख्या में मेरी भागीदारी की। यह भागीदारी उनके क्षितिज को समृद्ध और व्यापक बनाने में योगदान दिया। उनके मूर्तिकला और लेखों की प्रतिकृति भारत और विदेशों में विभिन्न पत्रिकाओं जैसे दिनमान, साप्ताहिक हिंदुस्तान, कला समाचार, धर्मयुग, आज कल, जनसत्ता, ललित कला समकालीन, द पायनियर, द हिंदू, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, नेशनल हेराल्ड, समकालीन ललित कला अकादमी और कला दर्शन सहित अनेकों पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। 1963 और 1968 में गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, पुरस्कार, लखनऊ से सम्मानित किया गया। 1965, 70 और 1979 में सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकला के लिए यूपी राज्य ललित कला अकादमी पुरस्कार मिला, तो 1966 में प्रिंसिपल पुरस्कार का विजेता, गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, लखनऊ 1970 में एनडीएमसी पुरस्कार, नई दिल्ली से सम्मानित किया गया। ऐतिहासिक क्षण 1979 में आया जब कांस्य में मेरी कृति पोलेन ने मूर्तिकला के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। इसके बाद 1980 और 1998 में साहित्य कला परिषद पुरस्कार और 1991 और 1998 में एआईएफएसीएस पुरस्कार ने गौरव बढ़ाया।
रमेश बिष्ट के कलाकृतियों की अंतिम एकल प्रदर्शनी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सराका आर्ट गैलरी मे डॉ. वंदना सहगल के क्यूरेशन में 9 अक्टूबर 2022 को लगाई गई थी जिसमें उनके 26 चित्रों (रेखांकन) के साथ 2 मूर्तिशिल्प भी प्रदर्शित किए थे। उनकी 1990 के बाद यह लखनऊ की यात्रा थी। उस दौरान उन्होने लखनऊ के कला महाविद्यालय का भी भ्रमण करते हुए अपने छात्र जीवन की अनेकों किस्सों को साझा किया था। तथा कला महाविद्यालय के वर्तमान दृश्य को देखकर बड़ा दुःख भी जाहिर किया था। भ्रमण के दौरान कला महाविद्यालय के हास्टल जो कि उनके बड़े भाई पद्मश्री रणवीर विष्ट के नाम से है उस स्थान पर जाकर मिट्टी को छुआ और माथे पर लगाया और नमन किया था। बिष्ट के द्वारा ब्रॉन्ज में बनाया गया लखनऊ के लोहिया भवन में लोहिया के, अंबेडकर विश्वविद्यालय में अंबेडकर के लाइफ साइज की मूर्ति और यूपी विधानसभा में सुभाष चंद्र बोस के पोर्ट्रेट भी लगे हुए हैं।
रमेश बिष्ट के निधन पर भावपूर्ण अपने भाव व्यक्त करते हुए वरिष्ठ कलाकार जय कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि “लखनऊ कला महाविद्यालय में प्रशिक्षित रमेश बिष्ट एक अत्यंत कर्मठ और स्वाबलम्बी कलाकार थे। सृजन के प्रति कृतसंकल्प रमेश ने एक मूर्तिकार के रूप अपनी एक अलग कार्य शैली विकसित कर कला जगत में विशिष्ट पहचान बनाई जिसके लिये उन्हें सदैव याद किया जायेगा। अपने प्रशिक्षण काल में वह मेरे निकट रहे थे और उनकी सदैव कुछ अलग कर गुज़रने की कोशिश और सृजनात्मक ऊर्जा बहुत प्रभावित करती है। रमेश का इतनी जल्दी चला जाना लखनऊ कला महाविद्यालय और हम सब के लिये अपूर्ण क्षति है।”
चित्रकार, कला समीक्षक/इतिहासकार एवं कला शिक्षाविद् अखिलेश निगम ने कहा कि रमेश जी मेरे समकालीन थे, और हम एक साथ ही लखनऊ कला महाविद्यालय से प्रशिक्षित हुए थे। फर्क सिर्फ इतना था कि वे मूर्तिकला विभाग में थे। उस समय उनके बड़े भाई प्रो. रणबीर सिंह बिष्ट आर्ट मास्टर्स ट्रेनिंग विभाग के अध्यक्ष हुआ करते थे, जिनकी प्रेरणा से उन्होंने अपने घर लैंसडाउन (अविभाजित उत्तर प्रदेश) से आकर लखनऊ आर्ट्स कालेज में प्रवेश लिया था। वे ऊर्जावान युवा थे। वे कला गुरु अवतार सिंह पंवार के शिष्यों में रहे। प्रख्यात मूर्तिकार पंवार जी शांतिनिकेतन से प्रशिक्षित थे। वे मृत्तिका और पत्थरों में बड़ी सुघड़ता से अपने मूर्ति शिल्पों को आकार देते थे। उनकी रेखाओं में शांतिनिकेतन की लयबद्धतआ का प्रभाव था। रमेश के रेखांकनों में भी मुझे वहीं प्रभाव प्रतिबिंबित दिखता है। हमारे स्कूल (लखनऊ आर्ट्स कालेज) से प्रशिक्षित जानी-मानी कलाकार गोगी सरोज पाल के देहावसान के कुछ ही दिनों बाद रमेश जी जैसे प्रतिष्ठित मूर्तिकार का विछोह हमें अंदर तक हिला गया है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें, और उनके परिवार को इस असहनीय दु:ख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें।
वरिष्ठ मूर्तिकार पांडेय राजीव नयन ने कहा कि प्रो. रमेश बिष्ट देश के अग्रणी मूर्तिकारों में एक थे। स्मारकीय मूर्तियों खासकर धातु मूर्ति ढलाई माध्यम की मूर्तियों में उनका विशिष्ट योगदान रहा है। लखनऊ कला एवं शिल्प महाविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत दिल्ली कला महाविद्यालय में लगभग 30 वर्षों तक कला शिक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज उनके दर्जनों शिष्य देश के प्रमुख मूर्तिकार के रूप में अपनी पहचान बना चुके है। उनके अचानक निधन से देश एवं लखनऊ के कलाकारों एवं कला प्रेमियों में एक ऐसी रिक्ति बन गई है जिससे सभी असहज महसूस कर रहे हैं।
लखनऊ कला महाविद्यालय के डीन डॉ. रतन कुमार ने कहा कि प्रोफेसर रमेश चंद्र बिष्ट बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे लगभग 30 वर्ष पहले मेरी पहली मुलाकात दिल्ली आर्ट कॉलेज में हुआ था एवं दूसरी मुलाकात लगभग लखनऊ स्थित सराका आर्ट गैलरी में हुई थी। प्रोफेसर रणवीर सिंह बिष्ट के आकस्मिक निधन से मूर्ति कला के क्षेत्र में एक अपूरणीय क्षति हुई है।
चित्रकार व कला समीक्षक जय त्रिपाठी ने कहा कि पिछले 3 वर्षो में उन्होंने अनिगनत कालजई रचना रची जिस पर छोटे और बड़े आकार के कई चित्र अपने अंतिम दिनों तक रचते रहे थे। इन चित्रों की श्रंखला में प्रत्येक रचना अलग-अलग आकारों में होते हुए भी अपने रचित समय का दस्तक देती हैं। जिनमें काली सुर्ख स्याही का प्रयोग बड़े नाटकीय अंदाज में किया गया है। काली स्याही से काम करना इनको मन से भाता था और यदि मोटे कागज का पेपर या जिस सतह पर उन्हें काम करना हो वह बड़े आकार का हो तब तो उनको इस कदर भाता था कि वह तब तक उसे दूर नहीं होते जब तक कि उसमें कोई आकृति ना गढ़ दें। बड़े-बड़े ब्रश को स्याही में भीगा के वह अपने अंदाज से यूँ ही नही चला पाते बल्कि पेन, पेंसिल, खडी़या, चौक, चारकोल या और भी कुछ जिससे रेखाएं खींची जाएं उनसे आकृतियों को रचते हुए आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं कि उनके रचित चित्रों को देखने वाला विस्मित भाव से बस उसको निहारता रह जाता है।
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