Climateकहानी, कोलकाता। संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा बैठक दुबई में आज से शुरू हो गयी है और इसकी सफल शुरुआत को ले कर तमाम कयास लगाए जा रहे हैं। फिलहाल इस बैठक की शुरुरात में दुनिया के लगभग सभी देश, दुनिया भर के कमजोर देशों को ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले अत्यधिक खराब मौसम से निपटने में मदद करने के लिए बनाए किए गए लॉस एंड डैमेज फंड को चलाने के विवरण पर सहमत होने के लिए तैयार हैं।
अगर यह सहमति बन जाती है तो यह दुबई में चल रही COP28 की एक बड़ी सफलता बन जाएगी। ऐसे में बड़ा सवाल बनता है कि क्या क्या COP28 लॉस एंड डैमेज फंड को चलाने पर सहमति बनाने में सक्षम होगा? जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में अपना पैसा लगाने की जिम्मेदारी अमीर देशों पर है क्योंकि पहले ही इस दिशा में कार्यवाही के लिए बहुत देर हो चुकी है।
पिछले साल शर्म अल-शेख में घोषित लॉस एंड डैमेज फंड पर वैश्विक समुदाय द्वारा की गई प्रगति के लिए सभी की निगाहें सीओपी 28 पर हैं। सितंबर में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) की ट्रांसनेशनल कमेटी की रिपोर्ट में फंडिंग व्यवस्था को चालू करने की कोशिश में “महत्वपूर्ण प्रगति” का उल्लेख किया गया था, लेकिन यह देखना होगा कि क्या यह किसी बड़ी घोषणा में तब्दील होता है।
UNFCCC वेबसाइट का कहना है कि COP28 के मनोनीत अध्यक्ष और जलवायु परिवर्तन के लिए संयुक्त अरब अमीरात के विशेष दूत, सुल्तान अहमद अल जाबेर ने देशों से फंडिंग स्रोतों की पहचान करने और वित्तपोषण व्यवस्था को परिभाषित करने में रचनात्मक होने का आह्वान किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि फंड पर्याप्त हैं और कुशलतापूर्वक वितरित किए गए हैं। इसलिए, जबकि मिस्र में जलवायु शमन के लिए हानि और क्षति कोष की लंबे समय से चली आ रही मांग नवंबर 2022 में पूरी हो गई, धन के वितरण और कोष में योगदान के लिए एक तंत्र की स्थापना एक जटिल मुद्दा बनी हुई है।
क्या है लॉस एंड डैमेज फंड?
लॉस एंड डैमेज फंड एक प्रकार का क्षतिपूर्ति पैकेज है जहां अमीर देशों को विकासशील देशों को नुकसान की लागत का भुगतान करना पड़ता है। कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (सीओपी) के सदस्य देश, लगभग तीन दशकों की कठिन यात्रा के बाद ऐसे किसी फंड की स्थापना पर सहमत हुए हैं।
लॉस एंड डैमेज फंड का विचार कैसे आया?
साल 2015 में COP21 में पेरिस समझौते ने लॉस एंड डैमेज फंड के लिए आधार तैयार किया। COP21 में यह पहली बार था कि अमीर देशों ने अंततः स्वीकार किया कि चरम मौसम की घटनाओं से होने वाले नुकसान और क्षति या लॉस एंड डैमेज को पहचानने की आवश्यकता है। लेकिन इससे जलवायु कार्यवाही वित्तपोषण के लिए अलग कोई ठोस मुआवजा नहीं मिला। जो था वो भी बहुत कम पड़ रहा था। ऐसा माना गया कि लॉस एंड डैमेज फंड लगभग सात साल बाद मिस्र में COP27 में स्थापित किया जाएगा। लेकिन हुआ नहीं ऐसा कुछ।
लॉस एंड डैमेज फंड का समर्थन करने वाले देश
भारत लॉस एंड डैमेज फंड के लिए ग्लोबल साउथ से आने वाली एक महत्वपूर्ण आवाज है। एलायंस ऑफ द स्मॉल आइलैंड स्टेट्स (एओएसआईएस) जैसे अन्य संगठन, जो एक अंतरसरकारी संगठन है जो पर्यावरण नीतियों से संबंधित वकालत करता है, भी इस विचार को आगे बढ़ाने में भूमिका निभाई।
बाधा कहां थी?
संयुक्त राष्ट्र के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक, अमेरिका का यूएनएफसीसीसी निर्णयों पर सबसे दूरगामी प्रभाव पड़ा है, विशेष रूप से विकासशील देशों को वित्तीय भुगतान प्रतिबद्धताओं से संबंधित निर्णयों पर। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, जिन्हें जलवायु परिवर्तन से इनकार करने वाला कहा जाता था, के कार्यकाल के दौरान लॉस एंड डैमेज फंड के इर्द-गिर्द बातचीत में भारी गिरावट आई।
लॉस एंड डैमेज फंड की प्रासंगिकता
यूनिवरसिटि ऑफ डेलावेयर ने इस फ़ंड की एनालिसिस की है और बताया है कि इस फ़ंड के संचालन के लिए किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए। इस एनालिसिस के अनुसार यह रिपोर्ट देखती है कि जलवायु परिवर्तन दुनिया के पैसे और अर्थव्यवस्थाओं को कैसे प्रभावित कर रहा है। इससे पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन विशेष रूप से गरीब देशों और गर्म क्षेत्रों के लिए समस्याएं पैदा कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमीर देशों को गरीब देशों को इन मुद्दों से निपटने में मदद करनी चाहिए।
वैश्विक स्तर पर, 2022 में, जलवायु परिवर्तन ने पहले ही दुनिया की कुल धनराशि (जीडीपी) को 6.3% कम कर दिया है। लेकिन ये असर हर जगह एक जैसा नहीं होता. अमीर देश कम प्रभावित होते हैं, और कुछ को जलवायु परिवर्तन से लाभ भी होता है। लेकिन गरीब देशों, विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका में, सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं, और हर साल उन्हें 14.1%, 8.1% और 11.2% धन का नुकसान हो रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विकसित देशों को कम नुकसान या लाभ होता है, जबकि सबसे कम विकसित देशों को 8.3% धन का नुकसान होता है। यह वैश्विक असमानता को बदतर बनाता है, और यह विकासशील देशों को इस अनुचित बोझ से निपटने में मदद करने के लिए योजनाएं बनाने की मांग करता है।
रिपोर्ट इस बारे में भी बात करती है कि जलवायु परिवर्तन पैसे और हमारी चीज़ों को कैसे प्रभावित करता है। अमीर देशों को भले ही ज़्यादा नुकसान न हो, लेकिन अन्य, जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों को, बहुत कुछ खोना पड़ता है। इससे उनका विकास करना और मजबूत बने रहना कठिन हो जाता है।
यह रिपोर्ट दुनिया भर के नेताओं और समूहों के लिए मददगार है, खासकर जब वे COP28 की तैयारी कर रहे हों। यह यह समझने के लिए अनुसंधान विधियों के मिश्रण का उपयोग करता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण कितना पैसा और चीजें खो जाती हैं।
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