डीपी सिंह की रचनाएं

जन्म मिलता है हमें जैसा है प्रारब्ध किन्तु
मन वाणी गुण कर्म प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं

परमार्थ त्याग तप क्षमा दान सत्य और
पुरुषार्थ से ही जन देवत्व को पाते हैं

मातु-पितु आयसु को शिरोधार्य कर के जो
महलों के सुख त्याग वन चले जाते हैं

दानव दलन करें, मर्यादा वहन करें
तब जा के राम पुरुषोत्तम कहाते हैं

डीपी सिंह

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