बात बात में
(मनहरण घनाक्षरी छन्द)
बात जो निकलती है, दूर तक जाती है वो
मीठी हो तो बात-व्यवहार वो बढ़ाती है
बातों से ही इज़हार, बातों से ही मनुहार
प्यारी बात जंगल में मंगल कराती है
बात बिगड़े जो कहीं, बात बढ़ती है वहीं
बातों ही बातों में कहीं बात बन जाती है
बात का बतंगड़ न बन जाये, ध्यान रखे
उसकी है जय जिसको ये कला आती है
–डीपी सिंह