माथे पे मयूर पंख, होठों पे मुरलिया है
मृग-सा सरल तन, मन है मृगेन्द्र का
पालने में पूत पूतना को मार डालता है
अभिमान करे ध्वंस कंस के गजेंद्र का
नन्दलाल ग्वाल-बाल संग यमुना के तीर
खेल-खेल में ही फन नाथता नागेंद्र का
एक उँगली पे उठा लेता है गोवर्धन को
दर्प चूर करना हो जब भी देवेन्द्र का
— डीपी सिंह