डीपी सिंह की रचनाएं…

राजनीति

क्षेत्र-जाति से है प्रीति, बिगड़ी है राजनीति
राज बचा और नीति तार तार हो गई

पढ़ कर सड़कों पे माँगते हैं आरक्षण
अनपढ़ नेताओं की सरकार हो गई

परिवार दल हुआ, दल दलदल हुआ
और कहीं हार ही गले का हार हो गई

नेताओं के गोदामों में धन के पहाड़ लगे
जनता पॅ ऋण की ही, भरमार हो गई

–डीपी सिंह

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