डीपी सिंह की रचनाएं

शाश्वत सत्य

नीति कह लें विभीषण भले ही खरी
रीति समझा ले कितनी भी मन्दोदरी
पर अहंकार चढ़ता है जब शीश पर
एक क्या, जाती दस शीश की मति हरी।

दुर्ग, दिव्यास्त्र थे, वाहिनी निशिचरी
सामने उसके क्या थी कटक वानरी
जब चढ़ा काल दसशीश के शीश पर
रह गई सारी माया धरी की धरी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

12 − one =