डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया

सूर्पणखा की नाक से, शुरू हई जो डाह
कैसे पूरी स्वर्ण की, लंका हुई तबाह
लंका हुई तबाह, नहीं है उसे थाह, पर
आह! अगाड़ी आज, चली है उसी राह पर
है उद्धव सरकार, बनी रावण की लंका
और मलिक परिवार, बना है अब सूर्पणखा

डीपी सिंह

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