डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया

जैसे ही लेते चरस, गिरी किसी पर गाज
बोने चरस समाज में, निकले नेता आज
निकले नेता आज, त्याग कर काज राज के
करते गन्दे काज, बने हैं कोढ़ खाज के
कह डीपी कविराय, घृणित हैं नेता ऐसे
हैं थाली के छेद, असल में इनके जैसे

डीपी सिंह

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