कुण्डलिया
भारी दुविधा में फँसे, सोच सोच श्रीमान।
मधुशाला के वास्तु का, कौन करे निर्मान।।
कौन करे निर्मान, कृपा लक्ष्मी की बरसे।
दक्षिण या ईशान, दुकान चहूँ दिसि हरसे।।
कह डीपी कविराय, होय सब दुनियादारी।
भीतर रक्खी वस्तु, वास्तु पर होती भारी।।
-डी पी सिंह