Boy Kanhaiya and his friends played "Chhadimar Holi" in Gokul.

गोकुल में बाल कन्हैया व सखाओं ने खेली “छड़ीमार होली”

  • पर्यटन विभाग, उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने कराए होली के मंचीय कार्यक्रम

कुमार संकल्प, लखनऊ : भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली उत्तर प्रदेश के मथुरा में रंगभरनी एकादशी के अगले दिन गोकुल की गलियों में छड़ीमार होली का आनंद बरसा। नन्हे बाल कृष्ण व उनके सखाओं के संग गोपियों ने होली खेली। गोपियों के हाथों में लाठी के स्थान पर छोटी-छोटी छड़ी लगी थीं जिनसे वे होली खेल रहे कन्हैया को मार रहीं थीं। छड़ीमार होली कृष्‍ण के प्रति प्रेम और भाव का प्रतीक रही।

Boy Kanhaiya and his friends played "Chhadimar Holi" in Gokul.

पर्यटन विभाग, उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद और जिला प्रशासन ने गोकुल में भीड़ से निपटने के लिए व्यापक इंतजाम किए। नंदभवन के बाहर उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने मंच तैयार कराया जहां सायं तक होली के लोकगीत, लोक संगीत व होली मंचन के कार्यक्रम प्रस्तुत किए गये।

ब्रज की होली देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। गोकुल नगरी में होली खेलने का अंदाज बिल्कुल ही अलग है। यहां रंग, अबीर-गुलाल के अलावा फूल, लड्डू और छड़ी से होली खेली जाती है। ब्रज में यह एक ही जगह ऐसी है जहां लट्ठ के बजाय छड़ी से मार खाकर लोग खुद को भाग्यशाली समझते हैं। ये छड़ी होली खेलने वालों के अलावा दर्शकों पर भी पड़ती हैं।

Boy Kanhaiya and his friends played "Chhadimar Holi" in Gokul.

फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को ये छड़ीमार होली गोकुल में खेले जाने की परंपरा है। यह छड़ीमार होली खेलने की शुरुआत नंदभवन में ठाकुरजी के समक्ष राजभोग का भोग लगाकर की गयी। होली खेलने वाली गोपियों ने कई दिन पहले से छड़ीमार होली की तैयारियां शुरू कर दी थीं। 

बालक कृष्ण बचपन में बड़े ही नटखट थे। वे गोपियों को काफी परेशान भी करते थे। गोपियां कृष्ण को सबक सिखाने के लिए उनके पीछे छड़ी लेकर भागा करती थीं। छड़ी का इस्तेमाल कान्हा जी सिर्फ डराने के लिए करती थीं। इसी परंपरा के अंतर्गत आज गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है। बाल कृष्ण को कहीं चोट न लग जाए, इसलिए लाठी की जगह छड़ी का इस्तेमाल किया जाता है।

Boy Kanhaiya and his friends played "Chhadimar Holi" in Gokul.

(रिपोर्ट-कुमार संकल्प)

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