“सिरेमिक पॉटरी एक कलात्मक माध्यम है अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए – मनोज शर्मा”

‘पॉटरी, सिरेमिक के ढेर सारी बारीकियों से अवगत हुए वास्तुकला एवं योजना संकाय के छात्र।‘
‘चाक के ऊपर एक सुंदर फूलदान का निर्माण करना एक जादुई एहसास है।‘

भूपेंद्र कुमार अस्थाना, लखनऊ। मिट्टी का महत्व न केवल अन्न उपजाने के लिए ही नहीं, बल्कि मिट्टी से अनेक दैनिक उपयोग की वस्तुएँ और कलात्मक शिल्प भी गढ़े जाते हैं। यह एक माध्यम है अपनी भावनाओं को कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए। विरासत के अनुसार आंचलिक मांग के अनुरूप कुम्हार जाति के लोग मिट्टी के बर्तन,घड़े आदि उपयोग में आने वाली मूर्तियाँ या अन्य वस्तुएं बनाते थे जो आज भी वे अपनी परंपरा के अनुसार कर रहे हैं। लेकिन अब साज सज्जात्मक शिल्प के विकास के साथ टेराकोटा शैली के मजबूत शिल्प और वस्तुएं बनायीं जाने लगी हैं। अब इस कार्य के लिए किसी विशेष जाति का जिक्र नहीं रह जाता है क्योंकि इस विधा ने एक विस्तृत आकार ले लिया है।

आज के युवा मिट्टी और सिरेमिक कला की ओर अत्यधिक आकर्षित हो रहे हैं, इसका कारण यह है कि भारत के गांवों में पारंपरिक रूप से इस विधा में काम करते कुम्हारों की यादों से भी कुछ कलाकार बचपन के दिनों से ही मिट्टी और सिरेमिक कला से प्रभावित हैं। आज सिरेमिक कला को लोग अपने घरों की साज सज्जा के लिए बहुत अधिक पसंद कर रहे हैं। सिरेमिक की प्रक्रिया एक वैज्ञानिक के तौर पर की जाती है। इसमें मिट्टी के साथ अनेक रसायनों का प्रयोग किया जा रहा। साथ ही नई तापन तकनीक, ग्लेज़िंग विधियों और ताप नियंत्रित भट्टियों के साथ विकसित हो रही है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इस सिरेमिक विधा के कामों को एक नया बाजार और स्थान मिल रहा है।

हालांकि इतिहास में जाएँ तो भारत में मिट्टी के बर्तनों को बनाने की कला की शुरुआत मध्य पाषाण काल से शुरू हुई तथा धीरे-धीरे इन्हें बनाने की तकनीकों में भी अनेकों परिवर्तन आये। यहाँ मिट्टी के बर्तनों को बनाने की कला जिसे हम पॉटरी कहते हैं, जो कि अभी भी एक उच्च कोटि की कला है। कलाकार आज न केवल अपने रचनात्मक पक्ष को तलाश रहे हैं, बल्कि स्टूडियो के रूप में भी अपने जीविका के साधन का निर्माण भी कर रहे हैं। मिट्टी के बर्तनों की कला पुरानी,अधिक जीवित और विकसित रही है। मिट्टी के बने कलात्मक पात्र वर्तमान समय में कला बाजार में धूम मचा रहे हैं।

सोमवार को लखनऊ स्थित वास्तुकला एवं योजना संकाय, डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय, टैगोर मार्ग में पॉटरी एवं सिरेमिक विधा पर एक व्याख्यान और प्रेजेंटेशन का आयोजन किया गया। इस व्याख्यान और प्रस्तुति के लिए पुणे महाराष्ट्र से आए पॉटरी विशेषज्ञ मनोज शर्मा रहे। इन्होने संकाय के छात्रों को पॉटरी,सिरेमिक से जुड़ी ढेर सारी जानकारियों एवं बारीकियों से अवगत कराया साथ ही अपने अपने कृतियों की एक प्रेजेंटेशन भी दिया। इस अवसर पर वास्तुकला एवं योजना संकाय के प्रथम वर्ष के छात्र सहित शिक्षक गिरीश पाण्डेय, धीरज यादव, भूपेंद्र कुमार आस्थाना उपस्थित रहे। उपस्थित लोगों ने इस विधा को लेकर अनेकों प्रश्न भी रखे जिसका उत्तर मनोज शर्मा ने दे कर संतुष्ट किया।

मनोज एक विशेष इफेक्ट “क्रिस्टल इफेक्ट” के भी एक्सपर्ट हैं। इन्होने अनेकों प्रयोग किए हैं। क्रिस्टल इफेक्ट के बारे में बताया कि क्रिस्टल में जिंक 20 से 25 प्रतिशत होता है। जिंक की मुख्य भूमिका होती है इसमें। पॉट को मिट्टी से बनाने के बाद बिस्किट फायर करते हैं फिर गलेजिंग करते है क्रिस्टलाइन की फायरिंग 1250 से 1280 डिग्री तापमान पर किया जाता है। यह सधे हाथों का ही कमाल होता है। नियमित रूप से ग्लेज़ बनाने की प्रक्रिया में काम करने की अपेक्षा क्रिस्टलीय ग्लेज़ बनाने की प्रक्रिया जो अधिक तरीके, तापमान ,समय काफी महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि इस इफेक्ट के लिए उपयोग में लाने वाले रासायनिक पदार्थ में पात्र से नीचे जाने की प्रवृत्ति होती है और फायर-साइकिल एकदम सही तापमान माप पर निर्भर करती है।ग्लेज के बहुत सारे इफेक्ट के लिए अलग अलग रसायनिक तत्व ग्रिस्टली बोरेट,कॉपर कार्बोनेट के प्रयोग होते हैं।

भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि मनोज ने अपने व्याख्यान की शुरुआत इस बात को रखते हुए की ,कि पहले जंगलो में हाथी अपने सर को मिट्टी में सहलाते थे जिससे मिट्टी में एक आकार बन जाया करता था और फिर कभी जंगलो में आग लगने की वजह से वहाँ की मिट्टी पक जाती थी और वह एक कंटेनर का रूप लगता था। वहाँ से हमें मिट्टी के बर्तनों के बारे में पता चलता है। पॉटरी विशेषज्ञ मनोज शर्मा, जमशेदपुर झारखंड के मूल निवासी है। वर्तमान में पुणे, महाराष्ट्र के कात्रज अम्बे गांव में में पिछले बीस वर्षों से इस विधा में कार्य कर रहे हैं और सिरैमिक्स, पोर्सिलीन, बोन क्ले, चाइना क्ले के प्रोडक्ट पर काम करते रहे हैं और बहुत सारे प्रयोग भी किया है। इन्होने पॉटरी व सेरामिक में स्नातक व स्नातकोत्तर (1994-2000) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से किया। इन्होने बहुत से प्रदर्शनियों, कैम्प, कार्यशालाओं में भाग लिया है और इनकी बनाए हुए कलाकृतियों का संग्रह देश विदेशों में संग्रहीत है।

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