दुर्गेश वाजपेयी की कविता : “हे कश्मीर!”
“हे कश्मीर!” हे! कश्मीर तेरी बात क्या करें हम अब, तू खुद ही खुद में
बेगुनाही की सज़ा मिलती है ( व्यंग्य-कथा ) : डॉ लोक सेतिया
काली रात के अंधेरे में सुनसान वीरान जगह उन सभी बड़े बड़े लोगों की दुनिया
दुर्गेश वाजपेयी की कविता : “अभिशाप बना है”
“अभिशाप बना है” निस्तब्धता से उगा वेग कहाँ देखा? मन में उठे ज्वाला सा तेज
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स्वाति मिश्रा की कविता : “सूरत बनाम सीरत”
“सूरत बनाम सीरत” आइने ने कहा इक दिन, “क्यूं सिर झुकाए बैठी हो? ज़रा मेरी
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विजय कुमार गुप्ता की कविता : “सत्यमेव जयते”
“सत्यमेव जयते” सत्यमेव जयते, सत्यमेव जयते पीछे रह जाओगे असत्य के रहते होगी जीत सत्य
अजय तिवारी ” शिवदान ” की कविता : ” ठूंठ “
” ठूंठ “ लहलहाता था, छाया भी देता था। हवा बहाता था, ठंड पहुंचाता था।
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गंदी दृष्टि (लघुकथा) :– अदिति कुमारी सिंह
पापा के साथ गई 10 साल की दिव्या को यह पता नहीं की लोगों की
दीपा ओझा की कविता : “मैं स्त्री हूँ”
“मैं स्त्री हूँ” मैं स्त्री हूँ सुना था कभी लोगों से देवी स्वरूप हूँ क्योंकि
साहित्य का खुला मंच और “साहित्य समाज” का लोकार्पण
तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर : रेल शहर खड़गपुर मंगलवार को एक विरल साहित्यिक परिघटना का
रिया सिंह की कविता : “ज्ञान की देवी”
“ज्ञान की देवी” जो जड़ में भी, चेतना का विस्तार कर दे अपने ज्ञान की
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