पुस्तक समीक्षा : दिल से निकले ‘उद्गार’

समीक्षक : सुधीर श्रीवास्तव, गोण्डा, उत्तर प्रदेश। विलक्षण हौसलों के प्रतीक, शब्दों के कुशल चितेरे हंसराज सिंह ‘हंस’ ने अपने प्रथम काव्य संग्रह ‘उद्गार’ की भूमिका मेंं स्वयं स्वीकार किया है कि प्रस्तुत काव्य संग्रह मेरे मन में उठने वाली भाव तरंगों का कलमबद्ध स्वरूप है। संग्रह की भूमिका मेंं उन्होंने संग्रह की ग्राह्यता के लिए पूरी तरह पाठकों पर छोड़ दिया है। लेखकीय यात्रा की प्रथम चार पंक्तियों मेंं पुलवामा के शहीदों को समर्पित है
कुछ बात बता कर चले गये,
कुछ सीख सिखा कल चले गये।
हम मस्त रहे गुलदस्तों मेंं,
वे जान लुटाकर चले गये।।
को उद्धरित करने के साथ शहीदों को नमन करते हुए पूत के पाँव पालने मेंं ही दिखाई दे जाते हैंं का संकेत देने के साथ संकलन में प्रत्यक्ष और परोक्ष सहयोगियों का आभार व्यक्त किया है।

संयुक्त राज्य निर्वाचन आयुक्त कृष्ण कुमार गुप्ता का शुभांशसा पत्र शासकीय क्षेत्र में हंस जी के मान, प्रतिष्ठा को रेखांकित करता है। प्रकाशकीय में सी.एस. “कृष्णा” के अनुसार हंस जी ने अपनी रचनाओं मेंं आंतरिक सौंदर्य से लेकर लोक सौंदर्य और उसके मध्य आम व्यक्ति के संघर्षों को बखूबी उभारा है। “आवाज साहित्यिक संस्था” के संयोजक मूर्धन्य साहित्यिक पुरोधा और आध्यात्म को आत्मसात कर जीने वाले सहृदय और आम लोगों से जुड़कर अपना बनाने के साथ अपनी जादुई वाणी से आत्मविश्वास जागृति कराने की विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉ. सुनील दत्त थपलियाल के अनुसार साहित्यकार समाज की वेदना, कष्ट, पीड़ा इत्यादि संवेदनाओं को समझता है और उसके निवारण के लिए तत्पर रहता है। उन्होंने अपनी एक पंक्ति कि “हंस जी संघर्षों की मजबूत दीवार के प्रेरणा स्तंभ हैं” में हंस जी के समूचे व्यक्तित्व को रेखांकित कर दिया है।

गणेश वंदना, सरस्वती वंदना, गुरू वंदना के साथ प्रस्तुत संकलन कश्मीर की खूबसूरती का बखान कर देश की मिट्टी से खुद को जोड़कर अपने उद्गार व्यक्त करने के क्रम मेंं माँ की महिमा का बखान कर कवि का धर्म निभाते हुए ग्राम देवता को भी नमन कर मनमीत से मीठी वाणी मेंं बसंत के आगमन की सूचना के साथ बस आन मिलो एक बार पिया का आग्रह कर विनय वंदना कर माँ गंगा को पुकारा है। सवेरा पर अपनी कामना संग माँ गंगा की वंदना के साथ ज्ञान का प्रकाश फैलाने के साथ हुस्न उसका कमाल था या रब मेंं सौंदर्य बोध कराते हुए गरिमा को खंडित नहीं करने के आवाहन संग कलयुगी तपस्या से संदेश देते हुए जीने का आवाहन कर गृहस्थी के सूत्र को रेखांकित करने के बाद माँ गंगा की व्यथा से व्यथित माँ वीणावादिनी से वर माँग धन की उपयोगिता पर कलम चलाकर जानवर हैं….. समाज पर खूबसूरत कटाक्ष का मौका न चूकते हुए कृपानिधान की शरण मेंं पहुँचे।

होली की शुभकामनाएँ देते हुए आगे माँ भगवती की वंदना संग प्रभु की शरण मेंं अपने को समर्पित कर ईश वंदना, हे मुरली वाले श्याम से जुड़कर प्राणवायु के साथ योग और व्यायाम सहित परिश्रम को आधार बताते हुए बेटी जीवन रेखा पर स्वार्थी दुनिया की खामोशी के साथ विद्यार्थियों से जुड़कर उन्मुक्त हास्य से माहौल को कामयाबी की राह पर बढ़ाते हुए कर्म फल के चुनाव को विद्रूप होते बोल से चिन्तित, माँ वागीश्वरी की वंदना कर संयमित भाव से प्रकृति के उपहार को स्वास्थ्य के मूल मंत्र से जोड़ने के साथ बचपन की यादों मेंं जाकर विषवृक्ष से सचेत कर नाविक की भूमिका मेंं भी योग की महिमा संग प्रभु राम के भ्रातृप्रेम, गुरू की महिमा, प्रेम और भक्ति की शक्ति के संसर्ग मेंं तन और मन के साथ जीवन साथी के सच्चा धर्म के बीच गंगा की व्यथा की पीड़ा के बीच, बेटी को खूब पढ़ाकर दुनिया का उद्धार कर सच्चा मित्र होने के अलावा हमारे गाँव का पेड़ मौन तपस्वी बन समय के फेर की पीड़ा और वैश्विक महामारी कोरोना का कहर झकझोर रहा है।

माँ भगवती के नौ स्वरुपों पर छन्द कुण्डलियाँ के माध्यम से वर्णन संग अक्षय वरदान और विदाई और माँ वागीश्वरी की वंदना उनके आदि अनादि और अदृश्य सत्ता पर अमिट विश्वास को दर्शाता है। द्रौपदी का चीरहरण ने तो उन्हें बार बार रुलाया ही है, हम आप यदि इससे बच सके तो शायद सबसे पत्थर दिल होने का भारत रत्न पाने की श्रेणी मेंं खड़े हो सकते हैं। याद है मुझको रक्षाबंधन का विश्वास दिलाते हुए हे नीलकंठ विषपान करो का आग्रह महुवा लोकगीत से पर्यावरण संरक्षण का संदेश ,प्रेरणा मार्गदर्शन देती कविता की महत्ता, वंदना योग्य मान संकलन को परिणति दी है।
संकलन की रचनाएं चुम्बकीय ,जन मानस के इर्दगिर्द घूमती हैं। आध्यात्मिक और धार्मिक रचनाओं की अधिकता होने के बाद भी रचनाओं का बिखरा होना सवाल खड़े करता है। यदि ऐसी सभी रचनाएँ क्रमानुसार होती तो संकलन की ग्राह्यता बढ़ सकती थी।

संक्षेप मेंं यह कहना गलत नहीं होगा कि कुछेक कमियों को नजर अंदाज कर दिया जाय तो लगभग सभी रचनाएँ सीधे पाठकों को जोड़ने मेंं समर्थ हैंं। यह हंस जी के सृजन कौशल को दर्शाता है और संकलन की सफलता की ओर स्पष्ट इशारा भी करता है। खूबसूरत आकर्षक मुखपृष्ठ और पुस्तक के पिछले पृष्ठ पर हंस जी का जीवनवृत उनके बारे में बहुत कुछ स्वमेव कह रहा है। 138 पृष्ठों का यह संकलन मधुशाला प्रकाशन भरतपुर राजस्थान से प्रकाशित मात्र 300 रुपये मूल्य का है। जिसे वर्तमान परिस्थितियों मेंं सामान्य ही कहा जायेगा। उद्गार की सफलता और हंस जी के स्वस्थ सानंद और सतत, सफल साहित्यिक यात्रा के गतिमान रहने की मंगल कामना के साथ।

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