श्रीराम पुकार शर्मा, हावड़ा। देशी शक्तियों से देश की राजनैतिक आजादी तो १९४७ में प्राप्त हो गई, परन्तु हमारा देशी समाज अभी भी तथाकथित अंग्रेजीयत के डर से सिकुड़ी परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी और पीड़ित थी। ऐसे में साहित्यिक क्षेत्र में भी स्वतंत्र लेखन मन-विचार से नारी सशक्तिकरण जैसे सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता रही थी, जिसके लिए वृहद स्तर पर साहित्यिक बुद्धिजीवी वर्ग में परिचर्चा चल रही थी। यह भार भी ऐसी ही थी, जिसे वर्तमान साहित्यकारों द्वारा ही वहन करने की अपेक्षा थी। ऐसी साहित्यिक परिस्थिति में ही नयी कहानी को आर्थिक, लैंगिक और वर्गीय असमानता की मजबूत कड़ी को खंडित करने के लिए और उनमें व्याप्त लंबी खाई को पाटने के लिए अपनी प्रखर लेखनी के साथ ही हिन्दी साहित्यिक पटल पर एक सशक्त लेखिका के रूप में अवतरित हुई थीं, लेखिका ‘मन्नू भंडारी’।
हिन्दी साहित्य जगत में ‘मन्नू भंडारी’ के नाम से विख्यात लेखिका का मूल नाम ‘महेंद्र कुमारी था। इनका जन्म मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा नगर में ३ अप्रैल, १९३१ को जाने-माने लेखक सुख सम्पतराय के साहित्यिक सुसज्जित आँगन में माता अनूप कुमारी की मातृत्व गोद में हुआ था। पिता ने अपनी नवजात कन्या शिशु को बड़े ही अभिमान सहित परिजन के मनोनुकूल नाम ‘महेंद्र कुमारी रखा था। महेंद्र कुमारी की प्रारंभिक शिक्षा भानपुरा नगर और अजमेर से पूर्ण हुई। उच्च शिक्षा के लिए वह कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुईं और स्नातक की परीक्षा उतीर्ण करने के उपरांत हिंदी भाषा और साहित्य में एम.ए. की डिग्री हासिल करने के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी चली गई।
महेंद्र कुमारी ने अध्यापन को ही अपनी जीविका बनाकर हिंदी प्रोफेसर के रूप में कोलकाता के बालीगंज शिक्षण सदन में १९५२-१९६१ में कार्य की शुरुवात की । तत्पश्चात कोलकाता के ही ‘रानी बिरला कॉलेज’ में १९६१-१९६५ तक अध्यापन कार्य की। कलकत्ता रहते हुए ही मन्नू भंडारी की मुलाकात हिंदी साहित्य जगत के प्रसिद्ध कहानीकार राजेंद्र यादव से हुई। पहले तो इनमें पुस्तकों, लेखकों और साहित्यिक विषयों पर चर्चा होतीं थी, जो बाद में समय के साथ-साथ व्यक्तिगत और फिर आत्मीय चर्चाओं में बदलने लगी। वह साहित्यिक चर्चा बाद में पारिवारिक और दंपती जीवन में परिणत हो गए। इस तरह इन दोनों साहित्यकारों का विवाह २२ नवम्बर १९५९ को कलकत्ता में हुआ। फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के अधीन ‘मिरांडा हाउस कॉलेज’ में १९६४-१९९१ तक अध्यापन कार्य कीं। हालाकि मनू भण्डारी और राजेन्द्र यादव १९८० के दशक में एक-दूसरे से अलग हो गए, लेकिन उन दोनों ने परस्पर कभी विवाह विच्छेद (तलाक) नहीं लिया था और राजेन्द्र यादव की मृत्यु २०१३ तक दोनों एक दूसरे के अच्छे दोस्त बने ही रहे थे। उसके बाद मन्नू भण्डारी विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की ‘प्रेमचंद सृजनपीठ’ की १९९२-१९९४ तक अध्यक्षा भी रही थीं।
महेंद्र कुमारी ने अपने लेखन-कार्य के लिए ‘महेंद्र कुमारी’ के स्थान पर उसी का लघु रूप ‘मन्नू’ को अपना लीं, जो हिन्दी साहित्य जगत में उनके नाम का ही पर्याय बन गया। उन्हें लेखन-कार्य अपने पिता सुख सम्पतराय से विरासत में प्राप्त हुई थी। उनकी पहली प्रकाशित कहानी ‘मैं हार गई, जो १९५७ में ‘हिंदी कहानी पत्रिका’ में प्रकाशित हुई थी। मन्नू भंडारी १९६० के दशक के नयी कहानी आंदोलन में एक मुख्य महिला लेखिका रही हैं । जब नयी कहानी आंदोलन अपने उत्थान की ओर अग्रसर था, तब उन्होंने हिंदी कहानी लेखन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी। उन्होंने लगातार नौकरी की, टीवी के लिए लिखा, फिल्मों के लिए लिखा और अनगिनत साहित्यिक पुस्तकों की भी रचना की हैं। फिर भी उन्होंने परिस्थितियों के समक्ष कभी नत-मस्तक न होकर अपनी शर्तों पर ही अपने जीवन को जिया है।
समयानुसार मन्नू भण्डारी ने हिन्दी कहानी और उपन्यास दोनों विधाओं में अपनी लेखनी दौड़ाई, जिनमें उन्होंने नारी स्वतंत्रता और नारी सशक्तिकरण संबंधित तथ्यों को ही साहित्यिक स्वरूप प्रदान की हैं। उनकी रचनाओं में मुख्य रूप से कामकाजी और शिक्षित महिलाओं के आंतरिक जीवन के चित्रण और परिवार, रिश्ते, लैंगिक समानता और जाति भेदभाव के विषयों पर आधारित है। उन्होंने नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार के बीच फंसा आम आदमी की पीड़ा और दर्द के प्रति अपनी अनुभूति को साहित्यिक जाम पहनाया है। इन्हीं विषयों पर आधारित उनका सबसे ज्यादा चर्चित दो उपन्यास – ‘आपका बंटी’ और ‘महाभोज’ हैं। ‘एक इंच मुस्कान’ की रचना उन्होंने अपने साहित्यकार पति राजेन्द्र यादव के साथ मिलकर संयुक्त रूप में की थीं, जो अपने आप में एक प्रयोगात्मक प्रयास रहा था। इनके अतिरिक्त उन्होंने कई दशकों तक अन्य सामाजिक और आर्थिक विषयों पर अपनी लेखनी को चलाती हुई हिन्दी लेखन-क्षेत्र में अतिसक्रिय रही हैं।
मन्नू भंडारी की साहित्यिक सम्पदाएँ –
कहानी संग्रह- एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है, त्रिशंकु, श्रेष्ठ कहानियाँ, आँखों देखा झूठ, नायक खलनायक विदूषक।
उपन्यास- आपका बंटी, महाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्कान और कलवा, एक कहानी यह भी।
पटकथाएँ- रजनी, निर्मला, स्वामी, दर्पण।
नाटक- बिना दीवारों का घर।
आत्मकथा- एक कहानी यह भी।
मन्नू भंडारी द्वारा रचित कहानी ‘यही सच है’ पर समर्थ निर्देशक बासु चैटर्जी ने १९७४ में ‘रजनीगंधा’ फिल्म बनाई थी, जो काफी प्रसिद्ध हुई। इसी तरह भ्रष्ट अफसरशाही, राजनीति और बिखरते हुए समाज के बीच संघर्ष करते हुए मध्यम वर्गीय आदमी की कहानी को आधार बनाकर उनके द्वारा १९७९ में रचित और प्रकाशित उपन्यास ‘महाभोज’ हिन्दी उपन्यास का एक मील का पत्थर साबित हुआ। उनकी अधिकांश रचनाएँ आज हिंदी से लेकर फ्रेंच, जर्मन और अंग्रेजी सहित अन्य कई भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई हैं।
मन्नू भण्डारी एक बहुत बड़ी लेखिका होने के साथ ही साथ एक अच्छी इंसान भी थीं। उनके अंदर मानवता, उदारता, स्नेह आदि भावनाएँ कूट-कूट कर भरी हुई थीं। उन्हें साहित्यिक उपलब्धियों के लिए समयानुसार अनगिनत साहित्यिक सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें वर्ष १९८१ में महाभोज के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सम्मानित, भारतीय भाषा परिषद्, कलकत्ता द्वारा वर्ष १९८२ में सम्मानित, वर्ष १९८२ में नई दिल्ली में ‘कला-कुंज सम्मान’ पुरस्कार से सम्मानित, वर्ष १९८३ में भारतीय संस्कृत संसद कथा समारोह द्वारा पुरस्कृत, वर्ष १९९१ में बिहार राज्य भाषा परिषद द्वारा सम्मानित, वर्ष २००४ में महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित, वर्ष २००६ में हिंदी अकादमी, ‘दिल्ली शलाका सम्मान’ से सम्मानित, वर्ष २००७ में मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन में ‘भवभूति अलंकरण’ से सम्मानित, के के बिड़ला फाउंडेशन ने उन्हें उनकी आत्मकथा ‘एक कहानी ये भी’ के लिए ’१८वाँ व्यास सम्मान’ से पुरस्कृत किया है।
१५ नवंबर, २०२१ में गुरुग्राम में मन्नू भण्डारी का ९० साल की आयु में निधन हो गया। नयी कहानी अभियान और हिंदी साहित्यिक अभियान के समय में लेखक निर्मल वर्मा, राजेंद्र यादव, भीष्म साहनी, कमलेश्वर इत्यादि ने मन्नू भण्डारी को अपने समय की सबसे प्रसिद्ध लेखिका बताया। अपनी महत्वपूर्ण कालजयी कृतियों के साथ मन्नू भंडारी हिंदी साहित्य गगन में एक देदीप्यमान नक्षत्र की तरह हमेशा चमकती रहेंगी। इंडियन एक्सप्रेस ने उन्हें “हिंदी साहित्य जगत की अग्रणी” के रूप में वर्णित किया।
श्रीराम पुकार शर्मा
अध्यापक व स्वतंत्र लेखक
ई-मेल सम्पर्क सूत्र – rampukar17@gmail.com
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