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अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। बात 1995 की है उस समय मैं बिहार स्थित बक्सर जिले के रेहियां गांव में रहता था। एक दिन की बात है मैं अपनें छोटे भाई के प्रव्रजन प्रमाण पत्र (माइग्रेशन सर्टिफिकेट) लेने के लिए पटना गया था। हमारे यहां से प्रत्येक दिन लोग पटना आया जाया करते हैं। अतः पटना में काम हो जाने के बाद मैंने उसी दिन घर वापस आ जाना बेहतर समझा कारण कि पटना में मेरा कोई परिचित नहीं था जहां रात को ठहरा जा सके। पटना स्टेशन से मैंने 5.30 में पैसेंजर ट्रेन पकड़ी। रास्ते में चेन पुलिंग होने के कारण अपनें करीब के स्टेशन टुंडीगंज पहुंचते-पहुंचते रात को 1 बज चुके थे। चांदनी रात और बरसात का मौसम था। आकाश साफ था, झिंगुर की आवाज चारो तरफ गूंज रही थी। रात काफी होने के कारण मन कुछ अशांत सा हो गया।
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चाहकर भी मैं टूड़ीगंज स्टेशन पर रात को नहीं ठहर सकता था, कारण कि देहात का स्टेशन होने के कारण स्टेशन पर रात को न तो लाईट की व्यवस्था थी और न ही कोई यात्री रात को वहां नजर आता अतः मैं अपनें गांव रेहियाँ की तरफ बढ़ना उचित समझा। कुछ दूर जानें के बाद चूड़िहरवा बाग नामक एक आम के बगीचे में पहुंचा। जिसके बीचोबीच मेरे गांव तक जाने का रास्ता था। कुछ कदम बढ़ने के बाद मेरे साथ अजब सी घटना घटने लगी। बरसात होने के कारण जहां पानी था वहां मुझे सुखा दिखाई देता और जहां सुखा दिखता वहां पानी, बिल्कुल कहानी महाभारत के घटना जैसी हो गई। इस घटना के बाद मैं काफी भयभीत हो गया था, जैसे मानों मेरी धड़कन ही रूक जायेगी।
फिर मैं उसी बगीचे में स्थित एक ब्रह्म स्थान है जिसे तेलिया ब्रह्म कहते है को मैंने याद किया और आगे बढ़ने लगा। अचानक कुछ दूर बढ़ने के बाद हमारे ही पड़ोस के एक व्यक्ति जिनका नाम मुटन शर्मा था से मुलाकात हुई। मुझे लगा रात को खेत की रखवाली करने निकले है। उन्होंने मुझसे पूछा बबुआ इतना रात को कहां से। अब तक उनसे मिलकर मेरे अंदर का भय खत्म हो चुका था। मैंने चलते चलते सारी बात उनसे बताई और गांव के करीब जा पहुंचा, गांव के करीब आने पर मुटन शर्मा ने मुझसे कहा -‘बबुआ अब तूं चल जा हम खेत लौट जाई, ना त नीलगाय खेत बर्बाद कर दिहसन’ और वो लौट गये।
मैं अपनें घर पहुंचा तो आश्चर्य का ठिकाना न रहा, मुटन शर्मा मेरे ही चबूतरे पर पहले से सोये हुए थे। मेरी आहट पाकर वो जाग कर बैठ गये। उन्हें देखकर मैंने उनसे पूछा आप तो मेरे साथ आकर गांव के बाहर से खेत की तरफ लौट गये। फिर यहां पहले से…’मैंने उनसे सारी घटना बताई तो उन्होंने कहा आज तो सुबह से ही मैं खेत की तरफ नही गया, तो फिर वो कौन थे जो आप के रूप में मुझे गांव तक पहुंचाया। तब वो बोल पड़े बबुआ इ ब्रह्म बाबा की कृपा से सब भईल तूं नीके निके घरे आ गईल’आज भी ब्रह्म बाबा के साथ बीते चंद लम्हें हमें रोमांचित कर देते है। सोचता हूं विज्ञान की नजर से यह सब अंध विश्वास है मगर मेरे साथ घटित घटना को मैं क्या मानूं?