भारत के सभी राजनीतिक दल ध्यान दीजिएगा!

राजनीतिक दल अपने संवादों, भाषणों में विकलांगजनों के साथ सम्मानजनक तरीके से पेश आए – चुनाव आयोग का दिशानिर्देश
सभी समुदायों के चुनावी प्रक्रिया में प्रतिनिधित्व से ही सही मायनो से लोकतंत्र की बुनियाद निहित है
निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों के नेताओं से भाषणों में दिव्यांगों पर अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं करने की चेतावनी सराहनीय – एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक चर्चा में दिव्यांगों दिव्यांग समुदाय के प्रति समावेशी और सम्मान के भाव को प्रोत्साहित करने के लिए आजादी के बाद पहली बार राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों के लिए दिशा निर्देशों का एक सेट दिनांक 21 दिसंबर 2023 को जारी किया है। यह कदम आयोग ने पहली बार उठाया है और कहा है कि राजनीतिक विमर्श/अभियान में दिव्यांगजनों को न्याय और सम्मान देना होगा, इसके साथ परामर्श भी जारी किए हैं कि हर राजनीतिक दल को अपने अनेक सेवाकार्यों निर्णय, नीतियों में दिव्यांगजनों को सहभागी बनाएं ताकि उनके जीवन में उत्साह सकारात्मक जीवन जीने का आभास नजर आए। आयोग ने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों को किसी भी सार्वजनिक बयान, भाषण के दौरान, अपने लेखन, लेख आउटरेज सामग्री, टीवी डिबेट में या राजनीतिक अभियान में दिव्यांगजनों या दिव्यांगों पर गलत अपमानजनक, अपमानजनक संदर्भों का उपयोग नहीं करना चाहिए।

हाल ही में, आयोग को राजनीतिक विमर्श में दिव्‍यांगजनों (पीडब्ल्यूडी) के बारे में अपमानजनक या आक्रामक भाषा के उपयोग के बारे में अवगत कराया गया है। किसी भी राजनीतिक दल के सदस्यों या उनके उम्मीदवारों द्वारा भाषण/प्रचार-अभियान में इस तरह की भाषा का उपयोग दिव्यांगजनों के अपमान के रूप में समझा जा सकता है। समर्थवादी या एबलिस्‍ट भाषा के सामान्‍य उदाहरण – गूंगा, पागल, सिरफिरा, अंधा, काना, बहरा, लंगड़ा, लूला, अपाहिज आदि शब्द हैं। ऐसी अपमानजनक भाषा के उपयोग से बचना अत्‍यंत आवश्‍यक है। राजनीतिक विमर्श/अभियान में दिव्यांगजनों को आदर और सम्मान दिया जाना चाहिए। चूंकि सभी समुदायों के चुनावी प्रक्रिया में प्रतिनिधित्व में ही सही मायनों में लोकतंत्र की बुनियाद निहित है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे राजनीतिक दल अपने सवांदों भाषणों में दिव्यांगजनों के साथ सम्मानजनक तरीके से पेश आए, ऐसा चुनाव आयोग का फरमान आया।

साथियों बात अगर हम दिनांक 21 दिसंबर 2023 को चुनाव आयोग द्वारा जारी राजनीतिक दलों के लिए दिशा निर्देशों की करें तो, दिशानिर्देशों की मुख्य विशेषताएं ये हैं –
(1) राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों को किसी भी सार्वजनिक बयान/भाषण के दौरान, अपने लेखन/लेख/आउटरीच सामग्री या राजनीतिक अभियान में नि:शक्तिता/दिव्यांगजनों पर गलत/अपमानजनक/निरादरयुक्त संदर्भों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
(2) राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों को किसी भी सार्वजनिक भाषण के दौरान, अपने लेखन/लेखों याराजनीतिक अभियान में मानवीय अक्षमता के संदर्भ में नि:शक्तंता/दिव्यांगजनों का या नि:शक्तेता/दिव्यांगजनों को निरूपित करने वाले शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए।

(3) राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों को नि:शक्तपता/ दिव्यांगजनों से संबंधित ऐसी टिप्पणियों से सख्ती से बचना चाहिए जो आक्रामक हो सकती हैं या रूढ़िवादिता और पूर्वाग्रहों को कायम रख सकती हैं।
(4) ऐसी भाषा, शब्दावली, संदर्भ, उपहास, अपमानजनक संदर्भ के उपयोग या दिव्यांगजनों का अपमान जैसा कि बिंदु (i), (ii) और (iii) में उल्लिखित है, पर दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 92 के प्रावधान लागू हो सकते हैं।

(5) भाषणों, सोशल मीडिया पोस्ट, विज्ञापनों और प्रेस विज्ञप्तियों सहित सभी प्रचार अभियान सामग्रियों की राजनीतिक दल के भीतर आंतरिक समीक्षा अवश्य की जानी चाहिए ताकि लोगों/ दिव्यांगजनों के प्रति सक्षमवादी भाषा, चाहे वह आक्रामक या भेदभावपूर्ण, सक्षमवादी भाषा के दृष्टांतों की पहचान और दोष सुधार की जा सके।
(6) सभी राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए और अपनी वेबसाइट पर घोषित करें कि वे नि:शक्त ता एवं जेंडर की दृष्टि से संवेदनशील भाषा और शिष्ट भाषा का उपयोग करेंगे और साथ ही अंतर्निहित मानवीय समानता, समता, गरिमा और स्वायत्तता का सम्मान करेंगे।

(7) सभी राजनीतिक दल सीआरपीडी (दिव्यांगजनों के अधिकारों पर कन्वेंशन) में उल्लिखित अधिकार-आधारित शब्दावली का उपयोग करेंगे और किसी भी प्रकार की अन्य शब्दावली के उपयोग से बचेंगे।
(8) सभी राजनीतिक दल अपने सार्वजनिक भाषणों/अभियानों/कार्यकलापों/कार्यक्रमों को सभी नागरिकों के लिए सुलभ बनाएंगे।
(9) सभी राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया विषय-वस्तु को डिजिटल रूप से अभिगम्य बनाएंगे, ताकि दिव्यांगजन सुगमतापूर्वक इंटरएक्शन कर सकें।

(10) सभी राजनीतिक दल राजनीतिक प्रक्रिया के सभी स्तरों पर पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए दिव्यांगता पर एक प्रशिक्षण मॉड्यूल प्रदान कर सकते हैं और सक्षम भाषा के उपयोग से संबंधित दिव्यांगजनों की शिकायतों को सुनने के लिए नोडल प्राधिकारी नियुक्त करेंगे।
(11) राजनीतिक दल पार्टी और जनता के व्यवहार संबंधी अवरोध को दूर करने और समान अवसर प्रदान करने के लिए सदस्यों और पार्टी कार्यकर्ताओं जैसे स्तरों पर अधिक दिव्यांगजनों को शामिल करने का प्रयास कर सकते हैं।

साथियों बात अगर हम चुनाव आयोग के दिव्यांगजनों की भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य की करें तो, निर्वाचन आयोग ने, सिविल सोसाइटी जैसे अन्य हितधारकों के साथ मिलकर सुगम और समावेशी चुनावों के अपने समग्र उद्देश्य को हासिल करने के लिए दिव्यांगजनों को भागीदारी करने के लिए प्रेरित करने और उन्‍हें सुविधा प्रदान करने के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं। यह उद्देश्‍य पूरी तरह से तभी साकार होगा, जब राजनीतिक दल और उम्‍मीदवार भी इस नेक काम में शामिल होंगे और सभी दिव्यांगजनों के साथ सम्‍माजनक तथा गरिमापूर्ण व्‍यवहार करेंगे। यह हमारा संयुक्त कर्तव्य और प्रयास होना चाहिए कि हम सभी के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करें और एक ऐसा समाज बनाएं जो नि:शक्‍तता के आधार पर भेदभाव न करे। यद्यपि मतदाताओं को मतदान केंद्र पर आने और उन्‍हें सुरक्षित, सुविधाजनक तथा सुखद मतदान का अनुभव कराने की कोशिश की है, फिर भी आयोग ने घर पर मत देने की सुविधा भी प्रदान की है। 40 प्रतिशत की बेंचमार्क दिव्‍यांगता वाले दिव्‍यांग मतदाता इस वैकल्पिक सुविधा का लाभ उठा सकते हैं।

हाल के चुनावों में, इस सुविधा की लोकप्रियता काफी बढ़ी है और समुदाय में इसे सराहा गया है। दिव्‍यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 में दिव्‍यांगजनों के अधिकारों की रक्षा का प्रावधान किया गया है। उक्त अधिनियम की धारा 7 सभी प्रकार के दुर्व्यवहार, हिंसा और शोषण से सुरक्षा प्रदान करती है। इसके अलावा, उपर्युक्त अधिनियम की धारा 92 में ऐसे अपराधों के लिए दंड का प्रावधान किया गया है। दिव्‍यांगजन अपने वोट डाल सके, इसके लिए विगत वर्षों में, वोट डालने के लिए अनुकूल परिवेश तैयार करने के लिए दिशानिर्देशों और सुविधाओं का एक सुव्‍यवस्थित फ्रेमवर्क तैयार किया गया है। इन सुविधाओं में मतदान केंद्र का भूतल पर स्थित होना, ईवीएम की बैलेट यूनिट पर ब्रेल संकेतक का होना, उचित ढाल वाले रैंप का निर्माण करना, दिव्यांगजनों के लिए अलग कतारों की व्‍यवस्‍था करना (मतदान केंद्र में प्रेवश देने में उन्‍हें प्राथमिकता देना), व्हीलचेयर की व्‍यवस्‍था करना और मतदान की प्रक्रिया का वर्णन करने वाले संकेतकों की पर्याप्‍त संख्‍या में व्‍यवस्‍था आदि शामिल है।

दिव्‍यांगजनों (पीडब्ल्यूडी) की समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन आयोग के लिए सुगम और समावेशी चुनाव, वह स्‍थायी सिद्धांत रहा है जिसके साथ निर्वाचन आयोग कोई समझौता नहीं करता। आयोग विभिन्न कदमों के माध्यम से चुनाव में सुगमता और समावेशिता के सिद्धांत को बढ़ावा देने के प्रति अत्‍यंत सजगता के साथप्रयासरत है। दिव्‍यांग समुदाय के प्रति राजनीतिक विमर्श में समावेशिता और सम्मान को बढ़ावा देने के लिए आयोग ने राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों के लिए पहली बार दिशानिर्देशों जारी किए हैं। आयोग ने राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों से इन दिशानिर्देशों का अक्षरश: पालन करने का आग्रह किया है क्योंकि वे चुनावी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण हितधारक हैं।

साथियों बात अगर हम निर्वाचन आयोग द्वारा 2023 में बुजुर्गों के लिए घर से वोटिंग सुविधा उपलब्ध कराने की करें तो, भारत निर्वाचन आयोग ने विधानसभा निर्वाचन 2023 में राज्य के 80 वर्ष एवं इससे अधिक आयु के वृद्धजन 40 प्रतिशत या इससे अधिक दिव्यांगता वाले दिव्यांगजनों और कोविड 19 संक्रमित या संदिग्ध मतदाता घर से ही मत डाले।भारत निर्वाचन आयोग का यह प्रयास है कि समाज का कोई भी वर्ग मतदान में अपनी भागीदारी से नहीं छूटे। उनके लिए मतदान करने को डाक मतपत्र की वैकल्पिक सुविधा प्रदान की गई है। अब इन वर्गाे के ऐसे व्यक्ति जो मतदान दिवस को मतदान केंद्र में पहुंचकर वोट डालने में अपने को असमर्थ पाते हैं, वे फार्म 12 घ भरकर डाक मतपत्र के विकल्प का चयन कर सकते हैं।

उल्‍लेखनीय है कि निर्वाचन आयोग यह सुनिश्चित करने पर विशेष जोर देता रहा है कि दिव्‍यांग मतदाताओं (पीडब्‍ल्‍यूडी) और वरिष्‍ठ नागरिकों को हर तरह की सुविधा देनी चाहिए, ताकि चुनावी प्रक्रिया में उनकी व्‍यापक भागीदारी सुनिश्चित हो सके। चुनावी प्रक्रिया के लिए विभिन्‍न राज्‍यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों की तैयारियों की समीक्षा से संबंधित आयोग के एजेंडे में एक विषय इन श्रेणियों के मतदाताओं को आवश्‍यक सुविधा प्रदान करना है। इस मुद्दे के दो पहलू हैं जिनमें आवश्‍यक बुनियादी ढांचागत सुविधाओं का सृजन करना और इस प्रक्रिया में सुविधा के लिए आवश्‍यक कानूनी रूपरेखा तैयार करना शामिल हैं। अपेक्षाकृत अधिक दिव्‍यांगता तथा रेलवे, राज्‍य परिवहन एवं उड्डयन जैसी आवश्‍यक सेवाओं से जुड़े कर्मियों के मतदान केन्‍द्रों पर आने में असमर्थता को ध्‍यान में रखते हुए आयोग ने 22 अक्‍टूबर, 2019 को विधि एवं न्‍याय मंत्रालय से इस आशय की सिफारिश की थी। तदनुसार, केंद्र सरकार ने विभिन्‍न नियमों में संशोधन किए।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत के सभी राजनीतिक दल ध्यान दीजिएगा! राजनीतिक दल अपने संवादों, भाषणों में विकलांगजनों के साथ सम्मानजनक तरीके से पेश आए – चुनाव आयोग का दिशानिर्देश। सभी समुदायों के चुनावी प्रक्रिया में प्रतिनिधित्व से ही सही मायनो से लोकतंत्र की बुनियाद निहित है। निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों के नेताओं से भाषणों में दिव्यांगों पर अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं करने की चेतावनी सराहनीय।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

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