अशोक वर्मा की कहानी : बेइंतहा प्यार

।।बेइंतहा प्यार।।
अशोक वर्मा

आज अनुराग की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसकी जिंदगी में एक बार फिर रौशनी दस्तक देने वाली थी। अनुराग ने कभी सोचा न था कि कोई दूसरे की जिंदगी में उजाला भरने के लिए अपनी जिंदगी के साथ समझौता करेगा। वह तो अपनी आंख की पट्टी खुलने के साथ-साथ उस देवी को देखना चाहता था, जिसने उसे अपनी एक आंख दान की थी। अनुराग कोलकाता में रहता था, कुदरत ने उसे सब कुछ दिया था, देखने में काफी स्मार्ट था। उसने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। वह अपने को हर तरह से सम्पूर्ण इंसान समझता था। अपने मां-बाप की अकेली औलाद अनुराग मौज-मस्ती में डूबा रहता था। इधर मां-बाप की तमन्ना थी की अनुराग की शादी कर दी जाए, जिससे घर में नई नवेली दुल्हन आ सके और घर का सूनापन कटे। उन्हें तो अब नन्हें मेहमान की भी जरूरत खलने लगी थी। क्योंकि नन्हें बच्चे की किलकारी घर में गूंजे हुए लगभग पच्चीस से तीस वर्ष हो चुके थे। इधर अनुराग के मां-बाप गांव जाने वाले थे। महानगर में रहने के बाद भी अनुराग के मां-बाप का गांव से गहरा लगाव था। वे लोग बिहार के बक्सर के पास रेहियां गांव के रहने वाले थे। चुकी मां-बाप गांव जा रहे थे इसलिए अनुराग ने भी गांव जाने के लिए हामी भर दी और फिर तीनों गांव चले गए। गांव जाने के बाद अनुराग की शादी के लिए बहुत सारे रिश्ते आने लगे। उसी दौरान एक सुंदर सी लड़की अनुराग के माता-पिता को पसंद आ गई।गोरी, छरहरा बदन और अच्छे खानदान की थी वह लड़की, नाम था प्राची। जब अनुराग उससे मिला तो वह भी खो सा गया और शादी के लिए ना नही कर सका। कुछ ही दिनों बाद दोनों की शादी हो गई। शादी के बाद अनुराग मां-बाप और पत्नी को लेकर दोबारा कोलकाता आ गया। दोनों की शादीशुदा जिंदगी अच्छी गुजरने लगी।अब अनुराग भी रात को जल्दी घर आ जाता। वह ज्यादा से ज्यादा वक्त अपने घर पर ही बिताता। यह बदलाव देखकर अनुराग के मां-बाप भी खुश रहने लगे। अनुराग की मां तो अब बिस्तर से नीचे ही नहीं आती। प्राची अपनी सास का पूरा ख्याल रखती।अनुराग का परिवार खुश और सुखी था। गांव की इस सुसंस्कारी लड़की को अनुराग और उसके मां-बाप में भगवान नजर आने लगे। वह ज्यादा से ज्यादा इनकी सेवा में लगी रहती। कुछ दिन बाद अनुराग की नौकरी एक मल्टीनेशनल कंपनी में लग गई। अच्छी तनख्वाह थी, रुतबा भी खूब बढ़ गया।अनुराग बेहद खुश रहने लगा। अनुराग की मां अक्सर कहती “जब से बहू आई है, मेरा घर खुशियों से भर गया।”

इसी तरह दिन गुजरते गए। कम्पनी ने अपनी पच्चीसवीं सालगिरह पर अपनें आला अफसरों के लिए फाइव स्टार होटल में पार्टी रखी। सभी लोगों को अपनी पत्नी के साथ आने का न्योता दिया गया था। अनुराग ने भी प्राची को इस पार्टी में चलने को कहा। प्राची ने तो फिल्म में ही सब देखा था कि स्टार होटल की पार्टी कैसे होती है। इसलिए उसने पार्टी में जाने से मना कर दिया। मगर अनुराग कहां मानने वाला था। उसने प्राची को काफी मिन्नते कर के मना लिया। आज शाम दोनों पार्टी में जाने को तैयार हो रहे थे। इधर घर में मां बाप के खाने का इंतजाम कर प्राची तैयार हो गई। आज वह काफी खूबसूरत दिख रही थी। अनुराग ने गाड़ी निकाली और दोनों होटल की तरफ चल पड़े। होटल पहुंच कर प्राची ने जो देखा शायद वह उसकी जिंदगी का पहला नज़ारा था। डिस्को पर सारे लोग नाच रहे थे। सबके हाथों में शराब का ग्लास और मदहोशी में किसी को अपनें शरीर का ख्याल नही था। तभी एक नौजवान ने अनुराग के सामने आकर कहा, अनुराग बाबू भाभी जी तो बिलकुल चांद सी खूबसूरत दिख रही है। कहां से ढूंढ कर लाए हैं। अगर आपको बुरा न लगे तो मैं इनके साथ डांस कर सकता हूं। अनुराग निरूतर होकर बोला, अगर ये चाहे तो मुझे क्या एतराज हो सकता है।

तब तक वह नौजवान बोल पड़ा, भाभी जी आपको एतराज न हो तो, वह अपनें अल्फाज पूरे भी न कर पाया था कि प्राची बोल पड़ी, नही भैया जी, किसी गैर के साथ झूमना-नाचना मेरे संस्कारों में नहीं है। मैं इस पार्टी में डांस नही करूंगी और न ही शराब पीयूंगी। मैं तो इस तरह की पार्टियों की आदी नहीं हूं। मैं पहली बार ऐसी जगह आई हूं। अगर मुझे पता होता कि यह इस तरह की पार्टी है… तो मैं कभी यहां नही आती। अभी ये बात चल ही रही थी कि अनुराग की एक सहकर्मी डॉली वहां आ पहुंची। हाय, हैलो के बाद वह प्राची से सिर्फ अंग्रेजी में ही बाते कर रही थी। लेकिन प्राची उसकी बातों का जवाब हिंदी में दे रही थी। अनुराग की उस सहकर्मी ने भी प्राची को डांस करने का सुझाव दिया, मगर प्राची को तो ये सब पसंद नही था, उसने न में उत्तर दिया और एक कोने में चली गई। डॉली को ये बुरा लगा और उसने “नैरोमाइंडेड” कहा और मुड़ कर एक ग्लास उठाया और झूमने लगी। डॉली के अल्फाज अनुराग को भी बुरे लगे थे। उसी वक्त अनुराग बहाना बनाकर प्राची को लेकर घर की तरफ लौट आया। घर आने पर प्राची को अनुराग ने समझाया किसी की बातों को बुरा मत मानो, वहां का माहौल ही ऐसा था।

प्राची ने बात को काटते हुए कहा, “आप यही न कहना चाहेंगे की लोग पश्चिमी संस्कृति को अपनाने में अपनें आप को इतना गिरा चुके है कि जो शख्स अपनी तहजीब की हिफाजत करे, दूसरे की इज्जत करते हुए अपनी भाषा की कद्र करे, उसमे बातचीत करे उसे ये लोग पिछड़ा, दकियानूस और न जाने क्या-क्या कहते है।खैर, छोड़िए…” प्राची किसी तरह खुद के गुस्से पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी। वह फिर बोली, “खिचड़ी अंग्रेजी बोलने से लोग उन्हें अंग्रेज तो कहने से रहे। इसलिए क्यों न अपनी प्यारी हिंदी में बात की जाए।” जल्दी ही प्राची को लगा की इसमें उसके अनुराग की कोई गलती नही है। वह भी उसके साथ हुए बर्ताव पर शर्मिंदा है। प्राची ने अपने ध्यान को बदला और घर के काम में लग गई। झटपट खाना बनाया, दोनों ने साथ खाया और सोने चले गए। अगली सुबह अनुराग ऑफिस गया तो उसके सहकर्मी उसे अजीब नजरों से देख रहे थे। कई ने मजाकिया अंदाज में अपनी बात गले से बाहर उड़ेल भी दी – भाई अनुराग की पत्नी तो खूबसूरत है, मगर बेचारी हैं सीधी-सादी। अंग्रेजी तक बोलना नहीं जानती। अनुराग को चुप देख एक सहकर्मी ने तो हद ही कर दी। बोल पड़ा, “अनुराग बाबू, बुरा न मानें तो एक बात कहूं ?” अनुराग चुपचाप उसकी तरफ देखने लगा। सहकर्मी फिर बोला, “आप तो बहुत स्मार्ट है, फिर गांव की गंवार… “अब बर्दाश्त की हद थी। अनुराग आग बबूला हो गया, “खबरदार जो आगे एक लफ्ज भी बोला तो! वह मेरी पत्नी है, पढ़ी-लिखी है…ग्रेजुएट है!”

बहस गर्म होते देख डॉली बीच बहस में कूद पड़ी, “इसमें गुस्सा करनें की क्या बात है अनुराग बाबू? ठीक है वह ग्रेजुएट है, लेकिन अंग्रेजी तो नही बोल पाती न!” यह जानते हुए भी कि अनुराग शादीशुदा है, वह लड़की अनुराग पर डोरे डालती थी। हर सुख-सुविधा उसे हासिल थी। लेकिन वह हर हाल में अनुराग को पा लेना चाहती थी। इसलिए वह प्राची को हर तरह से नेरोमाइंडेड साबित कर उसकी नजरों से गिराना चाहती थी। वह बात बे बात उदाहरण देकर प्राची को गंवार कहती और अनुराग को रिझाने की भरपूर कोशिश में लगी रहती। धीरे-धीरे अनुराग का झुकाव डॉली की तरफ होता चला गया। अब उसे उस लड़की की बात बुरी नहीं लगती न ही प्राची को गंवार कहने पर वो कोई प्रतिक्रिया देता। उसे लगने लगा की वाकई गांव की लड़की से शादी करके उसने बड़ी भूल की है। वह धीरे-धीरे प्राची से दूरी बनाने लगा। बात-बात में प्राची से ऊंची आवाज में बोलना, उसके सलीके के रहन-सहन को गंवारपन कह डालना उसकी आदत में शुमार हो गया। प्राची को उसके इस बदलाव से काफी तकलीफ होती, लेकिन क्या करती। उसे तो संस्कार ही ऐसे मिले थे की हर हाल में पत्नी धर्म का पालन करना है।

वक्त बीतता चला गया इधर अनुराग और डॉली अक्सर ऑफिस से निकलते और होटल चले जाते। अब तक दोनों एक हो चुके थे और इधर डॉली का भी दबाव अनुराग पर बढ़ने लगा था।आखिरकार दोनों एक दिन शादी के बंधन में बंध गए। अनुराग ने डॉली के साथ अलग किराये का मकान लेकर रहने लगा। ये बात जब अनुराग के मां-बाप को पता चली तो पूरा परिवार शोक में डूब गया। प्राची के ऊपर तो जैसे गमों का पहाड़ टूट पड़ा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था की आखिर उसमें कमी क्या है? उसकी गलती क्या है? अनुराग के मां-बाप बहुत परेशान हो गए। इकलौता बेटा, इसलिए ज्यादा सख्ती भी नही कर सकते थे – कहीं कुछ कर न ले। यह भी डर की कहीं घर छोड़ कर न चला जाए! इसलिए किसी तरह प्राची को समझाने की कोशिश की। प्राची लाख कोशिश कर रही थी खुद को मनाने की, लेकिन एक तो सौतन, दूसरे वह लड़की जो उसे पहले से ही नीची नजरों से देखती आई है।जिसे भरी पार्टी में उसे नेरोमाइंडेड कह कर बेइज्जत किया। प्राची किसी भी समझौते को तैयार नहीं हुई और गांव से अपनें पिता और परिवार के दूसरे लोगों को बुला लिया। अनुराग ससुराल वालों के सामने आने की हिम्मत नही जुटा पाया। सब लोगों ने अनुराग के पिता को खूब खरी-खोटी सुनाई। वे क्या करते? सब कुछ चुपचाप सुनते रहे। आंसुओं में डूबी प्राची ने अपनें सास और ससुर के पैर छुए और ससुराल छोड़ पिता के साथ मायके आ गई।

अनुराग झूठी शान-ओ-शौकत और आधुनिकता के नशे में इस कदर चूर था की उसे अपनी प्यारी बीवी के घर छोड़ कर जाने का जरा भी अहसास नही था। बल्कि वह खुद को आजाद महसूस कर रहा था। कुछ दिन बाद वह डॉली को लेकर अपनें घर आ गया। प्राची के जाने के बाद डॉली बेहद खुश थी। घर में काफी कुछ बदल गया था। अनुराग के मां-बाप चुप-चाप रहने लगे थे। डॉली और अनुराग दोनों सुबह ही ड्यूटी चले जाते। कभी दोस्त के साथ पार्टी तो कभी बाहर डिनर, शाम को देर रात घर लौटते। बुजुर्ग मां बाप सिर्फ इंतजार कर सकते थे, इसके अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था। बूढ़े हाथ-पांव दिन भर घर के छोटे-मोटे काम निबटाते रहते। थकान होती तो मां को प्राची याद आ जाती। चुपचाप दो आंसू ढलक कर ठोड़ी तक आ जाते। प्राची के सामने उन्हें अपनें हाथ से कभी एक गिलास पानी लेने की जरूरत नहीं पड़ी थी। आज बेटे के पास भी इतनी फुर्सत नहीं कि उसके दिल की सुन ले। वह तो डॉली के साथ अपनी नई जिंदगी में खो सा गया। दोनों रोज ही शराब के नशे में डोलते हुए घर में दाखिल होने लगे। अनुराग के पिता को गहरा सदमा लगा घर क्या से क्या हो गया, यह उनसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। बराबर के बेटे से कैसे कहें, उन्होंने अपनी पत्नी से उन दोनों को समझाने के लिए कहा। एक दिन मां ने हिम्मत करके डॉली से शराब न पीने को कहा, तो वह फट पड़ी -“पुराने रीति-रिवाज और रूढ़ियों के साथ मुझे नही जीना। हाई-फाई फैमली या यूं कहे कि आधुनिक समाज में जो होता है और अनुराग को जो पसंद है, मैं वही कर रही हूं। भगवान ने मुझे जिंदगी मौज-मस्ती के लिए दी है।” मां ने ऐसे अल्फाज पहले कभी नहीं सुने थे वह अवाक थी। बोलने के लिए जुबान ने साथ छोड़ दिया। गला सूख गया, आंखें रोना भी भूल गई, मां मूर्ति सी बन गई।

आज अनुराग और डॉली दफ़्तर से निकलने के बाद सीधे डांस बार पहुंचे, दोनों ने जमकर शराब पी। नशे में झूमते हुए बार से बाहर निकले। अनुराग ने इसी हालत में गाड़ी स्टार्ट की और निकल पड़े। उसे कुछ होश नही था। गाड़ी स्पीड पकड़ रही थी। डॉली नशे में उससे मीठी-मीठी बातें करती जा रही थी। गाड़ी की स्पीड बढ़ती गई। एक जगह बैलेंस बिगड़ा और गाड़ी डंपर से टकराई। गाड़ी चकनाचूर हो चुकी थी। अनुराग और डॉली को गहरी चोटें आई। दोनो लहूलुहान हालत में बेहोश थे। आसपास के लोग इकट्ठा हो गए। उठाकर दोनों को हॉस्पिटल पहुंचाया गया। किसी तरह अनुराग के फोन से घर पर खबर की गई। मां-बाप हॉस्पिटल पहुंच गए। डॉक्टरों ने 72 घंटे का वक्त मांगा, किसी तरह यह वक्त गुजारा। डॉक्टर की बात सुन कर मां-बाप के होश उड़ गए। डॉक्टर ने बताया कि अनुराग के हालात में काफी सुधार है। वह खतरे से बाहर है, लेकिन उसकी दोनों आंखें चली गई है। वह अब दुनियां की रंगीनियां नही देख पाएगा। डॉक्टर ने यह भी बताया की आपकी बहू ठीक है। दो दिन बाद उसे छुट्टी मिल जाएगी। रोबोट की तरह अपनी बात कह कर डॉक्टर आगे बढ़ गए। मां-बाप पत्थर बन चुके थे। लंबे इलाज के बाद अनुराग को अस्पताल से छुट्टी मिली, वह घर आ गया। बूढ़े मां बाप के अलावा उसके साथ कोई नहीं था। उसने लरजती आवाज में अपनी मां से डॉली के बारे में पूछा।

मां रोने लगी, तो वो घबरा गया – “क्या वह…वह…मेरी डॉली इस दुनियां में नहीं रही?”
“ऐसी बात नही है बेटा?”
“फिर?”
“बोलती क्यों नहीं मां?”
“उसे तो दो दिन बाद ही हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई थी। उसके पापा हॉस्पिटल से ही उसे अपनें साथ ले गए। उसके बाद से वह नही लौटी।” मां ने किसी तरह अपनी बात पूरी की। अनुराग गम के तूफान से घिर चुका था। बाहरी दुनियां देखने वाली आंखे चली गई थी, लेकिन आज मन की आंखें खुल गई। लेकिन अब पछताए क्या होत है…!!

असहाय बेटे को मां किसी तरह संभालती। उसे नहलाती, टॉयलेट ले जाती, उसे खिलाती-पिलाती और वह कहता तो कुर्सी पर बैठा देती, वह कहता तो बिस्तर पर लिटा देती। अनुराग फिर बच्चे की तरह हो गया था। मां के आंसू कभी रुकने का नाम नहीं लेते। बुजुर्ग बाप मां से बेटे की हालत देखी नही जाती। वह एक दिन डॉली के मायके पहुंचे और घर के हालात बयां किए। समधी से डॉली को साथ भेजने की गुजारिश की। डॉली के पापा का जो जवाब था, उसे तो बड़े से बड़े पत्थर दिल इंसान को सुनना भी आसान नहीं था। वह बोले, “ऐसा है समधी जी…बुरा न मानें तो एक बात कहूं?”
“जी…”
“मेरी बेटी बड़े ही लाड-प्यार से पली है। उसके हर नाज और नखरे को हम लोग हमेशा से उठाते आए है। अनुराग तो अब अंधा हो गया है। अगर डॉली उस घर जाती है तो उसे दासी बनकर ही अनुराग की सेवा करनी होगी। वैसे भी हमारी बेटी की अभी उम्र ही क्या है। उसे कोई अच्छा लड़का मिल जायेगा। पूरी जिंदगी एक अंधे आदमी के साथ तो नही गुजारी जा सकती।”

अनुराग के पिता सब कुछ समझ चुके थे। उनका शरीर कांपने लगा, उठने की कोशिश की, तभी घर के अंदर से डॉली बाहर आई। उसके पापा ने तपाक से कहा, “आप चाहे तो डॉली से पूछ सकते है। वह जाना चाहे तो मुझे कोई ऐतराज नहीं।”
अनुराग के पिता ने बड़ी हसरत भरी निगाहों से डॉली की तरफ देखा। डॉली ने उन्हें नमस्ते किया और बैठ गई। कुछ देर की चुप्पी के बाद अनुराग के पिता ने ही बेटे की हालत के बारे में डॉली को बताया और उससे घर चलने की गुजारिश की। उन्होंने कहा, “बेटा, इस दुनिया में अनुराग के लिए तुम्हारे सिवा और कौन है? हम तो बूढ़े हो चुके है, कोई भरोसा नहीं कितने दिन जिये। ऐसे में कौन अनुराग की देखभाल करेगा?”
डॉली ने अपनें पापा की तरफ देखा और तपाक से बोली, “पापा, मैं किसी अंधे शख्स के साथ जिंदगी नही गुजार सकती। वैसे भी अगर उसके बजाय मेरी आंखे चली जाती तो क्या अनुराग मेरे साथ जिंदगी गुजारना पसंद करता?”
“कैसी बात करते हो बेटा?” डबडबाई आंखे लिए अनुराग के पिता ने लरजती आवाज में कहा। “मैं सच कह रही हूं” डॉली ने उसी अंदाज में बोलना शुरू किया,”जो शख्स एक संस्कारी बीवी को छोड़ मेरे साथ हो लिया, उसका क्या भरोसा कि, वह आगे चलकर मुझे भी धोखा नहीं देता? सॉरी पापा मैं नही जा पाऊंगी।”

भारी कदमों से अनुराग के पिता वहां से उठे और अपने घर आ गए। मां-बेटे को डॉली और उसके पापा की बात बताई। अनुराग को बहुत गुस्सा आया, मगर वो क्या कर सकता था। आज उसे फिर प्राची की याद आई। रात में किसी वक्त पानी की जरूरत महसूस हुई तो उठने की नौबत नहीं आई। वह खुद ही समझ जाती और गिलास पेश कर देती। अनुराग प्राची की यादों में खोया था। काले चश्मे से निकल कर आसूं टपटप दामन को भिगो रहे थे।

प्राची की जिंदगी अब बिल्कुल बदल गई थी। गांव जाकर उसने दोबारा पढ़ाई की और नर्स की ट्रेनिंग ली। अब बहुत अच्छी अंग्रेजी बोलने लगी थी। उसे पटना के एक बड़े अस्पताल में नर्स की नौकरी भी मिल गई थी। वह वही हॉस्टल में रह कर नौकरी करती। प्राची को जब अनुराग के अंधे होने की जानकारी मिली तो वह तड़प कर रह गई। उस दिन वह काफी रोई। उसे यह भी पता चला कि डॉली अनुराग को इस हालत में छोड़ कर चली गई और उसने दूसरी शादी भी कर ली है, तो उसे और भी ज्यादा तकलीफ हुई। वह समझ नही पा रही थी कि क्या करे। अनुराग की बेवफाई के बावजूद आज भी उसका दिल अनुराग के लिए ही धड़कता था।

एक दिन अनुराग के पिता ने अखबारों में नेत्रदान के लिए विज्ञापन छपवाया था, ताकि कोई दानी ऐसा निकल आए जो एक आंख दे दे और उसके बेटे को फिर से दुनिया देखने का मौका मिल सके। यह विज्ञापन पटना के एक अखबार में प्राची ने भी पढ़ा। इसे पढ़कर वह गहरी सोच में डूब गई। आज दिनभर उसका मन काम में नही लगा। रात को भी नींद उसकी आंखों से गायब थी। उसकी आंखों के सामने सिर्फ और सिर्फ अनुराग का चेहरा था। उसका अंतर्मन बार-बार उसे अनुराग को एक आंख दान करने के लिए कह रहा था।अंतर्मन से यही आवाज आ रही थी की उसने प्राची के साथ जो किया सो किया, मुझे उसके साथ अच्छाई से ही पेश आना है। आज वह परेशानी में है इसलिए उसका साथ देना है। वह अपनी एक आंख देकर उसकी जिंदगी को दोबारा रोशन कर देगी। आखिर वह है तो उसका शौहर ही। वह जो आज भी उसके नाम का ही सिंदूर लगाती है।

सुबह प्राची अपनें अस्पताल पहुंची और सर्जन को पहली बार आप बीती बताई। प्राची पर जो बीती और आज उसके इरादे को देख डॉक्टर सिर झुकाकर रह गए। उन्होंने प्राची से दोबारा अपनें फैसले पर गौर करने और परिवार से सलाह-मशविरा करने को कहा। प्राची घर आई और अपनें पिता जी को सारी बात बताई। अनुराग का नाम सुनते ही उसके मां बाप और परिवार लोग आग-बबूला हो गए। उसे दोबारा अनुराग का नाम न लेने की हिदायत दी। प्राची घर वालों के गुस्से को समझ सकती थी। वह जानती थी कि उस बेटी के बाप या भाई पर क्या गुजरती है, जिसे ससुराल से प्रताड़ित होकर वापस मायके में कदम रखना पड़े। प्राची अब पहले से ज्यादा परिपक्व हो चुकी थी। उसका अंतर्मन अनुराग के लिए बेचैन था। उसने धीरे-धीरे किसी तरह अपनें मां-बाप को समझाया और नेत्रदान के लिए राजी कर लिया। शहर आकर उसने अपनें सर्जन से ऑपरेशन की इजाजत ले ली। कानूनी प्रक्रिया से गुजरने के बाद अस्पताल से ही एक पत्र अनुराग के घर कोलकाता भेजा गया। पत्र पाकर अनुराग और उसके मां-बाप काफी खुश हुए। वे सोच में पड़ गए कि अभी भी ऐसे इंसान है जो दूसरों के लिए अपनी एक आंख देने को तैयार है। उन्हें यह पता नही था की नेत्रदान कौन कर रहा है।

आज अनुराग और उसके मां-बाप पटना के उस अस्पताल में पहुंच गए, जहां बेटे को आंख लगाई जानी थी। पूरा दिन अनुराग की शारीरिक जांच और कागजी कार्यवाही पूरी करने में गुजर गया। अगले दिन सुबह अनुराग को ऑपरेशन थियेटर ले जाने की तैयारी चल रही थी। उसकी जिंदगी में दोबारा रौशनी बिखरने वाली थी यही सोचकर अनुराग काफी खुश था। जब उसे यह पता चला कि किसी महिला ने बिना शर्त या लालच के आंख दान की है, तो उसके दिमाग में एक सवाल कौंध गया आखिर वह देवी है कौन, जिसने एक अंजान आदमी के लिए इतना बड़ा कदम उठाया? आज कल तो बुरे वक्त में अपने सगे भी साथ छोड़ जाते है। अनुराग सोचों में गुम मन ही मन सवालों में उलझा था कि अस्पतालकर्मी उसे ऑपरेशन थियेटर में ले जाने की लिए आ गए।

करीब चार घंटे ऑपरेशन चला। डॉक्टर ने बाहर आकर अनुराग के मां बाप को ऑपरेशन सफल होने की खबर दी। वे बेहद खुश थे। अनुराग का इलाज चलता रहा। जब वह ठीक हो गया और आंख की पट्टी खुलने वाली थी तो उससे पूछा गया की वह सबसे पहले किसे अपनें सामने देखना चाहता है।अनुराग तो आज भी उसी सवाल में उलझा था कि आखिर किस देवी ने उसे आंख दान की है?
“मैं सबसे पहले उस देवी को देखना चाहता हूं, जिसने मेरी जिंदगी दोबारा रौशन की है।” वह रुंधे गले से बोला।
अस्पताल की नर्स प्राची को सामने लाई। दोनो की पट्टी खोली जा रही थी।दोनों के दिलों की धड़कन बढ़ती जा रही थी। आज प्राची भी कई साल बाद अनुराग को अपनें सामने देखने वाली थी। दोनों की आखों की पट्टी खुल चुकी थी। डॉक्टर धीरे-धीरे आंख खोलने के लिए बोल रहे थे। अनुराग के मन की हलचल बढ़ रही थी। अनुराग ने जब आंखे खोली और प्राची को सामने देखा तो उसकी हवाइयां उड़ गई। वह पत्थर का बुत बन गया। उसे समझ नही आ रहा था कि किन अल्फाज में प्राची से मुखातिब हो? वह दोनों हाथ जोड़कर खड़ा होने की कोशिश करने लगा, तभी नर्स ने जल्दी से उसे पकड़कर बैठाया और नही उठने की सलाह दी। अनुराग की हालत देख प्राची की आंखे टप टप बरसने लगी। डॉक्टर ने उसे रोने से मना किया।

प्राची ने ऊपर की तरफ देख कर कहा, “हे ईश्वर, मैंने अर्धांगिनी होने का फर्ज पूरा किया। ओह गॉड! आई हैव डिस्चार्ज माई ओबिलियेसंस एज ए वाइफ। थैंक्यू मिस्टर अनुराग, एज आई हैव डिस्चार्ज माई ओबिलिएसंस टू बी वाइफ, इन सेम वे, आई हैव टू डिस्चार्ज माई रिस्पोनसिबिलीटी एज ए डॉटर (अनुराग, जिस तरह मैंने एक बीवी होने का फर्ज़ अदा किया, उसी तरह अब एक बेटी होने का फर्ज भी निभाना है) अब मेरी जिंदगी के अहम फैसलों में मेरे मां-बाप की अहम भूमिका होगी।”
अनुराग प्राची के मुंह से धाराप्रवाह अंग्रेजी सुन हैरान था। वह सोच रहा था कि अंग्रेजी तो जिंदगी में कभी भी सीखी जा सकती है, लेकिन संस्कार…यह तो मां-बाप के जरिए बचपन से ही दिये जा सकते है, जो खुशनसीब प्राची को हासिल हुए हैं।एक तरफ डॉली है, जो मुसीबत में उसे छोड़ कर चली गई और दूसरी तरफ यह प्राची!! अनुराग की सोचों का सिलसिला टूटा तो वह हाथ जोड़कर प्राची के सामनें खड़ा हो गया और घर चलने को कहा। प्राची ने उसके साथ जाने से इंकार कर दिया। इतने में एक गाड़ी अस्पताल के गेट पर आकर रूकी और प्राची उसमें बैठ कर चली गई। अनुराग और उसके परिवार के लोग गुमसुम प्राची को जाते देखते रह गए। अब अनुराग के पास पछतावे के सिवा कुछ नहीं था।

प्रिय पाठको, आप लोग सोच रहे होंगे की प्राची और अनुराग के मिलन को क्यों नहीं दिखाया गया! किंतु हमारी सोच है की जिंदगी के हर मोड़ पर केवल हमारी बहन बेटियां ही समझौता क्यों करेंगी, भारत बदल रहा है, महिला सशक्तिकरण इसके उदाहरण है। आप लोगों को ये कहानी कैसी लगी अपनी प्रतिक्रिया अवश्य देंगे।

(नोट : यह कहानी पूरी तरह कॉपी राईट के अधीन है। लेखक की अनुमति के बिना यदि इस कहानी को तोड़-मरोड़ कर किसी भी रूप में अगर कोई पेश करता है तो यह कानूनन अपराध होगा।)

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक /कवि

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