मातृ दिवस पर अशोक वर्मा “हमदर्द” की कविता : मां की हालत ऐसी क्यों है?

मां की हालत ऐसी क्यों है?
अशोक वर्मा “हमदर्द”

फटेहाल हालत
आंचल मैला
छोटी सी गठरी
खाली थैला,
मुरझाया चेहरा
सूखे होठ,
आंख में आंसू
बिखरे बाल,
फटी बिवाई
जर्जर हाल
मां की हालत ऐसी क्यों है?
करटक जैसे ये है चिल्लाती
पूरे घर का जूठन खाती
फटी आंख
बहु को न भाती
बचा – बचाया खत्म है थाती
फिर भी
मां की हालत ऐसी क्यों है?
मां के तो है चार चार बच्चे
मां तो कहती सब है अच्छे
फिर भी मां कंपित
जाड़े में
देव पति को है गोहराती
अत्यधिक ठंढक के ठिठुरन में
दांतों से करताल बजाती
मां की हालत ऐसी क्यों है?
काठ के जैसा सुखा तन
गंगा जैसा निर्मल मन
बेटा कहीं से थक कर आता
जब वो मां के करीब है जाता
बूढ़ी मां सर को सहलाती
फिर भी बेटों से डांट है खाती
हुई अभागन सब के रहते
मां की हालत ऐसी क्यों है।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

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