– वर्ष 2024 देश के प्रख्यात कलाकार के जी सुब्रमण्यन की जन्मशती वर्ष है
– कलाकारों, इतिहासकारों ने कहा कि लखनऊ के लिए यह म्यूरल एक बड़ी उपलब्धि है
लखनऊ। प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सबसे पुराने संस्थान रवींद्रालय के भवन पर लगे देश के प्रख्यात कलाकार पदम् पुरस्कार से सम्मानित के जी सुब्रमण्यम द्वारा बनाया गया। 13000 टाइल्स के टेराकोटा भित्तिचित्र जो कि जर्जर हालत में है, पर रवींद्रालय प्रांगण में लगे पुस्तक मेले के मुख्य मंच पर “कला और संरक्षण… एक संवाद “कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस संवाद का मुख्य उद्देश्य सुब्रमण्यम द्वारा रवींद्रालय के मुख्य दीवार पर लगे भित्तिचित्र के उपेक्षित संरक्षण की गंभीरता पर कलाकारों, कलाप्रेमियों व सरकार का ध्यान केंद्रित करना था। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित धर्मेंद्र मिश्रा (निदेशक, आईसीआई, इंटेक संस्थान, लखनऊ), वरिष्ठ मूर्तिकार पांडेय राजीवनयन, गिरीश पांडेय, वरिष्ठ कलाकार आलोक कुशवाहा, कला इतिहासकार अखिलेश निगम, कला चिंतक नरेश कुमार और इतिहासकार रवि भट्ट सहित बड़ी संख्या में कलाकार, कलाप्रेमी, कला कला छात्र, शोधार्थी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए कलाकार भूपेंद्र अस्थाना ने कहा कि जैसा कि कला जगत इस वर्ष 2024 में देश के प्रख्यात कलाकार के जी सुब्रमण्यन की जन्मशती मना रहे हैं। इस असाधारण व्यक्ति के जीवन और विरासत का सम्मान करना उचित है क्योंकि के जी सुब्रमण्यन एक उत्कृष्ट शिक्षक, उल्लेखनीय कलाकार और भारतीय आधुनिक कला के एक अग्रणी दूरदर्शी रहे हैं। उनका प्रभाव हमेशा प्रेरणादायक बना रहता है, जो उनकी कलात्मक दृष्टि के स्थायी महत्व और उनके रचनात्मक प्रयासों की कालातीत प्रासंगिकता को रेखांकित करता है। यदि हम अपनी कला और कलाकारों के प्रति जागरूक नहीं होंगे तो किसी भी कला संस्कृति का विकास संभव नहीं। हम सिर्फ के जी सुब्रमण्यम के ही कलाकृति के संरक्षण और दस्तावेजीकरण की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि लखनऊ में और भी कलाकारों के कलाकृतियों को भी इसी प्रकार संरक्षण और दस्तावेजों में दर्ज कराना होगा। इस कला कृति के साथ अन्य सभी कला कृतियों की संरक्षण के साथ उसे राष्ट्रीय सम्पदा मे शामिल किया जाना चाहिए।
कार्यक्रम में वक्ता के रूप में आये कला मर्मज्ञों में सर्वप्रथम गिरीश पांडेय ने म्यूरल जैसी धरोहर की क्षीण दशा पर चिंता प्रकट करते हुए उन्होने इस बात पर बल दिया कि ऐतिहासिक धरोहरों के साथ म्यूरल जैसी कला वस्तुओं को भी संरक्षित करने कि आवश्यकता है। वहीं वरिष्ठ कलाकार आलोक कुशवाहा ने कहा कि कला को जन सामान्य तक पहुचाने का कार्य अवश्य होना चाहिए। कला चिंतक नरेश कुमार ने कहा कि वर्तमान में सब स्मृतिविलय बीमारी से पीड़ित हैं। हम सबको अपनी कला संस्कृति धरोहरों के प्रति संवेदनशील होना होगा। अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य करने वाली संस्था इंटेक के निदेशक धर्मेंद्र मिश्रा ने कहा कि के जी सुब्रमण्यम के म्यूरल संरक्षण के लिए 2012 में एक रिपोर्ट तैयार की गई थी लेकिन तकनीकी कारणों से अभी तक वह क्रियान्वित नहीं हो सकी। हमारी संस्था इस विश्वस्तरीय म्यूरल का उपचार करने में सक्षम है, जरूरत इच्छाशक्ति की है। आगे कहा कि इस कला धरोहर की जीर्ण शीर्ण अवस्था का कारण प्रदेश में ऐसी विषयों पर लेखन की कमी से है।
संरक्षण के लिए लोगों को मीडिया के तमाम माध्यमों का प्रयोग कर प्रचार प्रसार व जागरूकता फैलाने की भी बात कही। उन्होंने बताया कि इंटेक द्वारा उत्तर प्रदेश भित्तिचित्रों के सर्वे में पाया गया कि यह भित्तिचित्र एक विशेष कला मूल्यों व सिरेमिक विधा का अनोखा नमूना है इस प्रकार की अन्य कोई कला निधि प्रदेश में नहीं प्राप्त हुई है। इसी कड़ी में वरिष्ठ मूर्तिकार और के जी सुब्रमण्यम के करीब रहे पांडेय राजीवनयन ने संरक्षण कैसे करें प्रश्न को उठाते हुए अकादमी के दायित्वों व कला संरक्षण में उनकी भूमिका व योगदान को भी भित्तिचित्र की अनदेखी का कारण माना। सरकारी निधि व सरकार पर ही सिर्फ आश्रित न रहकर कलाकारों और कॉरपोरेट आदि माध्यमों से निधि एकत्रित करके इन विरासतों का जीर्णोद्धार किया जा सकता है। इसके लिए कला से जुड़े लोगों को सामने आकर पहल करनी होगी और कलाकारों को भी अपनी दायित्व को समझना और समझाना होगा। इतिहासकार रवि भट्ट ने कहा कि कलाकार के हस्ताक्षर कलाकृति दुर्दशा पर बहुत दुःख होता है।
1963 में के जी सुब्रमण्यम द्वारा बनाया गया देश का ऐतिहासिक धरोहर के रूप में हमारे लखनऊ में मौजूद है, विशेषज्ञों की माने तो यह म्यूरल आज के तारीख में अरबों रुपये की है। लेकिन दुर्भाग्य है कि आम आदमी को तो छोड़िए नगर के कलाकारों को भी इस बात का अंदाज़ा नहीं है कि यह कितनी महत्वपूर्ण धरोहर है। दुखद है कि हम इस धरोहर की देखभाल नहीं कर पा रहे हैं। हम सभी को मिलकर इसके लिए प्रयास करना होगा। साथ ही कलाकारों के हस्ताक्षर वर्क पुनः आवृत्ति पर चिंता प्रकट की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कलाकार, कला इतिहासकार अखिलेश निगम ने कहा कि कला धरोहर को लखनऊ के सौंदर्यीकरण में शामिल किया जाना चाहिए साथ ही उन्होने इस बात पर ज़ोर दिया कि शैक्षिक पाठ्यक्रम में कला संरक्षण को एक पाठ्यक्रम के रूप मे भी शामिल किया जाना चाहिए जिससे इस ओर जागरूकता बढ़ सके और इस तरह की निधियों के महत्व को समझा जा सके। इससे जहां आम जागरूकता बढ़ेगी वहीं कला विद्यार्थियों को अपनी कला संरक्षित करने की जागरूकता बढ़ेगी। अंत में लखनऊ पुस्तक मेले के संयोजक ने आए हुए समस्त वक्ताओं और उपस्थित कलाकारों को आभार एवं धन्यवाद व्यक्त करते हुए कहा की पुस्तक मेला हमेशा कला व कलाकारों के लिए समर्पित है हम सदैव कला व कलाकारों के प्रोत्साहना के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।
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