विक्रम विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान प्रणाली में देवशिल्पी विश्वकर्मा के बहुआयामी अवदान पर महत्वपूर्ण संगोष्ठी सम्पन्न

  • विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी एवं संस्कृत अध्ययनशाला के सयुंक्त तत्वावधान में हुआ भगवान विश्वकर्मा एवं यंत्रों का पूजन

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी एवं संस्कृत अध्ययनशाला के सयुंक्त तत्वावधान में माघ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी पर देवताओं के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा जयंती के उपलक्ष्य में भारतीय ज्ञान प्रणाली में भगवान विश्वकर्मा के बहुआयामी योगदान पर महत्त्वपूर्ण संगोष्ठी आयोजित की गई। दिनांक 4 फरवरी को सम्पन्न इस कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रोफ़ेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने की। मुख्य अतिथि प्रोफेसर वाय. एस. ठाकुर उज्जैन इंजीनियरिंग कॉलेज, विशिष्ट अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेन्द्र कुमार शर्मा एवं संस्थान के निदेशक डॉक्टर डी. डी. बेदिया ने संगोष्ठी में महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किए।

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रोफ़ेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हमें भगवान विश्वकर्मा जी के जीवन से सीख लेना चाहिए। भगवान विश्वकर्मा इस सृष्टि के प्रथम शिल्पकार है। उन्हें देवताओं का इंजीनियर कहा जाता है। उन्होंने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि हमें सभी महापुरुषों के जीवन वृतांत से सीख लेकर जीवन में एक उद्देश्य बनाकर पूर्ण परिश्रम से कार्य करना चाहिए।

विश्वकर्मा जी द्वारा कई सिद्धांतों और ग्रंथों को आधार दिया गया जो आज इंजीनियरिंग के लिए महत्वपूर्ण शिक्षा के माध्यम हैं। उनके द्वारा रचित श्री जगन्नाथ जी की मूर्तियां स्वयं में एक अनूठा शिल्प है, जो आज के समय में पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त है। मुख्य अतिथि प्रोफेसर वाय. एस. ठाकुर ने अपने वक्तव्य में विश्वकर्मा जयंती के उद्देश्य से विद्यार्थियों को अवगत कराया गया। उन्होंने इंजीनियरिंग शिक्षा में उनके जीवन से मिलने वाली प्रेरणा पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि हमें भी अपने उद्देश्य को निर्धारित कर कुछ और अंतिम लक्ष्य पाने तक कोशिश करते रहना चाहिए। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि कुलानुशासक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने बताया कि विश्वकर्मा जी के पंचमुख हमें सृष्टि के मूल पंच तत्वों की महिमा का ज्ञान देते हैं। उनके द्वारा संरचित कई नगर, देवालय, प्रासाद, किले, गुहा आदि के पुरातिहासिक साक्ष्य उपलब्ध हैं। उनके द्वारा हस्तिनापुर, इंद्रप्रस्थ, लंका, द्वारिका आदि का निर्माण किया गया था। उनके द्वारा आकल्पित और निर्मित कई प्राचीन स्थान आज भी मौजूद हैं।

हमें भारतीय ज्ञान प्रणाली से इंजीनियरों को जोड़ने के लिए उन्हें संस्कृत का ज्ञान देना चाहिए। इससे वे प्राचीन साहित्य में उपलब्ध वैज्ञानिक तथ्यों को अच्छे से समझ सकेंगे एवं भविष्य में उनका उपयोग कर देश के नवनिर्माण में योगदान दे सकेंगे।

संस्थान के निदेशक डॉ डी डी बेदिया ने बताया कि वर्तमान समय में एक इंजीनियर की क्या भूमिका होती है एवं विद्यार्थी किस तरह अपने जीवन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई को आत्मसात कर एक अच्छा कैरियर बना सकते हैं। चाहे वह किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो।उन्होंने कहा कि बिना इंजीनियरिंग के देश का विकास संभव नहीं है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में उस देश के इंजीनियर का बहुत बड़ा योगदान होता है।

सिविल इंजीनियरिंग से देश ही नहीं वरन विश्व का विकास होता है। इंजीनियरिंग से हम विश्व को गति प्रदान करते हैं। भगवान ब्रह्मा के पुत्र धर्म थे, धर्म के पुत्र वास्तु एवं वास्तु के पुत्र भगवान विश्वकर्मा थे जिन्होंने द्वारिका, हस्तिनापुर जैसे नगरों का निर्माण किया। इंजीनियर देश को शक्ति देता है।

4 फरवरी 2023 को हुए विश्वकर्मा जयंती कार्यक्रम के शुभारंभ में भगवान विश्वकर्मा जी एवं प्रयोगशाला के यंत्रों का पूजन अर्चन एवं मंगलाचरण डॉ गोपाल कृष्ण शुक्ला एवं डॉ महेंद्र पंड्या द्वारा किया गया। तत्पश्चात कार्यक्रम में पधारे समस्त अतिथियों का स्वागत मौक्तिक माल द्वारा किया गया। कार्यक्रम में स्वागत भाषण एवं अतिथि परिचय डॉक्टर डी. डी. बेदिया डायरेक्टर द्वारा दिया गया। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन सुश्री अमृता शुक्ला ने किया। इस अवसर पर इंजीनियरिंग एवं संस्कृत अध्ययनशाला के समस्त शिक्षक, स्टाफ सहित विद्यार्थीगण मौजूद रहे।

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