A look at the political life of freedom fighter Chaudhary Digambar Singh...

स्वतंत्रता सेनानी चौधरी दिगंबर सिंह के राजनीतिक जीवन पर एक नजर…

आदित्य चौधरी, नई दिल्ली। चौधरी दिगम्बर सिंह मथुरा के अपने जमाने के दिग्गज नेता थे। दिगम्बर सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और चार बार लोकसभा सांसद रहे थे। आज हम जानेंगे इस महान नेता के राजनीतिक जीवन के बारे में। चौधरी दिगम्बर सिंह का जन्म 9 जून 1913 को सादाबाद तहसील के कुरसंडा गांव में एक जमींदार परिवार में हुआ था। यह क्षेत्र उन दिनों मथुरा जिले का हिस्सा हुआ करता था आजकल हाथरस जिले के अंतर्गत आता है।

दिगम्बर सिंह ने हाइस्कूल तक शिक्षा पाई। युवा होने पर वे मथुरा जिले में कांग्रेस के संस्थापक माने जाने वाले नेता हकीम ब्रजलाल बर्मन के संपर्क में आये और स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन से जुड़ गए। 1941 में उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। मथुरा और चुनार के कारागारों में उन्हें एक वर्ष तक कैद रखा गया। अगले ही वर्ष उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया।

राजनीतिक सफर : चौधरी दिगम्बर सिंह 1945 में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य चयनित हुए बाद में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी बने। देश आजाद होने के बाद 1952 में पहले आम चुनाव में वे इंडियन नेशनल कांग्रेस के टिकट पर उस लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीते जिसे आजकल जलेसर लोकसभा क्षेत्र कहा जाता है। उस समय यह “22, एटा डिस्ट्रिक्ट (वेस्ट) cum मैनपुरी डिस्ट्रिक्ट (वेस्ट) cum मथुरा डिस्ट्रिक्ट (ईस्ट)” होता था। इस चुनाव में उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के गंगा सिंह को 63 हजार मतों से पराजित किया। भारतीय जनसंघ के बाबू राम यादव तीसरे स्थान पर रहे।

1957 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने मथुरा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। निर्दलीय राजा महेंद्र प्रताप इस चुनाव में विजयी हुए। राजा महेंद्र प्रताप को 95202 मत मिले थे। दूसरे स्थान पर रहे दिगम्बर सिंह को 69209 मत मिले थे। तीसरे स्थान पर 29177 मत लेकर रहे निर्दलीय पूरन। और चौथे स्थान पर आए भारतीय जनसंघ के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेई जिन्हें महज 23620 मत मिल पाए।

1962 के लोकसभा चुनाव में दिगम्बर सिंह अपने प्रतिद्वंद्वी राजा महेंद्र प्रताप को हराने में कामयाब रहे। दिगम्बर सिंह को 78062 मत मिले जबकि निर्दलीय राजा महेंद्र प्रताप को 51178 मत मिले। जनसंघ के रामेश्वर दास 37327 मत लेकर तीसरे स्थान पर रहे वहीं सोशलिस्ट राधेश्याम 29269 मत लेकर चौथे स्थान पर रहे।

1967 का चुनाव मथुरा के लिए बहुत खास था इस सीट से निर्दलीय ताल ठोक दी थी भरतपुर राजपरिवार के गिरिराज शरण सिंह ने जो आम जनमानस के बीच राजा बच्चू सिंह के नाम से जाने जाते थे और खासे लोकप्रिय थे। इनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि चुनावी सभा में राजा साहब वोट मांगने के बजाय जनता को दर्शन देने आते थे। इस जाट बाहुल्य सीट पर बच्चू सिंह की ऐसी लहर चली कि राजा साहब 84 हजार वोटों से चुनाव जीत गए।

दूसरे स्थान रहे कांग्रेस प्रत्याशी दिगम्बर सिंह जो पिछले चुनाव की तुलना में दस हजार वोट ज्यादा लाये फिर भी बहुत अंतर से चुनाव हारे। राजा बच्चू सिंह को 172785 वोट मिले जबकि दिगम्बर सिंह को 88354 वोट मिले। 1969 में दिगम्बर सिंह कांग्रेस छोड़कर चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल में शामिल हो गए। इस बीच सादाबाद की विधानसभा सीट पर हुए चुनाव में भी दिगम्बर सिंह ने हिस्सा लिया लेकिन विजय उनके हाथ नहीं लगी।

राजा बच्चू सिंह के निधन के बाद रिक्त हुई मथुरा लोकसभा सीट पर 1970 में उपचुनाव हुआ। इस बार दिगम्बर सिंह भारतीय क्रांतिदल की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे। उनके मुकाबले में थे हरियाणा के दिग्गज नेता मनीराम बागड़ी और भरतपुर राज परिवार के राजा मान सिंह। इस चुनाव में विजय दिगम्बर सिंह के हाथ लगी।

अगला चुनाव 1971 में हुआ जिसमें कांग्रेस की टिकट पर थे चकलेश्वर सिंह वहीं भारतीय क्रांतिदल की टिकट पर थे दिगम्बर सिंह। इंडियन नेशनल कांग्रेस (आर्गेनाईजेशन) की टिकट पर थे विजेंद्र केशोरैया। इस चुनाव में 111864 वोट के साथ विजय हाथ लगी चकलेश्वर सिंह के। 90425 वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे दिगम्बर सिंह और 42166 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे।

1980 के लोकसभा चुनाव में दिगम्बर सिंह जनता पार्टी सेक्युलर के टिकट पर चुनाव लड़ा। उनके मुकाबले पर थे कांग्रेस (आई) के आचार्य लक्ष्मी रमन और जनता पार्टी के राधेश्याम शर्मा। इस चुनाव में दिगम्बर सिंह 166774 वोट लेकर विजयी हुए। दूसरे स्थान पर रहे आचार्य लक्ष्मी रमन को 84111 वोट मिले वहीं 68204 वोट लेकर राधेश्याम शर्मा।

यह उनका अंतिम चुनाव था इसके बाद उन्होंने अगला चुनाव नहीं लडा पर राजनीतिक रूप से सक्रिय बने रहे और पार्टी के लिए काम करते रहे। वर्ष 1990 में इन्होंने राजनीतिक जीवन का त्याग कर दिया पर सामाजिक रूप से इनकी सक्रियता बनी रही। 10 दिसंबर 1995 को मथुरा शहर के मेथोडिस्ट हॉस्पिटल में इन्होंने अंतिम सांस ली।

गतिविधियां और योगदान : दिगम्बर सिंह एक ईमानदार और आदर्शों के धनी व्यक्ति थे। सहकारिता के सिद्धांतों पर कार्य करना उनका स्वभाव था। श्रमदान के बल पर उन्होंने एक ही दिन में एक विद्यालय के छह कमरों का निर्माण करा दिया था। श्रमदान के बल पर ही कुरसंडा रजवाहा की खुदाई करवा डाली थी। 1953 में उन्हें जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष बनाया गया और वे 25 वर्ष तक इस पद को सुशोभित करते रहे। सहकारी किसान भवन का निर्माण उन्होंने चंदे के बल पर ही करा दिया था।

जिला सहकारी बैंक, जिला सहकारी संघ और पराग डेरी के भवनों का निर्माण दिगम्बर सिंह की देन है। मथुरा आकाशवाणी की स्थापना उन्ही के प्रयासों का फल है। उनके व्यक्तित्व के आदर्शों का परिचय प्रिविपर्स समाप्त करने के मामले में अपनी पार्टी लाइन के बाहर जाकर मतदान करने की घटना से मिलता है।

हुआ यूं था कि राजाओं को मिलने वाले विशेष अधिकारों जिन्हें प्रिविपर्स कहा जाता था को इंदिरा गांधी समाप्त करने पर तुली हुई थीं। चौधरी चरण सिंह की पार्टी इंदिरा गांधी के इस कदम का विरोध कर रही थी। सदन में मतदान की नौबत आने पर दिगम्बर सिंह ने प्रिविपर्स के खिलाफ मतदान किया।

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