किसान आंदोलन से धधक उठे यूरोप के कई देश

भारतीय किसान आंदोलन की तर्ज़ पर यूरोप के कई देशों में किसान आंदोलन उफान पर
वैश्विक स्तर पर अन्नदाता किसानों की समस्याओं पर मंथन कर चार्टर बनाना समय की मांग- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर किसानों के महत्व का मूल्यांकन हर देश अच्छी तरह से समझता है, क्योंकि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था व विकास में किसानों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। परंतु लंबे समय से हम देख रहे हैं कि इन्हीं किसानों को अपनी समस्याओं के लिए लंबा जद्दोजहद करना पड़ता है। हम भारत में पिछले सालों एक लंबा आंदोलन देख चुके हैं, जिसने सरकार को भी हिला दिया था फिर एमएसपी का समाधान करने का आश्वासन देकर आंदोलन समाप्त कर दिया गया था, जिसका अभी तक किसानों में समाधान नहीं दिख रहा है। वहीं आंदोलन की सुगबुगाहट उठ रही है। परंतु ऐसी चिंगारी अभी यूरोपीय देशों में हमें पिछले कुछ दिनों से देखने को मिल रही है। यूरोपियन यूनियन के कई देश फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड, रोमानिया सहित अनेक देशों में किसान आंदोलन ने जोर पकड़ा है।

जिस समय फ्रांस के राष्ट्रपति 26 जनवरी 2024 को भारतीय गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे तब फ्रांस में किसानों का आंदोलन भारतीय तर्ज पर ट्रैक्टर मार्च शुरू हुआ था। अब सरकारों ने मंथन कर कुछ मांगों पर मंजूरी दी है, जैसे भारत में एमएसपी पर आंदोलन था वैसे ही फ्रांस व अनेक यूरोपीय देशों में पर्यावरण अनुकूल नीतियों से परेशानी, रूस यूक्रेन युद्ध से बदली कुछ नीतियां, करों में बेतहाशा बढ़ोतरी, मुक्त व्यापार समझौता में सस्ता विदेशी माल आयात करने, गैस बिजली की बढ़ती कीमतों,जलवायु परिवर्तन संबंधी सख्त नियमों से किसानो को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, इस आंदोलन में सामान्य व्यक्ति भी शामिल हो गए हैं करीब 89 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल होने की बात की जा रही है, जिस पर सरकार भी सकते में है। चूंकि भारतीय किसान आंदोलन की तर्ज पर यूरोप के कई देशों में किसान आंदोलन उफान पर है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, वैश्विक स्तर पर अन्नदाता किसानों की समस्याओं पर मंथन कर चार्टर बनाना समय की मांग है।

साथियों बात अगर हम यूरोप के कुछ देशों में किसान आंदोलन की करें तो, किसानों का कहना है कि सरकार अपने सरकारी खजाने को भरने के लिए किसानों के करों में बेतहाशा बढ़ोतरी कर रही है। ब्रुसेल्स में हुए सम्मलेन के बाद अंतहीन मुक्त व्यापार सौदों के माध्यम से सस्ते विदेशी आयात को प्रतिस्थापित कर रही है।जिन देशों के साथ मुक्त व्यापर को बढ़ावा दिया जा रहा है, वहां के किसानों को समान नियामक आदेशों के तहत काम नहीं करना होता जबकि हमें जलवायु परिवर्तन नीतियों के साथ काम करना पड़ता है। किसानों के इस आंदोलन के साथ आम लोगों की भी सहानुभूति देखी जा रही है। आम लोग भी देश में गैस और बिजली के बढ़ते दामों से परेशान है, उनकी क्रय शक्ति ख़त्म होती जा रही है। लोगों में गुस्सा तब और बढ़ गया जब उनकी अपनी सरकार यूक्रेन को समर्थन देने को अपनी नैतिक जिम्मेदारी बताती है। जबकि ये युद्ध खुले तौर पर देश के पूंजीपति घरानों और सैन्य औद्योगिक परिसर के लिए व्यापार बढ़ने का एक अद्भुत मौका रहा है।

आम जनता की शिकायत है कि इन सब नीतियों पर सरकारी नुमाइंदे अपने विचार प्रकट कर देते है, लेकिन जब फ्रांसीसी नेशनल असेंबली में बढ़ते महंगाई को नियंत्रित करने के लिए भत्ते के रूप में प्रति माह की वृद्धि को मंजूरी दी जाती है तब सरकार इसको अनसुना कर देती है। किसानों का कहना है कि वे कम उपभोक्ता कीमतों से परेशान हैं और सरकार से कीमतें बढ़ाने की मांग की है। किसानों का आरोप है कि महंगाई को कम करने के लिए सरकार ने खाद्य कंपनियों पर कीमतें कम करने का दबाव बनाया था। कीमतें कम करने की वजह से किसानों की आय प्रभावित हुए, जिससे किसानों का गुस्सा भड़क उठा। यूरोपीय संघ के सबसे बड़े कृषि उत्पादक फ्रांस में कई किसानों का कहना है कि उन्हें खुदरा विक्रेताओं से अपनी कीमतें कम करने के लिए बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है और इससे उनकी आजीविका को खतरा है। फार्म यूनियनों ने ट्रैक्टर ईंधन पर सरकारी टैक्स, विदेशी अनाज के सस्ते आयात, पानी तक पहुंच, अत्यधिक वीआईपी कल्चर और पर्यावरण नियमों का भी हवाला दिया है। फ्रांस में ग्रामीण क्षेत्रों में दो सप्ताह तक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। जर्मनी और पोलैंड और अन्य यूरोपीय देशों के किसान सरकारी नीतियों से परेशान हैं और बीते कुछ दिनों में विरोध-प्रदर्शन भी किया है।

साथियों बात अगर हम फ्रांस में किसान आंदोलन उफान पर होने की करें तो, फ्रांस में चल रहे किसानों के आंदोलन के बाद फ्रांसीसी सरकार देश के प्रमुख राजमार्गों से बड़ी संख्या में ट्रैक्टरों को हटाने के लिए संघर्ष कर रही है। किसान आंदोलन के प्रभाव को लेकर ओडोक्सा द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 89 प्रतिशत फ्रांसीसी नागरिक प्रदर्शनकारी किसानों का समर्थन कर रहे हैं। अब फ्रांस के भी किसान उस आंदोलन में शामिल हो गए हैं, जिसमें अब यूरोपीय संघ का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा शामिल है। इस एक खास ब्लॉक के 27 देशों में से पांच में किसानों ने अपनी मांगो को लेकर सड़कों को अवरुद्ध कर रखा हैं।पोलैंड, रोमानिया, जर्मनी और नीदरलैंड के किसानों के इस आंदोलन को फ्रांस के किसानों का समर्थन मिलने के बाद इस आंदोलन में एक तीव्र गति देखी जा रही है। फ्रांसीसी किसानों की शिकायतें भी पूरे यूरोपीय संघ के किसानों की शिकायतों से मिलती-जुलती हैं। वे अपनी ही सरकारों से नाराज हैं। किसानों को इस बात से शिकायत है कि ब्रुसेल्स में हुए मीटिंग के बाद उनकी अपनी निर्वाचित सरकारें टेक्नोक्रैट के दबाव में अपनी नीतियों को किसानों के खिलाफ बदल रहे हैं। इन पांचो ही देशों में किसानों को अपनी सरकार के इन्हीं नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतरना पड़ा, इसलिए उनकी मांगें भी समान है।

किसान ऊर्जा के लिए उचित मूल्य चाहते हैं जबकि यूरोपीय संघ ने न केवल महंगी जलवायु नीतियां लागू की हैं जो जीवाश्म ईंधन को प्लेग की तरह मानती हैं। बल्कि रूस, यूक्रेन में यूक्रेन का समर्थन करने के लिए यूरोप की अर्थव्यवस्था को चलाने वाली सस्ती रूसी गैस की अपनी आपूर्ति को नष्ट करने का भी फैसला किया है। साथ ही उन्होंने यूक्रेन से वस्तुओं और सेवाओं पर आयात शुल्क हटाने का फैसला किया, जिससे यूरोपीय संघ में ट्रक ड्राइवरों की बाढ़ आ गई जो स्थानीय प्रदाताओं को कम कीमत पर अपना सामान बेचते हैं और तो और उन कृषि उत्पादों को भी कम कर देते हैं जो यूरोपीय किसानों के यूरोपीय संघ के मानकों को भी पूरा नहीं करते हैं। इन सब नीतियों की वजह से सरकारें अपनी खर्च को कम करने के उपाय ढूंढ रही हैं और ऐसे में किसानों पर बोझ डाला जा रहा है। फ्रांस के किसानों का विरोध प्रदर्शन पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। सैकड़ों किसान सरकार की नीतियों के खिलाफ सड़क पर उतर आए हैं। प्रदर्शनकारियों ने ट्रैक्टरों से चक्का जाम किया हुआ है। सरकारी कार्यालयों के बाहर बदबूदार कृषि कचरा भी फेंककर विरोध दर्ज कराया जा रहा है।

कुछ नाराज प्रदर्शनकारी राजधानी पेरिस के आसपास के ट्रैफिक को ब्लाॅक करने की योजना बना रहे हैं। यह स्थिति सिर्फ फ्रांस तक सीमित नहीं है, फ्रांस यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा कृषि उत्पादक है और फ्रांसीसी किसानों का विरोध जर्मनी, पोलैंड और रोमानिया जैसे बाकी यूरोपीय देशों में भी फैल रहा है। सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे किसानों की मुख्य मांग बेहतर वेतन की है। सरकार की पर्यावरण अनुकूल नीतियों से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध से यूरोपियन यूनियन के किसानों को काफी परेशानी हो रही है। बढ़ते विरोध के बीच राज्य सरकारों ने किसानों को राहत देने वाली योजनाओं की घोषणा की है, लेकिन क्षेत्रिय किसान संगठनों का कहना है कि ये सब उनकी मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। आइए जानते हैं कि आखिर बात यहां तक पहुंची कैसे और यूरोपियन यूनियन के किसानों की नाराजगी की क्या वजह है। फ्रांस और कुछ यूरोपियन यूनियन के देशों में बायोडायवर्सिटी को बरकरार रखने के लिए किसानों से उनकी उपजाऊ जमीन के कुछ हिस्सों पर खेती ना करने के लिए कहा जा रहा है। इन देशों में कृषि योग्य भूमि का 4 प्रतिशत हिस्सा गैर-उत्पादक सुविधाओं जैसे हेजेज, ग्रोव्स और फैलो लैंड को समर्पित करना जरूरी है। इस तरह के नियमों से किसानों की उपज में गिरावट आई है। डेयरी किसानों की शिकायत है कि सरकार महंगाई को काबू करने पर जोर दे रही, जिससे उन्हें घाटा हो रहा है, इससे किसान अपने पैदावार की उच्च लागत को कवर करने में असमर्थ हो रहे हैं।

साथियों बात अगर हम आंदोलन से सकते में फ्रांस सरकार द्वारा समाधान की करें तो, फ्रांसीसी सरकार ने किसानों की कुछ मांगों को मंजूरी दी है। सरकार ने कृषि डीजल पर राज्य सब्सिडी को धीरे-धीरे कम करने की योजना छोड़ दी है। किसानों के सामने आने वाले वित्तीय और प्रशासनिक दबाव को कम करने के उद्देश्य से भी कई कदमों की घोषणा की जा चुकी है। पीएम गेब्रियल अटल ने किसानों को शांत करते हुए कहा, हम कृषि को हर चीज से ऊपर रखेंगे। किसान संगठनों ने प्रदर्शन रोकने का कोई संकेत नहीं दिया है। फ्रांस के सबसे बड़े फार्मिंग यूनियन, एफएनएसईए ने मीडियो को बताया कि वो अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेगा, साथ ही कई किसान मोटर मार्गों और प्रमुख सड़कों पर लगाए गए रोड ब्लॉक पर डटे रहेंगे। रिपोर्ट्स के मुताबिक फ्रांस के प्रदर्शन की आग को राजनीतिक हवा भी मिल रही है। दरअसल, जून में यूरोपीय संसद चुनाव होने वाले हैं। विपक्षी दल इन विरोध प्रदर्शनों का फायदा उठा सकते हैं।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि किसान आंदोलन से धधक उठे यूरोप के कई देश। भारतीय किसान आंदोलन की तर्ज़ पर यूरोप के कई देशों में किसान आंदोलन उफान पर। वैश्विक स्तर पर अन्नदाता किसानों की समस्याओं पर मंथन कर चार्टर बनाना समय की मांग है।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च करफॉलो करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

four × five =