“आईना”
आईना
तुम हर बार झूठ बोलते हो ,
तुम्हारा तो टूट जाना ही अच्छा है! सिर्फ बाहरी आवरण की
सुंदरता ही पसंद है तुम्हें,
तुम क्यों इसी छल के
चकाचौंध में फंसे रहते हो ,
तुम हर वक्त झूठ
सिर्फ झूठ ही कहते हो!!
तुमने हर वक्त इंसान को
सच से बेखबर
रखने की कोशिश की,
गर थोड़ी भी तुम में
ईमानदारी होती
तो बता देते उसे
कि वह कितना
मैला हो गया है अंदर से!
वह सिर्फ अपने
स्वार्थ के लिए जीता है
वक्त आने पर
अपनों का ही लहू पीता है
तुम्हारी इसी झूठ ने
इंसान को और भी
ताकतवर बना दिया है क्योंकि
वह यह जानता है कि
तुम कभी उसकी असलियत
दुनिया के सामने
आने नहीं दोगे!
उसके हर गलतियों पर
तुम झूठ का पर्दा
डालते रहोगे
आईना तुम हर बार
झूठ बोलते हो
तुम्हारा तो टूट कर
बिखर जाना ही ठीक है
आईना
तुम सिर्फ झूठ बोलते हो!!
अर्चना पांडेय
*दुर्गापुर, पश्चिम बंगाल*