देवनागरी लिपि भारतीय एकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है- डॉ. हरि सिंह पाल
नागरी लिपि को राष्ट्रीय लिपि घोषित किया जाना चाहिए – डॉ. हरि सिंह पाल
लखनऊ। भारत के भाषायी विवाद को सुलझाने एवं सभी भाषाओं को, भारतीयों को सुगम बनाने के लिए समस्त भाषाओं को देवनागरी लिपि लिखने की पहल करनी चाहिए। यह उद्गार आज हिंदी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ में नागरी लिपि परिषद के महासचिव डॉ. हरि सिंह पाल ने प्रकट किए। उन्होंने देवनागरी के विकास का परिचय देते हुए स्पष्ट किया कि देवनागरी लिपि ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है और संविधान की अष्टम सूची में स्वीकृत 22 भाषाओं में से 10 भाषाओं की लिपि देवनागरी है। उन्होंने कहा कि जिन अंको का प्रयोग हम करते हैं वह अंक भारतीय हैं। शून्य का अंक देवनागरी की निजी विशेषता है। इसकी खोज ऋषि अग्रसेत ने की थी।
देवनागरी लिपि के विकास में तिलक, महात्मा गांधी, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, काका कालेलकर, विनोबा भावे आदि ने विशेष योगदान दिया। सन 1975 में गठित नागरी लिपि परिषद इस तथ्य के लिए प्रयत्नरत हैं। आवश्यकता इस बात की है कि आज सभी भाषाएं अपनी-अपनी लिपि के साथ देवनागरी लिपि में भी अपनी सामग्री प्रस्तुत करें, इससे सब भाषाएं एक दूसरे के समीप आएंगे और राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करेंगी।
इससे पूर्व हिंदी विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर रश्मि कुमार ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन डॉ. पवन अग्रवाल ने किया। इस अवसर पर विभागीय शिक्षकों डॉ. श्रुति, डॉ. अलका पांडे, डॉ. हेमांशु आदि के साथ शोध छात्र उपस्थित रहे।