आशा विनय सिंह बैस की कलम से : हुक्के का इतिहास

रायबरेली। भारत में तंबाकू की खेती पुर्तगालियों द्वारा 1605 में बीजापुर में शुरु की गई थी। उसके बाद तंबाकू गुजरात के कैरा और मेहसाणा जिलों में उगाई जाने लगी। बाद में धीरे-धीरे यह देश के अन्य क्षेत्रों में भी फैल गई। कालांतर में इस तंबाकू को पीने के लिए हुक्के नामक यंत्र का आविष्कार हुआ। हालांकि हुक्के की उत्पत्ति पर विवाद है लेकिन ऐसा माना जाता है कि भारत के उत्तर पश्चिमी प्रांतों राजस्थान और गुजरात में ही सबसे पहले हुक्का पीने की शुरुआत हुई थी।

हुक्का को तुर्की में शीशा, फ़ारसी में कल्यान या नरगिल और ब्रिटिश औपनिवेशिक भारत में हबल-बबल, कश्मीर में इसे जजीर जबकि मालदीप में गुडग़ुड़ा बोला जाता है। पहले के हुक्के आमतौर पर नारियल के खोल और ट्यूब से बने होते थे। हुक्के के चार भाग होते हैं। सबसे ऊपर चिलम होती है, इसके बाद एक पाइप (स्टेम) होती है जो इसे आधार से जोड़ती है। नीचे पानी रखने के लिए एक बोतलनुमा बर्तन और हुक्का पीने के लिए एक पतली पाइप होती है जिसे मोहनल भी कहा जाता है।

कहते हैं कि हुक्का पीने में पांचों इंद्रियों का उपयोग होता है। सबसे पहले इसे आंखो से कला के संग्रहणीय रूप में देखना सुखद है। पाइप के माध्यम से स्पर्श का अनुभव होता है। धूम्रपान से स्वाद और गंध की तृप्ति होती है और ध्वनि का घटक तरंगित जल में पाया जाता है। हुक्का सदियों से संस्कृति का एक केंद्रीय हिस्सा रहा है। शाही खानदानों में राजा और रानी दोनों की शाही पसन्द में से एक हुक्का हुआ करता था। इसे अक्सर आतिथ्य और दोस्ती के प्रतीक के रूप में उपयोग किया जाता है। गांव-देहात में किसी व्यक्ति या परिवार के गलत काम करने पर उसका ‘हुक्का- पानी बंद करने, यानि उसे समाज से अलग-अलग करने की भी परंपरा रही है।

हुक्के का उपयोग गठबंधन बनाने, संधियों पर हस्ताक्षर करने और व्यापारिक सौदों पर मुहर लगाने के लिए किया गया है। हुक्का ने राजनीति में भी भूमिका निभाई है। हरियाणा में ताश की बाजी के साथ हुक्का गुडग़ुड़ाते हुए सियासत की ऐसी महफिल जमती है कि उसके आगे तमाम टीवी डिबेट करने वाले भी हैरान रह जाएं। हरियाणा में हुक्के को लेकर बहुत सी कहावतें भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि फलते-फूलते घरों में हुक्के की चिलम जलती रहनी चाहिए। यहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों में आग और पानी को देवता तुल्य माना जाता है और इन दोनों को एक ही स्थान पर पाकर ‘हुक्के’ वाले इसे घर की समृद्धि और संपन्नता का प्रतीक मानते है।

‘हुक्के’ की अपनी ही मान मर्यादा और अपना अलग ही संविधान है। यह परंपरा है कि विवाह आदि समारोह में चाहे भोजन न परोसा जाए पर हुक्के का प्रबंध जरूर होना चाहिए। हुक्का सबसे पहले सबसे बुजुर्ग या सम्मानित व्यक्ति को दिया जाता है उसके बाद ही अन्य लोग हुक्के को गुड़गुड़ा पाते हैं। हुक्के की चिलम में आग और तंबाकू भरने का काम मेजबान या सभा के किसी छोटे व्यक्ति का होता है। ‘चिलम भरना’, एक मुहावरा भी है जिसका अर्थ किसी की गुलामी या सेवा करने से है।

हुक्के का चलन केवल हरियाणा में ही नहीं बल्कि भारत के कश्मीर, राजस्थान में भी हुक्के की अपनी एक समृद्ध परम्परा रही है। भारत के अलावा अफगानिस्तान, पाकिस्तान, फिलीपिंस, बांग्लादेश, बलोचिस्तान, सीरिया, तुर्की, केन्या, दक्षिण अफ्रीका में भी हुक्का खूब शौक से पिया जाता है। पहले हुक्के के शौकीन लोग धुएं को अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए तम्बाकू को अक्सर शहद और मसालों के साथ सुगंधित या मीठा कर देते थे। आजकल तो हुक्का में प्रयुक्त तम्बाकू के एप्पल (सेब), मिंट, चेरी, चॉकलेट, लीकोरिस, कैपेचीनो और वॉटरमेलन (तरबूज) आदि फ्लेवर आने लगे हैं। बड़े शहरों में जगह जगह हुक्का बार खुल गए हैं।

हालांकि हुक्का पीने वाले काफी सारे लोग मानते हैं कि सिगरेट के मुकाबले यह कम हानिकारक होता है। ऐसे लोगों का मानना है कि तंबाकू के धुएं को पानी से गुजारने पर उसके हानिकारक तत्त्वों से बचा जा सकता है। साथ ही इसे भोजन पचाने वाला और वजन नियंत्रित करने वाला भी समझा जाता रहा है। परन्तु यह अवधारणा गलत साबित हुई है। हुक्के के धुएं में मौजूद निकोटीन आपकी भूख को दबा सकता है जिससे अल्पावधि में वजन कम हो सकता है लेकिन समय के साथ निकोटीन से वजन बढ़ जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि निकोटीन आपके चयापचय को बढ़ा देता है जिससे कैलोरी बर्निंग बढ़ सकती है।

हुक्का पीने से दिल की सेहत को भी नुकसान पहुंचता है। हुक्के के धुएं में निकोटीन होता है, जो दिल की धड़कन और ब्लड प्रेशर बढ़ाता है। इससे दिल की बीमारी और स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है। इसके अलावा, हुक्का से निकले खतरनाक केमिकल फेफड़ों को नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे ऑक्सीजन लेवल घट जाता है और दिल पर तनाव बढ़ता है। फ्लेवर्ड हुक्का में भी ऐसे तत्व होते हैं जिनमें तंबाकू होती है। जिसके चलते हुक्का पीने वाले लोगों को बार-बार हुक्का पीने की इच्छा होती है। इसके सेवन से कैंसर होने का खतरा बना रहता है।

मेरे चारों बाबा हुक्का पीते थे। वह कई बार चिलम में तंबाकू भरकर घर से आग लाने के लिए हम लोगों को हुक्का पकड़ा देते थे। इसका फायदा उठाते हुए हम भी कई बार चोरी से रास्ते में हुक्का गुड़गुड़ा लिया करते थे। लेकिन अब चूंकि मैं इसके दुष्प्रभावों से अच्छी तरह परिचित हूं इसलिए यही कहूंगा कि – “हुक्के का इतिहास जानें। इसके सामाजिक और राजनैतिक महत्व को भी समझें। मन करे तो इसके साथ फोटोशूट भी कर लें लेकिन इससे इतनी ही दूरी बनाए रखें जितनी मैंने फोटो में बनाए रखी है।”IMG_20230926_111545

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *