सामयिकी
नाम पर स्वातन्त्र्य के स्वछन्दता सिखला रहे हैं
वो हमारे संस्कारों की जड़ें ही खा रहे हैं
पातकी न्यायाधिपति जबरन शयन कक्षों में घुस कर
राह पर विद्रोह की बरबस हमें ले जा रहे हैं
डीपी सिंह
सामयिकी
नाम पर स्वातन्त्र्य के स्वछन्दता सिखला रहे हैं
वो हमारे संस्कारों की जड़ें ही खा रहे हैं
पातकी न्यायाधिपति जबरन शयन कक्षों में घुस कर
राह पर विद्रोह की बरबस हमें ले जा रहे हैं
डीपी सिंह