अमिताभ अमित, पटना। धूम-धाम से माँ विद्यादायिनी का विसर्जन रविवार को कर आज मुखातिब हूं आप सबके सम्मुख। लिहाजा आइये आज देवलोक मे माँ लक्ष्मी की पड़ोसी माँ सरस्वती की चर्चा करें। लोग यह मानते है कि इन दोनो मे कुछ ख़ास बनती नहीं आपस मे! तो आज इन दोनों माताओं में क्यो नहीं बनती और बनती है तो कितनी बनती है वाले मुद्दे पर रोशनी डाली जायेगी। तो ये देवियाँ है दुनिया की सरकार चलाते त्रिदेव मे से दो की पत्नियाँ। ज़ाहिर है स्वर्ग के, वीआईपी पॉश इलाक़े मे निवास है इनका। जैसी की परम्परा है, त्रिदेवों ने अपनी पत्नियों को भी मंत्री मंडल मे शामिल कर लिया। लक्ष्मी को मलाईदार धन विभाग मिला और सरस्वती के हिस्से मे संस्कृति और शिक्षा जैसे सूखे विभाग आये।
इन देवियों को देवलोक के स्टेट गैरेज द्वारा जो वाहन अलॉट किये गये, उसमे हंस सरस्वती को मिला और लक्ष्मी के हिस्से मे उल्लू आया। यही से इन देवियों की आपसी तकरार शुरू हुई! मां सरस्वती को अलॉट वाहन का माईलिग एवरेज बेहतर था, देखने मे चकाचक था और फिर हंस की जो क्वॉलिटी प्रख्यात भी थी उन दिनों। विवेक का प्रतीक था वो, संस्कृत साहित्य में नीर-क्षीर विवेक का जिक्र है! वह दूध का दूध और पानी का पानी कर सकता था। ज़ाहिर है ज्यूडीशरी वालो के साथ-साथ दूध बेचने वाले तक उसकी कद्र करते थे।
और मैया लक्ष्मी को मिला उल्लू। दिन मे सोने और रात मे जागने वाला प्राणी। देखने-दिखाने मे भी कुछ ख़ास नहीं! ऐसा जिसे देखकर बच्चे और बड़े दोनो डर जाये, ऊपर से बु्द्धि हीन! पर उसकी आँखें तेज थी, अंधेरे मे भी देख सकता था वो। दूसरों से बेहतर सुन सकता था, सरकारी ऐबेंसेडर की तरह था वो, जो पर हर मौसम मे, हर तरह की सड़कों पर चल सकता था। लक्ष्मी को खुद रात मे दौरे करना पसंद है, ऐसे मे उन्होंने उल्लू को उसकी इन्हीं ख़ासियतों की वजह से स्टेट गैरेज वापस नहीं भेजा। पर मन ही मन सरस्वती से थोड़ी अप्रसन्नता तो हुई उन्हें! ऐसे मे उन्होंने माँ सरस्वती को अलॉट किये विभागों को बजट सैंक्शन करने मे दिलचस्पी नहीं ली और अपने स्वामिभक्त वाहन के नाते रिश्तेदारों को तमाम कुर्सियाँ, ठेके और ऐजेंसिंया देकर निहाल कर दिया!
मैया लक्ष्मी मनमौजी स्वभाव की हैं! जब देने पर आती है तो देती ही चली जाती है। पात्रता संबंधी विचार भी नही करती वो। यह भी नही देखती कि उनके किसी एक भक्त की आमदनी देश की सालाना जीडीपी को भी मात कर रही है। सारे बैंक उनके भक्तों को ही लोन देते है और वापस ले जाना भूल जाते हैं! सरस्वती से अनमनी तो थी ही वो ऐसे मे बहुत से अकल के दुश्मन भी अमीर हुए। आज भी होते है और माँ सरस्वती की औलादें उनकी चाकरी करती है। सरस्वती भी थोड़ी अनमनी हुई, उन्होंने भी अमीर लोगों के साथ भेदभाव किया। उनकी औलादों को अकल से झोल बनाया और पूरी कोशिश की कि वो पैसे गिनने से ज़्यादा और कुछ ना सीख पायें!
पर चूँकि ये देवियाँ पड़ोसन होने के अलावा आपस मे रिश्तेदार भी है! ऐसे मे कभी-कभार लोक-लिहाज़ मे ये एक दूसरे के काम भी आई! उन्होंने बहुत से मामलों मे अपनी दुश्मनी मे ढील भी दी! पेटेंट व्यवस्था के चलते बहुत से पढ़ने-लिखने वाले भी अमीर हुए और बहुत ये अमीर आदमियों ने भी कभी खुद कभी किसी और की लिखी किताबें अपने नाम छपवाकर साहित्य के अलावा संस्कृति, विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र मे नाम कमाया पर इन सभी को जो नाम-दाम मिला उसमे किसी एक देवी का क्रेडिट ज़्यादा था और दूसरी देवी हाथ बँटाने भर के लिये साथ बनी रही!!
पर अपवाद स्वरूप ऐसा भी हुआ जब धरती पर पैदा हुये कुछ क़िस्मत वाले इंसान दोनो को बहुत ज़्यादा ही पसंद आ गये। दोनो एक साथ लट्टू हुई उन पर, माँ और मौसी दोनों के लाड़ले ऐसे बंदे झोल ठीकेदार बने, सचिन टिचकुले के माफिक ठीकेदारी करते हुए, झुठ्ठो का कुछ से कुछ लिखने मे सफल रहे वो और एक ऐसे ठीकेदार को तो आप जानते ही हैं!!
अमिताभ अमित – mango people
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)