कोलकाता। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) सदस्य सुभाषिनी अली ने कोलकाता में एक साहित्यिक आयोजन में कहा कि धर्मनिरपेक्षता लोगों को एकजुट रखने और देश को आगे बढ़ने के लिए काफी आवश्यक है। अली कार्यक्रम के दौरान 1947 में पैदा हुए लोग सत्र की शुरुआत कर रही थीं। आईएनए कमांडर लक्ष्मी स्वामीनाथन की पुत्री अली के साथ पाक-कला इतिहासकार चित्रिता बनर्जी और शिल्प कार्यकर्ता लैला तैयबजी भी सत्र में शामिल हुईं।
इन सभी का जन्म 1947 में ही हुआ जब भारत ने अपनी स्वतंत्रता हासिल की। टाटा स्टील कोलकाता साहित्योत्सव में बुधवार को एक सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने देश को समृद्ध बनाने के लिए धार्मिक एवं जाति-आधारित मतभेदों के बावजूद लोगों के सहयोग और सह-अस्तित्व की आवश्यकता पर बल दिया। बनर्जी ने कहा, भारतीय समाज में परस्पर विरोधी ताकतें रहती हैं लेकिन देश इसके बाद भी ऊपर उठ सकता है।
बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान अशांत दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि यह देखना सुखद था कि सभी फैसलों और विचारों को अलग रखते हुए लोग जरूरतमंदों की मदद कर रहे थे। उन्होंने कहा, तथ्य यह है कि युवा धर्मांध बन रहे हैं, अपने विश्वासों पर दृढ़ होते जा रहे हैं… विशेष रूप से हम जैसे लोगों के लिए जो आशावादी और आदर्शवादी माहौल में पले-बढ़े हैं।
लेकिन मेरा मानना है कि ये सब चीजें पूर्ववत हो जाएंगी और कुछ समय बाद चीजें बेहतर होंगी। अली ने ऐसे देश के निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया जहां कोई असमानता न हो। उन्होंने कहा, हम में से कई लोग देश की स्थिति को लेकर चिंतित हैं। लेकिन मुद्दा यह है कि हम चीजों को बेहतर करने के लिए क्या कर रहे हैं?