विनय सिंह, नई दिल्ली । ‘संविधान’ शब्द की उत्पत्ति : ‘संविधान’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के दो शब्दों ‘सम’ तथा ‘विधान’ (सम+ विधान) से हुई है। सम का अर्थ है – एकसमान, बराबर जबकि विधान का अर्थ है – नियम, कानून अर्थात ऐसे नियम और कानून जो नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं उसे संविधान कहते हैं। समान शिक्षा, समान चिकित्सा, समान न्याय, समान नागरिक संहिता और सबको समान अवसर ही हमारे संविधान की मूल भावना है।
संविधान से आशय : संविधान उन नियमों के समूह या संग्रह को कहा जाता है जिनके अनुसार किसी देश की सरकार का संगठन होता है। यह देश का सर्वोच्च कानून होता है। सरल शब्दों में संविधान किसी राज्य की शासन प्रणाली को विरेचित करने वाला कानून होता है। यह राष्ट्र का सबसे महत्वपूर्ण अभिलेख होता है। सरकार के गठन और उसकी शक्तियों के बारे में संविधान एक लिखित दस्तावेज है।
संविधान क्या करता है : संविधान उन आदर्शों को सूत्रबद्ध करता है जिससे हम अपने देश को अपनी इच्छा और अपने सपनों के अनुसार चला सकें। नागरिकों के मौलिक अधिकारों की भी संविधान रक्षा करता है। संविधान का कार्य यह स्पष्ट करना है कि समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी। संविधान यह भी बताता है कि सरकार कैसे निर्मित होगी, सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किए जाने वाले कानूनों की सीमा भी संविधान ही तय करता है।
संविधान किसी भी देश का मौलिक कानून है। जो सरकार के विभिन्न अंगों की रूपरेखा और मुख्य कार्य का निर्धारण करता है। देश के बाकी सभी कानून और रीति रिवाजों को वैध होने के लिए इसका पालन करना होता है।
सबसे पहले संविधान कहाँ बना : विश्व का सबसे पहला संविधान यूनान में बना। आधुनिक काल में अमेरिका का संविधान पहला लिखित संविधान हैं।
भारतीय संविधान निर्माण का इतिहास : द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई 1945 में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बनी। भारत की स्वतंत्रता के प्रश्न का हल निकालने के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने कैबिनेट के तीन मंत्रियों लारेंस, क्रिप्स और एलेग्जेंडर को भारत भेजा। मंत्रियों के इस दल को ‘कैबिनेट मिशन’ के नाम से जाना जाता है। ब्रिटेन की नई सरकार की भारत संबंधी नीति के अनुसार एक संविधान निर्माण करने वाली समिति बनाने का निर्णय किया और इस तरह भारतीय संविधान की रचना के लिए ‘संविधान सभा’ बनाई गई।
संविधान सभा के सदस्य : संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्य की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद, भीमराव अंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि सभा के प्रमुख सदस्य थे। सच्चिदानंद सिन्हा इस सभा के प्रथम सभापति थे। किंतु बाद में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सभापति निर्वाचित किया गया। इसके उपाध्यक्ष हरेंद्र कुमार मुखर्जी और वी.टी. कृष्णमाचारी थे। बी.एन. राव संवैधानिक सलाहकार थे। भीमराव अंबेडकर को मसौदा समिति का अध्यक्ष चुना गया। अनुसूचित वर्गों के 30 से ज्यादा सदस्य इस सभा में शामिल थे।
इस सभा ने अपना कार्य 1 दिसंबर 1946 से आरंभ कर दिया था। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन हाल में हुई थी। संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में कुल 114 दिन बैठकें की। इनकी बैठक में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतंत्रता थीं। 15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद हो जाने के बाद यह संविधान सभा पूर्णतया प्रभुता संपन्न हो गई।
संविधान सभा की अंतिम बैठक : 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा की अंतिम बैठक हुई और जोर से तथा लंबे समय तक जयकारों और मेजों की थपकी के साथ संविधान को अंगीकृत होने की बधाई दी गई। इस के बाद एक अनुभवी स्वतंत्रता सेनानी पूर्णिमा बनर्जी द्वारा राष्ट्रगान – ‘जन गण मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता’ के गायन के साथ संविधान सभा का ऐतिहासिक सत्र समाप्त हुआ। बाद में संविधान के अनुसार 24 जनवरी, 1950 को एक विशेष सत्र में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारतीय गणराज्य के पहले राष्ट्रपति के रूप में चुना गया।
संविधान सभा में महिलाओं की भागीदारी : संविधान सभा की पहली बैठक में 207 सदस्यों ने भाग लिया था। इसमें कुल 15 महिलाओं ने भाग लिया तथा 8 महिलाओं ने संविधान पर हस्ताक्षर किए।
भारतीय संविधान की मूल भावना : संविधान सभा के सदस्य जब महात्मा गांधी से यह सलाह लेने गए कि संविधान की मूल भावना क्या होनी चाहिए? तब उन्होंने कहा था कि- “मैं तुम्हें एक मंत्र देता हूं। तुम्हारा हर कार्य, हर विधान समाज के सबसे निचले स्तर पर बैठे व्यक्ति को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।”
भारत का मूल संविधान : भारत के मूल संविधान में कुल 395 अनुच्छेद, 22 भाग तथा 8 अनुसूचियां थी। संविधान की दो कॉपी हाथ से लिखी गई हैं जो हिंदी तथा अंग्रेजी में हैं । दोनों हस्तलिखित प्रतियों पर 24 जनवरी 1950 को तब के 308 सदस्यों के सामने हस्ताक्षर किए गए। संविधान की मूल हस्तलिखित प्रतियां संसद भवन के पुस्तकालय में हीलियम के केस में संरक्षित हैं। भारत का संविधान दुनिया के सबसे लंबे हस्तलिखित दस्तावेजों में से एक है। अंग्रेजी संस्करण में कुल 1,17,369 शब्द हैं। संविधान की मूल पांडुलिपि में 251 पन्ने हैं जिसका वजन 3.75 किलोग्राम है। संविधान बनाने में उस समय कुल 63,96,729/- रुपए खर्च हुए थे ।
संविधान की प्रमुख विशेषता : भारत का संविधान लिखित तथा निर्मित है। इसमें संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न राज्य और गणतंत्रात्मक शासन प्रणाली तथा संघात्मक शासन की स्थापना की गई है। भारतीय संविधान संघात्मक होते हुए भी एकात्मक है। भारत के हर नागरिक को मौलिक अधिकार देना भारतीय संविधान की सबसे बड़ी विशेषता है। मौलिक अधिकार वह अधिकार है जो हर नागरिक को हासिल होता है और इनका हनन नहीं किया जा सकता है। अगर सरकार के किसी कदम से किसी नागरिक के मौलिक अधिकार का हनन होता है तो उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जा सकता है।
संविधान की प्रस्तावना : प्रस्तावना को भारतीय संविधान का ‘परिचय पत्र’ कहा जाता है। संविधान की प्रस्तावना भारत के सभी नागरिकों के लिए न्याय तथा समानता को सुरक्षित करती है और लोगों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देती है। संविधान की प्रस्तावना भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करती है। इसका उद्देश्य सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता सुनिश्चित करना है और राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए बंधुत्व को बढ़ावा देना है। प्रारंभ में समाजवादी, पंथनिरपेक्ष शब्द भारतीय संविधान की प्रस्तावना का हिस्सा नहीं था। आपातकाल के दौरान 1976 के 42 वें संशोधन अधिनियम द्वारा यह शब्द जोड़े गए। प्रस्तावना में अब तक का यह एकमात्र संशोधन है।
उधार का संविधान : भारतीय संविधान की मूल संरचना भारत सरकार अधिनियम-1935 पर आधारित है। भारतीय संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। यह 10 देशों के कानूनी प्रावधानों से मिलकर बना हुआ है। इसलिए कुछ लोग इसे ‘उधार का संविधान’ भी कहते हैं।
संविधान दिवस और गणतंत्र दिवस : संविधान सभा द्वारा भारतीय संविधान को 26 नवंबर 1949 को अंगीकार किया गया था। भारत के नागरिकों को संविधान के प्रति जागरूक करने और संवैधानिक मूल्यों को याद दिलाने के लिए हर साल 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस’ मनाया जाता है। 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया था। इसीलिए उस दिन को देश में ‘गणतंत्र दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है।
संविधान का सार : भारतीय संविधान के अनुसार भारत एक संसदीय प्रणाली की सरकार वाला स्वतंत्र प्रभुसत्तासंपन्न, समाजवादी, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यहां की सरकार, सेना, प्रशासनिक और न्यायिक तंत्र भारत गणराज्य के संविधान के अनुसार शासित होते हैं। केंद्रीय कार्यपालिका के संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति हैं। भारत के संविधान की धारा -79 के अनुसार केंद्रीय संसद की परिषद में राष्ट्रपति तथा दो सदन हैं जिन्हें राज्यों की परिषद यानी राज्यसभा तथा लोगों का सदन यानी लोकसभा के नाम से जाना जाता है।
भारतीय संविधान का प्रकार : भारत का संविधान न तो कठोर है और न ही लचीला। कठोर संविधान वह होता है जिसमें संविधान संशोधन की प्रक्रिया या प्रणाली जटिल होती है उदाहरण- अमेरिकी संविधान। लचीला संविधान वह होता है जिसमें संविधान संशोधन की प्रक्रिया सरल होती है। उदाहरण- इंग्लैंड का संविधान।
संविधान संशोधन की प्रक्रिया : संविधान मूल रूप से दो प्रकार के होते हैं – लिखित संविधान और अलिखित संविधान। लिखित संविधान में निरंतर संशोधन होते रहते हैं जिससे संविधान का आकार और भी विस्तृत होता जाता है। संविधान में अब तक 105 संशोधन हो चुके हैं। भारतीय संविधान में संशोधन करने के लिए तीन प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं –
1.संसद के प्रत्येक सदन में साधारण बहुमत द्वारा
2. संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत द्वारा
3. संघ तथा राज्यों की सहमति से
संविधान में चित्रकारी : जब संविधान तैयार हुआ तो उसमें ऊपर- नीचे बहुत जगह रिक्त (सफेद) छूटी हुई थी। ऐसे में इस पर विचार हुआ कि आखिर किस तरह इस खाली जगह के जरिए भारत की 5000 साल पुरानी संस्कृत को प्रदर्शित किया जाए। तब खुद जवाहरलाल नेहरू ने ही इस काम के लिए नंदलाल बोस को शांति निकेतन, पश्चिम बंगाल जाकर आमंत्रित किया। इसके बाद सदी के महान चित्रकार ने अपने कुछ शिष्यों के साथ मिलकर इन हस्तलिखित पन्नों में प्राण भरने का काम किया।
इन चित्रों की शुरुआत भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ के शेर से होती है। अगले भाग में भारत की प्रस्तावना लिखी है। जिसे सुनहरे बॉर्डर से घेरा गया है। भारतीय संविधान में कुल 22 भाग हैं और हर भाग की शुरुआत में 8×13 इंच के चित्र बनाए गए हैं। इसमें मोहनजोदड़ो, वैदिक काल, रामायण, महाभारत, बुद्ध के उपदेश, महावीर के जीवन, मौर्य, गुप्त और मुगल काल के अलावा गांधी, सुभाष, हिमालय से लेकर सागर आदि के चित्र सुंदर बन पड़े हैं।
वास्तव में यह चित्र भारतीय इतिहास की विकास यात्रा हैं। संविधान के जिस पृष्ठ पर मूल अधिकारों का जिक्र है उस पर भगवान श्री राम की लंका विजय के बाद वापस अयोध्या लौटने की तस्वीर है। इन 22 चित्रों को बनाने में 4 साल लगे। इस काम के लिए नंदलाल बोस को उस समय ₹21000/- मिले थे। समिति से जुड़े सभी लोगों ने इन चित्रों को संविधान के रिक्त स्थान पर शामिल करने पर सहमति जताते हुए उस पर हस्ताक्षर किए थे।
संविधान किसने लिखा : संविधान की मूल प्रति टाइपिंग या प्रिंट में उपलब्ध नहीं है। इस की मूल प्रति हिंदी और अंग्रेजी में हाथ से लिखी गई है। इसे प्रेम बिहारी रायजादा ने लिखा है। रायजादा ने पेन होल्डर निब से संविधान के हर पन्ने को बहुत ही खूबसूरत इटैलिक अक्षर में लिखा है। सुलेखन यानी कैलीग्राफी प्रेम बिहारी का खानदानी शौक था। संविधान को बनाने में जहां 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे वहीं इससे हाथों से लिखने में 6 महीने का समय लगा था। लेकिन इस काम से जुड़ा एक रोचक किस्सा है। जब प्रेम बिहारी रायजादा ने सरकार ने इस काम को पूरा करने के लिए मेहनताना के बारे में पूछा तो उनका जवाब बड़ा गंभीर था। उन्होंने कहा मुझे एक भी पैसा नहीं चाहिए न ही कोई महंगा उपहार चाहिए। लेकिन उन्होंने संविधान के हर पृष्ठ पर अपना नाम और अंतिम पृष्ठ पर अपने दादाजी का नाम लिखने की शर्त रख दी, जिसे सरकार ने सहर्ष मान लिया।
संविधान निर्माण के दौरान मत भिन्नता : संविधान निर्माण का कार्य इतना आसान नहीं रहा। अनेक मुद्दों पर कई सदस्यों के विचार एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न थे। उदाहरण के लिए-भारत मे ताज़ा विलय हुए नए राज्य जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के अनुरोध पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने हेतु ड्राफ्ट बनाने के लिए उन्हें भीमराव अंबेडकर के पास भेजा। किंतु अम्बेडकर ने शेख अब्दुल्ला को यह कहते हुए स्पष्ट मना कर दिया कि- “आप सारी सुविधाएं तो भारत से चाहते हैं लेकिन हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं? ऐसा कैसे हो सकता है?”
तब शेख अब्दुल्ला ने पुनः पंडित जवाहरलाल नेहरू से निवेदन किया और नेहरू जी के कहने पर प्रारूप समिति के सदस्य गोपाल स्वामी आयंगर ने धारा-370 का ड्राफ्ट तैयार किया जो कि बाद में भारत के लिए नासूर साबित हुआ। हालांकि वर्तमान सरकार ने इस अनुच्छेद को रद्द कर दिया गया है। इसी तरह सरदार वल्लभभाई पटेल ने समाज के सभी वर्गों को बराबर अधिकार देने के लिए जातिगत आरक्षण का विरोध किया था। किंतु भीमराव अंबेडकर के विशेष आग्रह पर संविधान में जातिगत आरक्षण केवल 10 वर्ष के लिए लागू किया था और इसकी हर 10 वर्ष बाद समीक्षा की बात लिखी गई थी। यह स्थायी बिल्कुल भी नहीं था।
भारतीय संविधान – सफल या असफल : भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि संविधान कितना भी अच्छा हो, अगर उसका पालन करने वाले बुरे होंगे तो संविधान बुरा ही साबित होगा और अगर संविधान बुरा भी लिखा गया हो लेकिन इसका पालन करने वाले लोग अच्छे होंगे तो संविधान देश और समाज के लिये अच्छा साबित होगा। विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत, संविधान के अनुसार सफलता पूर्वक चल रहा है। समय की कसौटी पर संविधान अब तक पूर्णतया खरा उतरा है। सन 1975 के आपातकाल के अतिरिक्त संविधान पर अभी तक कोई बड़ा संकट नहीं आया है। हालांकि समान नागरिक संहिता, जातिगत आरक्षण, जनसंख्या नियंत्रण कानून आदि विषयों पर अभी भी आम राय नहीं बन पायी है।
निष्कर्ष :- संविधान किसी भी देश का सबसे पवित्र और पूज्य ग्रंथ होता है। कतिपय कारणों से हम अपने संविधान को आम जनमानस की ‘गीता’ नहीं बना पाए हैं।
विनय सिंह (अनुवाद अधिकारी)