विनय सिंह बैस । 90 के दशक में मैथ के साथ साइंस साइड लेकर 12 वीं करने वाले हम अधेड़ों से गणित के अत्याचार की कहानी सुनिए। तब इंटरमीडिएट की परीक्षा में 11वीं और 12 दोनों का सिलेबस शामिल रहता था। गणित की मोटी-मोटी छह किताबें हुआ करती थी। घरवालों की तमाम डांट फटकार के बाद दिन भर में हम जो भी घंटे-दो घंटे पढ़ते थे, उस पढ़ाई का 60 प्रतिशत समय सिर्फ और सिर्फ मैथ को देना पड़ता था। बाकी का 15-15 प्रतिशत समय फिजिक्सऔर केमिस्ट्री को, 10 प्रतिशत समय अंग्रेजी को और हिंदी की किताब के जुड़े हुए पन्ने तो परीक्षा के समय ही खुलते थे।
उस पर भी मैथ की बेवफ़ाई देखिए कि कैलकुलस हल करो तो ट्रिग्नोमेट्री भूल जाती थी। स्टैटिक्स पढ़ो तो डायनामिक्स दिमाग से साफ हो जाती थी। अच्छा सोच कर बताइए कि दिमाग का दही कर देनी वाली इस मुई मैथ का 95 प्रतिशत लोगों के जीवन मे कभी कोई प्रायोगिक उपयोग हुआ है?? अगर इतना हमने दिनकर या महादेवी वर्मा को पढ़ लिया होता तो वीर रस के कवि होते या विरह गीत की तुकबंदी तो कर ही लेते!!
अपने निजी अनुभवों और भुक्त यातना के आधार पर मै इस नौजवान का कायल हुआ। इसे सत्य का ज्ञान बाली उमर में ही हो गया है। देखो गणित है कल्पना और प्रेमिका है हक़ीक़त। वास्तविकता में जीता है यह प्रेमी।
मैं मैथ तो क्या किसी भी विषय का शिक्षक नहीं बन पाया लेकिन जैसे गणित में मान लेते हैं, वैसे ही मान लो, मैं गणित का शिक्षक होता तो इस युवा नौजवान से कहता कि सही समय है गणित से भाग लो। जो रात भर दिये की रोशनी में मैथ के क्वेश्चन हल करके सुबह धुंआ थूकते थे, उनमें से कितनों ने तीर मार दिया??
अतः, हे युवा नौजवान!!! तुम प्रेम करो, सिर्फ प्रेम। जिसने यह ढाई आखर पढ़ लिए, उसको पंडित होने से कोई नहीं रोक सकता।
बाकी सब माया है!!!
(विनय सिंह बैस)
मैथ से पीड़ित पूर्व छात्र