डीपी सिंह की रचनाएं

।।परिवर्तन।।

(1)

पहले तो सरकारें बनती बिगड़ती थीं
प्याज वाले आँसुओं के भाव के बहाव से

पन्द्रह मिनट और पन्द्रह करोड़ वाली
भाई-चारे वाली मीठी धमकी के ताव से

चुनावी थे गणितज्ञ जात-पात विशेषज्ञ
चैनलों पॅ करते थे चर्चा बड़े चाव से

ध्वस्त हुए आकलन, बदलेगा ये चलन
परिणाम निकला है यूपी के चुनाव से

(2)

जो वसीयतों में सत्ता लिखवा के लाये ऐसे
कितने ही सारे खानदान ध्वस्त हो गये

जातिवादी संविधान का वितान तान कर
सोने वालों के सभी मचान ध्वस्त हो गये

सत्ता के शिखर पर आ गया जो एक सन्त
गुण्डे बदमाशों के मकान ध्वस्त हो गये

भगवा के पीछे हुई जनता दीवानी ऐसी
बिकनी सरीखे परिधान ध्वस्त हो गये

–डीपी सिंह

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

eight − three =