कोलकाता। युद्धग्रस्त यूक्रेन के चिकित्सा महाविद्यालयों में अध्ययन करने वाले पश्चिम बंगाल के छात्रों ने बताया कि तहखानों में उनके पास भोजन और पानी की कमी थी। उन्होंने अपनी आपबीती बयां करते हुए कहा कि सीमा चौकियों तक पहुंचने के लिए उनलोगों ने अपनी व्यवस्था खुद की और सकुशल स्वदेश लौटने की उम्मीद में वे शून्य से नीचे के तापमान में भी पैदल चले। बंगाल के मालदा जिले के कालियाचक के रहने वाले एक छात्र नूर हसन ने याद किया कि कैसे उनलोगों को भारत के 50 अन्य छात्रों के साथ एक मार्च को कीव में अपने संस्थान से एक बस किराए पर लेनी पड़ी थी और यूक्रेन की सेना द्वारा कई जांचों के बाद वे रोमानिया की सीमा तक पहुंच सके थे।
हसन ने बताया, ‘‘हमने तीन दिन अपने मेडिकल कॉलेज के एक बंकर में घंटों बिताए, जबकि हमारे पास न खाने को कुछ था, न पीने का पानी। इतना ही नहीं, लगातार बमबारी की आवाज़ें सुनाई दे रही थी। चूंकि समय बीतता जा रहा था, इसलिए हमने अपने दम पर बसें मंगाई और यूक्रेन-रोमानिया सीमा के लिए रवाना हो गए। यूक्रेन की सेना द्वारा वहां हमें घंटों रोके रखा गया।
सीमा पार करने के बाद, भारतीय दूतावास ने, रोमानियाई सरकार की मदद से, उनकी नई दिल्ली की वापसी यात्रा की सुविधा प्रदान की। उत्तर बंगाल के अलीपुरद्वार के एक अन्य छात्र गौरव बनिक ने कहा, ‘‘गुरुवार को अपने मूल स्थान पर वापस आने के बाद मैं बहुत राहत महसूस कर रहा हूं, लेकिन वहां फंसे अन्य लोगों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हूं।’’
खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के पांचवें वर्ष के छात्र बनिक ने कहा कि उन्हें बस में चढ़ने से पहले अन्य लोगों के साथ पूरे दिन इंतजार करना पड़ा था। सभी यात्रा दस्तावेज होने के बावजूद, बलों की ओर से दूसरी तरफ जाने की अनुमति देने से पहले यूक्रेन-पोलैंड सीमा पर यात्रा में कई घंटे की देरी हुई। उन्होंने कहा, ‘‘यह एक भयानक दृश्य था– बुजुर्ग और महिलाओं सहित हजारों यूक्रेनी परिवार, विदेशी नागरिकों के साथ सीमा पार करने के लिए हाथ-पांव मार रहे थे।
यूक्रेन के सुरक्षा बल कतार में लगे लोगों के बीच अनुशासन लाने के लिए कई बार हवा में फायरिंग कर रहे थे। हमने विमान में सवार होने के बाद राहत की सांस ली।’’इवान फ्रेंको नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लीव की छात्रा तियाशा बिस्वास ने कहा कि वह और उसके पांच दोस्त संस्थान से निकल गए थे, लेकिन रोमानिया की सीमा से 16 किमी दूर वाहन से उतरने के लिए उन्हें मजबूर किया गया। शून्य से नीचे के तापमान में 11 घंटे में दूरी तय करने के बाद, उन्हें दूसरी तरफ जाने से पहले घंटों इंतजार करना पड़ा।
तियाशा ने कहा, ‘‘मुझे बारासात स्थित अपने घर पर वापस आकर खुशी हुई लेकिन थकान महसूस हो रही है। पता नहीं भविष्य में क्या होगा । उज़होरोड नेशनल यूनिवर्सिटी के तीसरे सेमेस्टर के छात्र हमज़ा कबीर ने कहा कि हंगरी की सीमा में प्रवेश करने से पहले उन्हें न तो भोजन मिला और न शौच जाने की सुविधा। कबीर ने कहा कि रूस के साथ युद्ध शुरू होते ही सब कुछ डर, विनाश और अविश्वास में बदल गया। हालांकि, सभी छात्रों ने स्थानीय लोगों की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्हें सीमा चौकियों के रास्ते में भोजन, फलों का रस और पानी मुफ्त दिया गया।