।।पुस्तक समीक्षा।।
राजीव कुमार झा
मेरी अनुभूति (काव्य संग्रह)
कवयित्री : रश्मिलता मिश्रा
प्रकाशक : वर्तमान अंकुर
बी – 92, सेक्टर – 6 नोएडा, गौतमबुद्ध नगर, (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल : 8800441944
मूल्य : 150/- रुपये
जीवन की वर्तमान विसंगतियों से सार्थक संवाद और कविता में उसका जीवंत चित्रण!
“जिम्मेदारियों के बो़झ तले,
दबी कुचली जिंदगी
होले होले चली जा रही थी
हमने उसे रोका टोका
कहा – थोड़ा ठहर जाते हैं
आओ नयी कविता बनाते हैं
वह मुड़ी मुस्कुराई
तिरछी नजर! हमारी ओर घुमाई
मानो पूछ रही हो हमसे
तुम्हें कविता की बड़ी जल्दी
याद आयी!
(नई कविता बनाते हैं)
रश्मिलता मिश्रा के प्रस्तुत काव्य संग्रह ‘मेरी अनुभूति’ में संग्रहित तमाम कविताओं में वर्तमान परिवेश के यथार्थ से उपजी संवेदनाओं का समावेश है और इनमें कवयित्री के अंतर्मन की हलचल उसकी जीवन चेतना के कई आयामों को उद्घाटित करती है! कविता के जीवंत फलक पर समाज और संस्कृति के कई रंगों, अक्सों को उकेरती इन कविताओं में मन का स्पंदन समाया है और यहां जीवन की तमाम मौजूद बातों के बीच उन चीज़ों को भी सजगता से देखने-जानने की जद्दोजहद मौजूद है, जिनको लेकर अक्सर सबका मनप्राण विचलन से भर जाता है! इस रूप में कविता प्रायः मौजूदा समय और समाज की विसंगतियों से संवाद करती नजर आती है और इसमें वैचारिक मंथन का भी समावेश होता दिखाई देता है!
समकालीन कविता की इस भावभूमि पर रश्मिलता मिश्रा की कविताएं सार्थक हस्तक्षेप की तरह प्रतीत होती हैं और सबको संघर्ष की प्रेरणा देती हैं! अनुभूति के सहज रंगों से जिंदगी के चित्रों में प्राणतत्व का संचार कविता की रचना का मूलभूत तत्व कहा जाता है और इस संग्रह की कविताएं अपनी विशिष्टता में इस तथ्य को रेखांकित करती हैं और इनमें बेहतर जीवन की तलाश में भावानुकूल प्रसंगों की प्रधानता है इसलिए काव्य कला के प्रचलित मुहावरों से दूर कविता की सरल भाषा में हृदय के सहज उद्गारों को समेटती इन कविताओं को पढ़ते हुए गहरी आत्मीयता का बोध होता है ! मौजूदा दौर की विडंबनाओं और समाज में व्याप्त अंतर्विरोधों से इस संग्रह की कविताएं खास तौर पर हमें वाकिफ कराती हैं!
“स्वार्थ की पोटली में
अपनी आकांक्षाएं समेटे
समाज की धरोहरों का ठेकेदार बना बैठा है
जिसने बदल दी प्यार की परिभाषा,
परिवार की परिभाषा
वही देश एकता की ढाल लिए बैठा है
कथनी और करनी के बीच की
रेखा लांघ
घोषणाओं के पुलिंदों के
अंबार लिए बैठा है
जिस जाति, धर्म, वर्ग, नस्लभेद से
बचने का दम भरते थकता नहीं
उन्हीं भेदों के विस्तार हेतु
औजार लिए बैठा है।”
(मानवता)
कविता में व्यंग्य का भाव : लाक्षणिक शैली में जीवन की अनेकानेक परिस्थितियों को लेकर मनुष्य के मन के क्षोभ को प्रकट करता है और इस अर्थ में रश्मिलता मिश्रा की कविताओं में वर्तमान जीवन के कई प्रसंगों को लेकर उद्वेलन का भाव सबको चिंतन की ओर उन्मुख करता है! यहां भाव विचार के धरातल पर कविता में समाज में चतुर्दिक पसरते झूठ, आडंबर, प्रदर्शन और भटकाव से जुड़ी कई चिंतनपरक बातों को विमर्श की शैली में उठाया गया है और इनमें समाज – संस्कृति से जुड़े विचारणीय मुद्दों के अलावा अन्य विषयों का भी समावेश है! कवयित्री इन सबके बीच अपनी काव्ययात्रा को तय करती प्रतीत होती है और मौजूदा परिवेश का यथार्थ उसकी कविता के फलक पर चिंतन को जन्म देता है!
इस अर्थ में इन कविताओं में सृजनशीलता के गुण का समावेश है और कवयित्री समाज में एक बेहतर समय के इंतजार में अपने मन की बातों को यहां कविता में रचती गढ़ती निरंतर सार्थक शब्दों से भावों का परिष्कार करती दिखाई देती है और रचना प्रक्रिया के धरातल पर कविता लोक उद्गार का रूप लेकर आदमी के जीवन में व्याप्त उसके नानाविध सुख-दुखों के साथ देश, समाज और राष्ट्र के संकट से जुड़े सामयिक मुद्दों को भी अपनी अभिव्यक्ति में समेटकर कवयित्री के प्रतिपाद्य को उदात्त धरातल पर प्रतिष्ठित करती है!
“ठहरा हुआ पानी
क्या जाने लहर क्या है
वो पूछता है लहरों के
आने का मजा क्या है
हैं समंदर में मोती
और मोतियों में सीपी
पर मोती क्या जाने
उसकी कदर क्या है
मांझी तो देता है पार
नैय्या को लगा
पर तूफान गर डूबो दे
तो उसकी खता क्या है
किनारे पर खड़े
चाह मंजिलों की है
जो डूबते हैं गहरे
मिला उनको सिला क्या?
ठहरा हुआ पानी
क्या जाने लहर क्या?”
(ठहरा हुआ पानी)
“आज के मशीनी युग में
जहां समयाभाव है
भ्रष्टाचार, आतंकवाद चारों ओर
तनाव है
ऐसे में हमारे हास्य कवियों का हम पर आभार है
जो उदास चेहरों हेतु खोलते
मुस्कानों के द्वार हैं।”
कवयित्री ने इस कविता संकलन में एक कविता अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में भी लिखी है! यह कविता देश और राष्ट्र के प्रति प्रति यहां के समस्त नागरिकों के कर्तव्यों को लक्ष्य करके लिखी गयी है और इसमें प्रेम और अपनत्व का भाव सबको मानवीयता के धागे में आबद्ध करता है!
“इन्हीं बंधनों का बोझ
अटल जी के कंधों पर भी था,
था वह अटल निर्मल
मानवीयता से ओतप्रोत
पर कुछ नुमाइशों का बोझ
उनके पद पर भी था
फिर भी उन्होंने दल संप्रदाय से
ऊपर रखा स्वयं को
तभी तो आज भारत सारा
करता नमन अटल को ”
कवि अटल (अटल बिहारी वाजपेयी)
कविता में देशकाल की परिस्थितियों का चित्रण और समाज में भ्रष्टाचार, बेईमानी, स्वार्थ, संकीर्णता का फैलता जंजाल इन सबके बीच राष्ट्रहित को दरकिनार करके समाज में लोगों के तमाम तरह के अनैतिक कारोबार और इनका चित्रण कविता की वैचारिक भावभूमि में यहां जीवन की नैतिक चेतना को गहराई से प्रतिष्ठित करता है! अपने सामाजिक सरोकारों में कवयित्री सार्थक संवाद से कविता में जीवन तत्वों की विवेचना में संलग्न प्रतीत होती है!
रश्मिलता मिश्रा की कविताएं विचार विमर्श के धरातल पर समसामयिक मुद्दों से जुड़े प्रसंगों के भीतर से कविता में विचार तत्वों का प्रतिपादन करती हैं और इस शैली में कवयित्री का आकुल व्याकुल मन मानवीय संस्पर्श से अक्सर व्यापक समाज की पीड़ा को आत्मसात करता अभिव्यक्ति के दायरे में अनगिनत सवालों से निरंतर गुजरता सूक्ष्मता से समय की तहकीकात करता और किसी जवाब की अपेक्षा के साथ सामने आता है!
कवयित्री ने इस संग्रह की ज़्यादातर कविताओं को बेहद सरल भाषा, शैली और शिल्प में रचा है और इनमें अनुभूतियों की प्रधानता और संवेदनाओं की सघनता बहुत साफ तौर पर प्रवाहित देखी जा सकती है! रश्मिलता मिश्रा की कविताओं के मतगुण वैशिष्ट्य की इस मीमांसा में भाव विचार की भूमि पर नैसर्गिक वृत्तियों के साथ कवयित्री की जीवन चेतना का विवेचन जरूरी है!
“निर्दोषों की चिताओं पर
स्वमहलों की आस है
ऐसी घृणित पटटी
कहां पढायी जाती है
मानव बम की फैक्ट्री
जहां लगाई जाती है
उत्पाद बढ़ा विधवंसक
सामग्रियों का, शर्मसार
हुई मानवता
महज अंतरराष्ट्रीय एकता का
स्वांग रचने से क्या होगा?
सच का सामना आज नहीं
तो कल करना होगा…”
(पुलवामा)
देशप्रेम का भाव रश्मिलता मिश्रा की कविताओं की प्रमुख विशेषता है! इस संग्रह की कविताओं में देश की वर्तमान परिस्थितियों को लेकर गहरी पीड़ा की अभिव्यक्ति हुई है और इसके उत्थान, विकास और सुख समृद्धि की कामना के साथ कवयित्री इन कविताओं में देश की खुशहाली में सारे लोगों के जुटने का आह्वाकन करती है! देश की उन्नति और यहां आने वाले सकारात्मक बदलावों के प्रति भी इन कविताओं में खुशी के भाव प्रकट हुए हैं!
“ढलती दोपहरी उसे बहुत भाती है
वह सूरज चढ़ते ही
मजदूरी को जाती है
सूरज निकलने से पहले
उठना उसका काम है
बीमार पति, छोटा बच्चा
और घर की मुश्किलें तमाम हैं”
(ढलती दोपहरी)
प्रस्तुत काव्य संग्रह की कुछ कविताएं समाज में महिलाओं की बदलती जिंदगी का भी बयान करती हैं और नारी मन की पीड़ा और उसका आत्म विश्वास इन सबका समावेश है!
“न किसी की मोहताज,
न दुखिया बेचारी
सशक्त हैं उसके कदम,
उड़ती नयी उड़ान है
घर परिवार का वह सबल,
वह देश की शान है
पुरुषों के कंधे से कंधा
मिलाया है
ममता का आंचल
फिर भी लहराया है
चुनौतियों से खेलने का
साहस बटोर चुकी है
भय आक्रांति पीछे छोड़ चुकी है”
(जब तक कम आंका तब तक कम आंका)
रश्मिलता मिश्रा की कविताओं में संवेदना और अनुभूति का संसार कवयित्री के मन के स्पंदन में सुंदर जीवन की हलचल को समेटे है और इसमें विद्यादायिनी सरस्वती से जीवन के कल्याण की कामना के साथ मातृऋण का स्मरण और आज के दौर में जीवन की आपाधापी के साथ आदमी की बेचैनी उसकी विडंबनाएं, सियासी जंग और चुनावी बुखार, उजड़ता पर्यावरण और विकास के नारों के बीच जनता के जीवन की कायम रहने वाली बदहाली, खस्ताहाल सड़कों के साथ इन कविताओं में कवयित्री वर्तमान व्यवस्था के कई पहलुओं को कविता में उजागर करती दिखाई देती है!
“प्रजातंत्र के तंत्र निराले
हो गयी अद्भुत चाल
नाम रखें से से सेवक सब अपना
नेता करें कमाल,
नेता करें कमाल
कमाल भाषण में हैं राशन देते
राशन देकर दें उपदेश
भाई-भाई सारे अपने हैं
एक रखो परिवेश, एक रखो परिवेश
निभाओ भाईचारा
किन्तु वोट की खातिर
करें खुद ही भाई बंटवारा
आरक्षण की आड़ में फलता
राजनीतिक व्यापार
वोटों का लालच न छूटे
इसीलिए लाचार
प्रजातंत्र को बांट तंत्र का
रूप न दो सरकार!”
(प्रजातंत्र)
रश्मिलता मिश्रा की कविताओं में नारी मन के स्फुट भावों की मूलतः अभिव्यक्ति हुई है और इनमें कवयित्री का काव्य स्वर जीवन के यथार्थ की कई कोणों से विवेचना करता अपनीये अभिव्यक्ति में व्यापक सामाजिक – राजनीतिक चिंतन को प्रकट करता है! मौजूदा कविता संग्रह की ज़्यादातर कविताएं इस दृष्टि से पठनीय प्रतीत होती हैं!
नारी जीवनबोध के निकष पर भी इस संग्रह की कविताएं अपनी प्रामाणिकता को प्रकट करती हैं और इनमें समाज के नये-पुराने प्रसंगों का समावेश है! कवयित्री इन कविताओं में नारी जीवन की गरिमा को प्रतिष्ठित देखना चाहती है और अब समाज में छोटी-छोटी सारी बच्चियों को रोज स्कूल जाते देख उसका मन आनंद से भाव विभोर हो उठता है! इस संग्रह की एक कविता में महिलाओं के जीवन में इन दिनों पसरते यौन अपसंस्कृति के कुछ संदरभों की भी सांकेतिक अभिव्यक्ति है! इसके अलावा अपने देश की भूमि और इसकी सुंदर सीमाओं में स्थित प्रांतों की सुषमा को भी कवयित्री ने इसमें चित्रित किया है!
सौंधी महक से महके धरती
महकाये घर-बार भी
जय भारती, जय भारती
कल-कल जल उचछृंखल पर्वत
नदियां गहरी झूमें
गगनचुंबी सभी शिखाएं
आसमान को चूमे
हरियाली वन-वन को छाकर के
धरा को संवारती
जय भारती, जय भारती
दक्षिण सागर, पश्चिम सागर
मर्यादित मन मोहे
चौदह रत्न समेटे अंदर
हीरे, मोती सोहें
सागर की लहरें आ, आकर
सादर चरण पखारतीं
जय भारती, जय भारती
(जय भारती)
रश्मिलता मिश्रा की कविताएं भाव, विचार और चिंतन के धरातल पर हमारी जीवन परंपरा के सार्थक तत्वों का संधान करती हैं और इनमें मनुष्य, समाज, देश और राष्ट्र के उत्थान और कल्याण की चेतना प्रमुखता से समाहित है! हमारी काव्य परंपरा में लोक कल्याण का भाव कविता का प्रमुख उद्देश्य बताया गया है! रश्मिलता मिश्रा की कविताएं इसकी
विवेचना की तरह से देखी जा सकती हैं!