मां सरस्वती की आराधना का पर्व है बसंत पंचमी

डॉ. अखिल बंसल, जयपुर । भारतवर्ष त्योहारों का देश है यहां अनेक प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं। धार्मिक त्योहार तथा सामाजिक त्योहारों के अतिरिक्त ऋतु के त्योहारों का भी बड़ा महत्व है। हमारे देश में बसंत ऋतु को सबसे सुहाना मौसम माना गया है। बसंत ऋतु सर्दियों के मौसम के पश्चात और गर्मियों के मौसम से पहले माघ महीने की पंचमी से प्रारंभ होता है । फरवरी से मई महीने के मध्य तक यह ऋतु रहती है। इस ऋतु का आगमन विभिन्न देशों में वहां के तापमान के अनुसार अलग-अलग समय पर होता है। किसानों के लिए इस मौसम का बहुत अधिक महत्व है। खेतों में फसलें इसी मौसम में पकती हैं अतः यह कटाई का समय होता है। प्राकृतिक दृष्टि से यह मौसम रोमांचकारी होता है। पेड़ों पर नए पत्ते, फूलों से महकती हुई लदी डालियां, आसमान में छाए हुए बादल, कल-कल करती नदियां, सरसों की पीली चादर से आच्छादित खेत, टेसू के फूल, पक्षियों का कलरव सभी कुछ इस मौसम में देखने को मिलता है।

प्राकृतिक छटा तो बस देखते ही बनती है। इस ऋतु को ऋतु राज की संज्ञा दी गई है। शरद ऋतु के ठंड से शीतल हुई पृथ्वी की अग्नि ज्वाला मनुष्य के अंतःकरण की अग्नि एवं सूर्यदेव की अग्नि के संतुलन का काल बसंत पंचमी का काल कहलाता है। इस त्यौहार की उत्पत्ति आर्य काल से हुई मानी जाती है। मान्यता है कि आर्य लोग इसी दिन सरस्वती नदी को पार कर खैबर दर्रे से होकर भारत में आकर बस गये थे। आदिम सभ्यता का विकास सरस्वति नदी के किनारे हुआ।
विद्या की देवी सरस्वती का जन्मदिन होने के कारण बडे़-बडे़ पाण्डालों में सरस्वती की प्रतिमा विराजमान कर उनकी उपासना की जाती है।

सरस्वती के आगे पीले फूल व पीली मिठाई चढाई जाती है। लोग पीले वस्त्र धारणकर नृत्य करते हैं, मिठाई बांटते हैं। पीला रंग समृद्धि, प्रकाश, ऊर्जा और आशावाद का प्रतीक है। राजस्थान में इस दिन चमेली के फूलों की माला पहनने का रिवाज है। यह दिन बहुत शुभ माना जाता है अतः अनेक स्थानों पर मेले के आयोजन होते हैं। हिन्दू बच्चों को इस दिन अक्षर लिखना सिखाया जाता है। गुजरात में इस दिन पतंगों का मेला लगता है। बच्चे हों या जवान सभी अपनी छतों पर सब काम छोडकर पतंगबाजी करते हैं। कवि कालिदास का मिथक भी इस दिन से जुडा हुआ है।

डॉ. अखिल बंसल, वरिष्ठ पत्रकार

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