कुण्डलिया
दारू-मुर्गा और अब, फ्री बिजली का चाव
लोकतन्त्र तो बिक गया, मुफ़्त तन्त्र के भाव
मुफ़्त तन्त्र के भाव, कर्ज़ माफ़ी का चक्कर
जले दिलों में दाव, किश्त जो आये भरकर
एक तरफ़ उकसायँ, मजे लो रहो उधारू
माल्या का क्या दोष, कर्ज़ ले पी जो दारू
दोहा
मन – निर्णय सब आपका, वोट आपका यन्त्र।
स्थापित हो गणतन्त्र या, लाना है गन-तन्त्र।।
–डीपी सिंह