डीपी सिंह की रचनाएं

हमारे धैर्य को ही वो हमारा डर समझ बैठे
ज़रा दो बाल क्या निकले उसे वो पर समझ बैठे
बढ़ाते ताप, है ये नामुरादों का दीवानापन
सभी चूहे व दीमक घर को अपना घर समझ बैठे

–डीपी सिंह

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