प्रेम और तुम
प्रेम के गहरे क्षणों में
मैं महसूस करती हूं
तुम्हारा वृक्ष होना
अहम, अपेक्षा, उम्मीद
के सारे पत्ते
पीले होकर गिरते देखती हूँ
उस समय तुम मुझे
बोधि वृक्ष लगते हो
उसके नीचे
सुकून से बैठी हुई माँ
मुझे और करीब लाती है तुम्हारे
मेरी निगाह में
देवता बना देती है
तुम्हें
तुम सिर्फ मेरे नहीं हो
तुम उस कण-कण के ऋणी हो
जिसने दिया है तुम्हें जीवन
तुम सबके जीवन में फूल बनना
जिसने तुम्हारे राहों के कांटे
अपने आँचल में लिया है,
वह पिता जो तुम्हारे लिए
खेतों की मिट्टी से इश्क़ किया है
मेरी मुहब्बत कर्जदार है उनकी।
मैं देखना चाहती हूँ
माँ के घावों पर
मरहम लगाते हुए तुम्हें
मैं देखना चाहती हूँ
पिता के साथ
मिट्टि से इश्क़ करते हुए तुम्हें…।
Bahut khud di