आज इक पोस्ट पर सवाल किया गया था एलोपैथिक दवाओं के साइड इफेक्ट्स क्यों होते हैं। जाने क्यों मुझे लगा इस को सोच समझ कर विस्तार से समझना समझाना चाहिए। ये समझ केवल मेरे डॉक्टर होने और एलोपैथिक एवं आयुर्वेदिक दोनों ही तरह की शिक्षा और ईलाज के 45 साल के अनुभव से ही नहीं आई है बल्कि मेरे सामाजिक सरोकार को लेकर जागरूक रहने और जागरूकता फैलाने से दोनों के साथ होने से हो सकी है।
हम तलवार चाकू छुरी पिस्टल बंदूक को अपनी सुरक्षा अपने कार्य में उचित उपयोग भी कर सकते हैं और इन को किसी को या खुद को नुकसान पहुंचाने को भी इस्तेमाल कर सकते हैं। आपने जानकर किया या बिना जाने किया मगर गलत ढंग से इस्तेमाल किया तो अंजाम वही होगा। ठीक इसी तरह आपने खुद लापरवाही की या किसी डॉक्टर ने बिना सोचे समझे आपको सलाह दे दी जो ज़रूरी हर्गिज़ नहीं थी बात एक ही है।
वास्तव में अधिकांश लोग सोचते हैं उनको जानकारी है जो वही बहुत है मगर उनकी जानकारी होती है शहर में कौन सा डॉक्टर या अस्पताल अच्छा समझा जाता है जबकि उनकी तब की समस्या के लिए मुमकिन है वो सही नहीं हो और कोई बेहतर विकल्प हो।
हमारा देश की सरकार का तौर तरीका स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर कभी भी तार्किक और वास्तविक मकसद को समझ कर उचित होता नहीं है। बल्कि अब तो सरकार इस को लेकर उदासीन और हद से अधिक बेपरवाह हो गई है। अभी कोरोना की समस्या को लेकर भी उसकी जानकारी समझ और निर्णय आधी अधूरी ही नज़र आई है। ये विडंबना है कि आधुनिक समय में स्वस्थ्य सेवाओं को लेकर कोई साफ नियम और कानून अमल में नहीं लाये जाते हैं।
जब इसके साथ सरकारी अधिकारी और विभाग भी शामिल हो जाते हैं तब मिल बांटकर खाने की आदत से शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे विषय भी महत्वहीन समझे जाते हैं। इसका मुख्य कारण राजनेताओं अधिकारी वर्ग और धनवान लोगों को ये सब आसानी से उपलब्ध होना है। उनको इस बात की कल्पना तक नहीं है कि उनके अपना कर्तव्य नहीं निभाने से जाने कितने लोग ऐसी व्यवस्था का शिकार होकर बदहाल और मौत आने से पहले मौत के शिकार हो जाते हैं समय पर उपचार नहीं मिलने या पैसे नहीं होने से।
कुछ समय पहले इक सर्वेक्षण में चौंकने वाली बात सामने आई थी। जो बड़े बड़े पांचतारा नर्सिंग होम अस्पताल लाखों रूपये का बिल लेते हैं हज़ारों रूपये डॉक्टर की फीस होती है उनकी लिखी पर्ची पर हज़ारों रूपये जांच पर खर्च करवाने के बाद भी निदान नहीं लिखा हुआ था साफ साफ , अधिकतर में रोग के नाम से पहले सवालिया निशान ? लगा हुआ था जिस का अर्थ होता है ये संभावित है पक्का नहीं।
सही मायने में सांसदों- विधायकों सभी दलों को सत्ता का खेल और बहुमत का गणित छोड़ कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं लगता है। सत्ता ही ध्येय भी है और ईमान भी और राजनीति का मकसद भी , देश जनता की कोई कल्याण की बात ही नहीं है।
आपने शोर सुना होगा आयुर्वेद और योग को लेकर , इस में खुली अंधेरगर्दी है पैसा बनाने को जिनका आयुर्वेद से कोई सरोकार नहीं कोई रोग की उपचार की समझ नहीं बाज़ार लगाए कारोबार कर रहे हैं। मगर आपको बिमारी की दवा नहीं गोरेपन की मोटापे की सुंदरता की कब्ज़ की अन्य तमाम ऐसी बातों को लेकर जिन के लिए किसी क्वॉलिफिएड डॉक्टर की राय नहीं इश्तिहार से उनका उत्पाद खरीदना है क्योंकि आपको फ़िल्मी सितारे खिलाड़ी विज्ञापन देते दिखाई देते हैं आपको उनका झूठ सच लगता है।