रीमा पांडेय की कविता : करुण पुकार

करुण पुकार

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हे कृष्ण! चले आओ, हे कृष्ण! चले आओ
आँखें मेरी रोती है, अब और न तरसाओ।

तुझको मैं कहाँ ढूँढूं, इस जग के जंगल में
मोहन मन बस जाओ, अब न कहीं जाओ।

उम्मीद बसी मन में, तेरी राह निहारूँ मैं
मिलने की घङी आयी, करूणा अब बरसाओ।

सर्वस्व मेरा ले लो, मुझको न यूं ठुकराओ
हे कृष्ण! चले आओ, हे कृष्ण! चले आओ।

मैया के आँचल में छुपकर क्यों बैठे हो
हे नंद के लाला तुम अब और न भरमाओ।

हे बंधु सुदामा के! मैं तेरी पुजारी हूँ
हे कृष्ण! चले आओ, हे कृष्ण चले आओ।

गले लिपटे यशोदा के, राधा के रंग रंगे
मुझपर भी दया रखना, मेरे मन को समझाओ।

कब तक ये जुदाई है, कब अपना मिलन होगा
तुम साथ चलो मेरे, अब और न बहलाओ।

रीमा पांडेय

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