आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में ‘दुबे का छपरा’ नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम अनमोल दुबे एवं माता का नाम ज्योतिषमति देवी था। इनकी। प्रारम्भिक शिक्षा संस्कृत से हुई थी। इण्टर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (जिसे आज बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के नाम से जानते है) से ज्योतिष तथा साहित्य में आचार्य की उपाधि प्राप्त की।
1930 ई. में हिन्दी एवं संस्कृत के अध्यापक के रूप में बंगाल में शान्ति-निकेतन चले गये। यहीं इन्हें विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टेैगोर का सान्निध्य मिला और साहित्य-सृजन की ओर अभिमुख हो गये। 1950 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अध्यक्ष नियुक्त हुए। 1960 ई. मे कुछ समय तक पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ में हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। 1949 ई. में लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन्हें ‘डी.लिट्.’ तथा 1957 ई. में भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया।
साहित्यिक परिचय : द्विवेदी जी ने बाल्यकाल से ही व्योमकेश शास्त्री से कविता लिखने की कला सीखनी आरम्भ कर दी थी। शान्तिनिकेतन जाने के बाद इनकी प्रतिभा और अधिक निखरने लगी। विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर का इन पर विशेष प्रभाव पड़ा। बांग्ला साहित्य से भी ये बहुत प्रभावित थे। ये उच्चकोटि के शोधकर्ता, निबन्धकार, उपन्यासकार एवं आलोचक थे। सिद्ध साहित्य, जैन साहित्य एवं अपभ्रंश साहित्य को प्रकाश में लाकर तथा भक्ति-साहित्य पर उच्चस्तरीय समीक्षात्मक ग्रन्थें की रचना करके इन्होंने हिन्दी साहित्य की महान सेवा की।
वैसे तो द्विवेदी जी ने अनेक विषयों पर उत्कृष्ट कोटि के निबन्धों एवं नवीन शैली पर आधरित उपन्यासों की रचना की है। पर विशेष रूप से वैयक्तिक एवं भावात्मक निबंधों की रचना करने में ये अद्वितीय रहे। द्विवेदी जी ‘उत्तर प्रदेश ग्रन्थ अकादमी’ के अध्यक्ष और ‘हिन्दी संस्थान’ के उपाध्यक्ष भी रहे। कबीर पर उत्कृष्ट आलोचनात्मक कार्य करने के कारण इन्हें ‘मंगलाप्रसाद’ पारितोषिक प्राप्त हुआ। इसके साथ ही ‘सूर-साहित्य’ पर ‘इन्दौर साहित्य समिति’ ने ‘स्वर्ण पदक’ प्रदान किया।
कर्म जीवन : इन्होंने शान्ति निकेतन में एक हिन्दी प्राध्यापक के रुप में 18 नम्वबर 1930 को अपने काम की शुरुआत की। इन्होंने 1940 में विश्वभारती भवन के कार्यालय में निदेशक के रुप में पदोन्नति प्रदान की। अपने इसी कार्यकारी जीवन में इनकी मुलाकात रवींद्रनाथ टैगोर से शान्ति निकेतन में हुई। इन्होंने 1950 में शान्ति निकेतन को छोड़ दिया और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रमुख और अध्यापक के रुप में जुड़ गए। इसी दौरान ये 1955 में भारत सरकार के द्वारा गठित किए गए प्रथम राजभाषा आयोग के सदस्य के रुप में भी चुने गए। कुछ समय बाद 1960 में वह पंजाब विश्व विद्यालय, चंडीगढ़ से जुड़ गए। इन्हें पंजाब विश्व विद्यालय में हिन्दी विभाग का प्रमुख एवं प्रोफेसर चुना गया।
कृतियॉं : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की प्रमुख कृतियॉं निम्न है :
निबन्ध- विचार और वितर्क, कल्पना, अशोक के फूल, कुटज, साहित्य के साथी, कल्पलता विचार-प्रवाह आलोक-पर्व आदि।
उपन्यास- पुनर्पवा, बाणभट्ट की आत्मकथा, चारु चन्द्रलेख , अनामदास का पोथा, आदि।
आलोचना साहित्य- सूर-साहित्य, कबीर, सूरदास और उनका काव्य, हमारी साहित्यिक समस्याऍं, हिन्दी साहित्य की भुमिका, साहित्य का साथी, साहित्य का धर्म, हिन्दी-साहित्य, समीक्षा-साहित्य नख-दपर्ण में हिन्दी-कविता, साहित्य का मर्म, भारतीय वाड्मय, कालिदास की लालित्य-योजना आदि।
शोध-साहित्य- प्राचीन भारत का कला विकास, नाथ सम्प्रदास, मध्यकालीन धर्म साधना, हिन्दी-साहित्य का आदिकाल आदि।
अनूदित साहित्य – प्रबन्ध चिन्तामधि, पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह प्रबन्धकोश, विश्व परिचय, मेरा बचपन, लाल कनेर आदि।
सम्पादित साहित्य- नाथ-सिद्धों की वाणियां, संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो, सन्देश-रासक अादि।
भाषा-शैली : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी भाषा के प्रकाण्ड पण्डित थे। संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ-साथ आपने निबन्धों में उर्दू फारसी, अंग्रेजी एवं देशज शब्दों का भी प्रयोग किया है। इनकी भाषा प्रौढ़ होते हुए भी सरल, संयत तथा बोधगम्य है। मुहावरेदार भाषा का प्रयोग भी इन्होंने किया है। विशेष रूप से इनकी भाषा शुद्ध संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक खड़ीबोली है। इन्होंने अनेक शैलियों का प्रयोग विषयानुसार किया है, जिनमें प्रमुख हैं- गवेषणात्मक शैली, आलोचनात्मक शैली, भावात्मक शैली, हास्य-व्यंग्यत्मक शैली, उद्धरण शैली भाषा- शुद्ध संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक खड़ी-बोली।
- 1957: में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
- 1973: में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया।
- 1979: 19 मई को नई दिल्ली में उनका निधन हुआ।