पृथ्वी को बचाने के लिए पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन जरूरी

राज कुमार गुप्त

राज कुमार गुप्त : हम सभी पृथ्वी के मानव जाति बाढ़, महामारी, प्रलय या अन्य किसी भी तरह से विनाश के ही लायक हैं, प्रकृति को हमें बारम्बार दंड देना ही चाहिए, दे भी रहा है और अगर हमारा यही रवैया जारी रहा तो कोई शक नहीं, आगे भी दंड देगा! बाढ, आपदा, प्रलय में मरने वालों के लिए अब पहले जैसे भाव नहीं आते। हमने किया है तो हम ही भोगेंगे न? पशु चेतना पर इतनी चोट पहुंचा चुके हैं कि उनका मूल स्वभाव बदल रहा है। करोड़ों जानवरों की हत्या एक ही खास दिन में करने को उत्सव की तरह मनाते हैं। क्या हम मनुष्य कहलाने के अधिकारी हैं? क्या यही मनुष्यता है?

मैदानी इलाकों, शहरी क्षेत्रों के जानवर पहले से अधिक हिंसक हो रहे हैं या उनके स्वभाव में हिंसा बढ़ रही। पूरे विश्व में जाहिल लोग बंदरों और अन्य जानवरों को मदिरापान करवा रहें हैं। कुछ लोग जानवरों के साथ अप्राकृतिक यौनाचार कर रहे हैं। निरीह प्राणियों के साथ अत्याचार तो आम बाते हैं। इस प्रकार की हरकतों द्वारा मानव जाति क्या प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं कर रहा है? हम जंगलों को काट रहे हैं, तो उनमें रहने वाले पशु, पक्षी कहां जायेंगे? जाहिर सी बात है वो अपनी सीमाएं अतिक्रमण करेंगे और इंसानी बस्तियों की ओर ही आयेंगे।

पहाड़ों का सीना चीर कर मनुष्य रास्ता बना रहा है, खुद के रहने के लिए बस्तियां बसा रहा है, तो पहाड़ भी कहर बन कर क्यों नहीं टूटेगा? विकाश के नाम पर तथा फ्रिज और एयरकंडीशनर चला कर, औद्योगिक करण के नाम पर मनुष्य इतना अधिक कार्बन उत्सर्जन कर चुका है और प्राकृतिक ओजोन लेयर को छेद कर चुका है जिसकी भरपाई होना निकट भविष्य में बहुत ही मुश्किल है। जिससे पूरे विश्व में गर्मी दिनों दिन बढ़ती जा रही है और ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं। जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ता जा रहा है। जल संरक्षण नहीं होने से भूगर्भ जलस्तर लगातार घट रहा है। विश्व की संपूर्ण मानव जाति ने पिछले 50 वर्षों में प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर दोहन किया है।

मानव जाति ने पंचतत्व यानी आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी जिसे हम सनातनी पंचमहाभूत कहते हैं जिनसे सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है, इनसे हमने भरपूर छेड़छाड़ किया है, इनको दूषित किया है। इसका खामियाजा एक न एक दिन भुगतना ही पड़ेगा और अगर अभी भी सचेत नहीं हुए तो आने वाले समय में संपूर्ण मानव समाज का विनाश होना तय है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी तो एक संकेत भर है, पूरे विश्व के लिए।

पूरे विश्व के मनुष्य को अब बिना वजह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय यात्राओं की जरूरतों से बचे जाने की जरूरत है, इसके लिए डिजिटल उपकरणों को अपनाने से भी कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद मिलेगी। नहीं तो भविष्य में कार्बन उत्सर्जन में कमी के आसार बनते नहीं दिखाई दे रही हैं। पर्यावरण को बचाने के लिए विश्व के सभी देशों को और निजी संस्थाओं को बड़ी भूमिका निभाने के लिए आगे आकर युद्ध स्तर पर पुराने जलाशयों का उद्धार करना होगा और नए जलाशयों का निर्माण करना होगा।

बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करना पड़ेगा। जल, जंगल, पहाड़ तथा जानवरों, पंछियों, कीड़े मकोड़ों, जलीय जीवों को बचाना होगा। प्लास्टिक को तत्काल प्रभाव से पूरे विश्व को प्रतिबंधित करना होगा, ये हमारी पृथ्वी के लिए कैंसर है। तभी पर्यावरण चक्र को ठीक रख पाएंगे।

पर्यावरण संरक्षण के लिए हम सभी विश्ववासियों को आगे आना ही पड़ेगा, तभी हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए एक सुंदर पृथ्वी विरासत में छोड़ कर जा सकते हैं और अगर हम में से जो कोई भी पुनर्जन्म में विश्वास करता है तो उन्हें भी वापस इस पृथ्वी पर आना पड़ेगा! तो क्यों न मनुष्य अपनी विनाश की आदतों को छोड़ कर संपूर्ण पृथ्वी की सुरक्षा की आदतों को अपनाए। पृथ्वी को बचाने के लिए पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन जरूरी है। इस मामले में पेड़ों की खासी उपयोगिता है।

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