या दिल की सुनो दुनिया वालो या मुझको अभी चुप रहने दो

डॉ. लोक सेतिया, विचारक

कहो भी क्या कहना है, अब बोलते क्यों नहीं। नानी मर गई है क्या? ये हाल चाल पूछना है ये हालत खराब करना। माफ़ करना आपकी अदालत में आना बहुत बड़ी भूल थी। जाने आजकल की महफिलों को ये क्या हुआ है। शोर तो है वाह जनाब माशाआलहा का मगर आवाज है कि दबी-दबी सी लगती है। दिन का उजाला है फिर भी दिखाई कुछ भी नहीं देता है। कितने आफताब धरती पर चमकते हुए हैं पर अंधियारा है कि मिटने को राज़ी ही नहीं।

सब ज्ञानी हैं सभी कुछ की जानकारी है राजनीति से लेकर धर्म तक और देश भक्ति से लेकर समाजसेवा तक हर किसी को खबर है। खबर नहीं फिर भी कौन हैं हम क्या हैं, किधर को जाना चाहते थे और आ गए किस जगह हैं। ज़ुबान है कि बोलती नहीं है, आंखें हैं लेकिन दिखाई कुछ भी नहीं देता है, कानों में शोर कितना है मगर सुनाई कुछ नहीं देता है। हाथ भी हैं मगर उन्हें कानों को ढकने तक की कोशिश करना बेकार है। बिना किसी हथकड़ी बंध गये हैं, ताली बजाने के इलावा हिलते भी नहीं हैं।

आप कहते हो बताओ सब बढ़िया तो है। दिल भी क्या बुरा है दुश्मन ए जां पर फ़िदा है, इश्क़ की दास्तान है। ऐसे में कोई ग़ालिब नहीं दाग नहीं मीर तकी मीर नहीं। गजल की बात कौन करे, दर्द को समझता है कौन, जाने ये किस तरह की शायरी है। हज़ारों सुनने वाले हैं सुनाने वालों को सलीका नहीं हो तो सुनने वालों को शऊर कैसे आये। मजमा लगाने जैसी बात है दिल से दिल में उतरने वाली कोई बात नहीं है।

गद्य पद्य दोनों की दशा एक जैसी है। शोहरत तो बहुत है , दौलत भी बहुत है, नज़ाकत की बात खो गई है। गजल गायी किसी ने तो गजल छुपकर खड़ी थी ख़ामोशी से रो गई है। शायर को पता भी नहीं चला वो अपना दामन अश्कों से भिगो गई है। अजीब सी घुटन लग रही है ये कैसी बरसात हो गई है। अपने अश्कों में मेरी दुनिया डुबो गई है। मुंशी जी आपकी कहानी खो गई है मूंगा से पूछा यहां क्यों खड़ी है, भूल गई कहना था, तेरा लहू पीऊँगी। न उठूंगी।

मुंशी ने पूछा कब तक पड़ी रहोगी। नहीं बोली जो कहना था, तेरा लहू पीकर जाऊंगी। गरीब की हाय लगती नहीं आजकल। नमक का दरोगा, दो बैलों की कथा। प्रेमचंद कोई नहीं है कहानियां कितनी बदनसीब हैं। परसाई श्रीलाल शुक्ल ये सभी व्यंग्यकार लिखते रहे मगर बदला क्या जो मेरे लिखने से बदलेगा। नींद क्यों रात भर नहीं आती।

यूं हसरतों के दाग मुहब्बत में धो लिए, खुद दिल से दिल की बात कही और रो लिए। घर से चले थे हम तो ख़ुशी (अच्छे दिन) की तलाश में, गम राह में खड़े थे (बदहाली) वही साथ हो लिए। होठों को सी चुके तो जमाने ने ये कहा, ये चुप सी क्यों लगी है अजी कुछ तो बोलिए। अब समझे आप सरकार ने सवाल किया है बोलते क्यों नहीं। आमदनी दुगनी हुई कि नहीं।

इधर कुआं उधर खाई। जो बोलने को सिखाया छमिया बोल गई तो लोग पूछते हैं दिखा दोगुनी कमाई कहां छुपाई है। धान की फसल बर्बाद हुई तो जिस सीताफल की बात करती हो साथ की सभी महिलायें जो था वो भी लुटा बैठी हैं। ये गणित बहुत कठिन है अलजब्रा मुझे समझ नहीं आता किसी ने फेसबुक पर पोस्ट पर लिखा। थोड़ा इंतज़ार करो अभी जिओ का उत्कृष्ट संस्थान खुलेगा तो पढ़ाई करना, जो पहले पढ़ा लिखा सब फज़ूल था।

आजकल यही अच्छा है हर किसी के पास स्मार्ट फोन है जो मर्ज़ी करो। मगर रुकना आज सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया है नफरत फ़ैलाने वालों पर कठोर कानून बनाओ। अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारो, सबसे अधिक नफरत किस ने फैलाई है। हम अच्छे बाकी सब बुरे यही उनका प्यार का सबक है। जो हमें अच्छा नहीं मानते देश की भलाई नहीं चाहते।

किसी का विरोध अपराध ही नहीं क्या क्या नहीं हो गया। चुप रहो इस शहर में रहना है सच कहना है तो कोई और जगह तलाश करो। मैं गम को ख़ुशी कैसे कह दूं, जो कहते हैं उनको कहने दो या दिल की सुनो दुनिया वालो या मुझको अभी चुप रहने दो।

(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)

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